Saturday, 20 April, 2024

घाव भरने के लिए विकसित किया दही आधारित जैल

डॉ.अदिति जैन
न्यूजवेव @ नईदिल्ली
बैक्टीरिया की बढ़ती प्रतिरोधक क्षमता के कारण घावों को भरने के लिए मरहम प्रायः बेअसर हो जाते हैं, जिससे मामूली चोट लगने पर भी संक्रमण होने का खतरा रहता है। आईआईटी, खड़गपुर के वैज्ञानिकों ने दही आधारित ऐसी एंटीबायोटिक जैल विकसित की है जो संक्रमण रोकने के साथ ही तेजी से घाव भरने में मदद करता है।
रिसर्च में दही के ऐसे पानी का उपयोग किया गया जिसमें जैविक रूप से सक्रिय पेप्टाइड्स होते हैं। शोधकर्ताओं ने 10 माइक्रोग्राम पेप्टाइड को ट्राइफ्लूरोएसिटिक एसिड और जिंक नाइट्रेट में मिलाकर हाइड्रोजैल बनाया है। इस जैल की उपयोगिता का मूल्यांकन दवाओं के प्रति प्रतिरोधी क्षमता रखने वाले बैक्टीरिया स्टैफिलोकॉकस ऑरियस और स्यूडोमोनास एरुजिनोसा पर किया गया है। यह हाइड्रो जैल इन दोनों बैक्टीरिया को नष्ट करने में प्रभावी पाया गया है। हालांकि, वैज्ञानिकों ने पाया किस्यूडोमोनास को नष्ट करने के लिए अधिक डोज देने की जरूरत पड़ती है।


आईआईटी, खड़गपुर की शोधकर्ता डॉ. शांति एम. मंडल ने बताया कि बैक्टीरिया प्रायः किसी जैव-फिल्म को संश्लेषित कर उसमें रहते है, जिससे जैव प्रतिरोधी दवाओं से सुरक्षा मिलती है। इस जैव-फिल्म का निर्माण बैक्टीरिया की गति पर निर्भर करता है। रिसर्च में पाया कि नया हाइड्रोजैल बैक्टीरिया की गति को धीमा करके जैव-फिल्म निर्माण को रोक देता है।
घावों को भरने में इस हाइड्रो जैल की क्षमता को परखने के लिए वैज्ञानिकों ने लैबोरट्री में विकसित कोशिकाओं का उपयोग किया। इसके लिए त्वचा कोशिकाओं को खुरचकर उस पर हाइड्रो जैल लगाया गया और 24 घंटे बाद उनका मूल्यांकन किया गया। इससे पता चला कि हाइड्रो जैल के उपयोग से क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की प्रसार क्षमता बढ़ सकती है। इस आधार पर शोधकर्ताओं का मानना है कि यह जैल घाव भरने में काफी उपयोगी हो सकता है।
शोधकर्ताओं में डॉ. शांति एम. मंडल, सौनिक मन्ना और डॉ. अनंता के. घोष शामिल हैं। यह रिसर्च शोध पत्रिका फ्रंटियर्स इन माइक्रोबायोलॉजी में प्रकाशित किया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

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