Friday, 29 March, 2024

आओ संवारे अपनी धरती

पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) पर विशेष
नवनीत कुमार गुप्ता
न्यूजवेव @ नईदिल्ली
इस साल पृथ्वी दिवस की 48वीं वर्षगांठ पर वैश्विक थीम ‘प्लास्टिक पर्यावरण को समाप्त करना है।
लाखों सालों से जीवन को पनाह देने वाली धरती पर आज संकट के बादल मंडरा रहे हैं। हमनें जंगलों का सफाया किया और नदियों का रास्ता मोड़ा, प्लास्टिक जैसे कचरे का अंबार लगाया। ऐसे अनेक गतिविधियों के चलते आज हवा पानी और मिट्टी अत्यधिक प्रदूषित हो गए हैं और प्रदूषण के कारण कहीं बीमारियां फैल रही हैं तो कहीं असमय बारिश से फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है।
कोयला, पेट्रोल, कैरोसिन जैसे जीवाश्म ईंधनों के दहन से वातावरण में ऐसी गैसों की मात्रा बढ़ रही है जिससे पृथ्वी का औसत तापमान बढ़ रहा है यानी ग्लोबल वार्मिंग की समस्या उत्पन्न हो रही है। हमारी धरती से हर साल 15 अरब हरे भरे वृक्षों को काटा जा रहा है।
इसलिए पृथ्वी को जीवंत बनाए रखने के लिए हम सबको को एक होना होगा। ऊर्जा के लिए पवन ऊर्जा या सौर ऊर्जा का उपयोग शुरू करें। पानी और बिजली की बर्बादी रोकने के लिए आगे आएं। क्योंकि इन्हीं संसाधनों पर हमारा और भावी पीढ़ियों का भविष्य टिका है।
पहली बार पृथ्वी दिवस 22 अप्रैल 1970 को मनाया गया। तब से स्वच्छ पर्यावरण के लिए जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रतिवर्ष पृथ्वी दिवस मनाया जाने लगा। असल में यह पृथ्वी को जीवनदायी बनाए रखने का संकल्प दिवस है।
हमारी दिनचर्या में प्लास्टिक की मात्रा दिनोंदिन बढ़ रही है। ये ऐसा यौगिक है जो सालों तक खत्म नहीं होता। प्लास्टिक धरती और पानी जहां भी जमा है वहां समस्याएं पैदा हो रही हैं। यह आसानी से न सड़ता है और न गलता है। इसलिए धरती में दब कर यह बरसाती पानी को नीचे नहीं पहुंचने देता। जल स्रोतों में पहुंच उन्हें प्रदूषित कर वहां रहने वाली जलीय जीवों के लिए मुसिबत बनता है। हमें हर हाल में प्लास्टिक के उपयोग से बचना होगा।
आज हम जलवायु परिवर्तन का असर अपने आसपास भी देख रहे हैं। इस समय पूरी दूनिया में प्रकृति का अंधाधुंध दोहन बढ़ रहा है। विकास की सीढ़िया चढते हुए हमने हरियाली को दफन कर दिया।
सोचने की बात यह कि बेलगाम दोहन के बावजूद इंसान पहले से ज्यादा दुखी हुआ। गांधीजी कहा करते थे कि भोग की बढ़ती प्रवृत्ति ही प्रकृति का दोहन करवाती है इसलिए हमें इससे बचना चाहिए। जल, जमीन और भोजन जैसी अनिवार्य सुविधाओं के लिए हमें प्रकृति का दोहन नहीं बल्कि उसका उपयोग करना चाहिए। अपने आसपास की धरती को मुस्कराती हुई रखें, जो खुशहाली की ठंडी छांव आपको मिलती रहेगी।
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