Friday, 29 March, 2024

कोटा यूनिवर्सिटी ने किया ज्वालामुखी की राख से उत्प्रेरक बनाने का आविष्कार

रिसर्च: कोटा यूनिवर्सिटी में केमिस्ट्री विभाग की तीन शोध छात्राओं द्वारा की गई खोज को 4 वर्ष बाद मिला पेटेंट

न्यूजवेव कोटा

ज्वालामुखी से निकलने वाली राख का उपयोग अब उद्योगों में कम लागत पर प्रॉडक्ट बनाने वाले परलाइट उत्प्रेरक के रूप में किया जाएगा। कोटा यूनिवर्सिटी में तीन शोध छात्राओं ने 6 वर्ष तक निरंतर अनुसंधान कर इस विशेष उत्प्रेरक की खोज की है। नये उत्प्रेरक परलाइट के आविष्कार को भारत सरकार के पेटेंट कार्यालय ने पेटेंट आवंटित कर दिया है।


कोटा यूनिवर्सिटी में केमिस्ट्री विभाग की प्रोफेसर डॉ. आशू रानी के निर्देशन में तीन शोध छात्राओं साक्षी काबरा, स्तुति कटारा एवं रेणु हाड़ा ने ज्वालामुखी की राख से औद्योगिक स्वरूप परलाइट पर 6 वर्ष तक निरंतर शोध कार्य किया। कुलपति प्रो. नीलिमा सिंह ने नई खोज पर छात्राओं को बधाई देते हुये कहा कि इससे यूनिवर्सिर्टी में चल रहे अन्य रिसर्च प्रोजेक्ट को बढ़ावा मिलेगा।

Patent certificate to University of kota

इस खोज को भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, नईदिल्ली व जयपुर एवं नेशनल रिसर्च एंड डेवलपमेंट कार्पोरेशन द्वारा तकनीकी सहयोग किया गया। इसके लिये वर्ष 2015 में पेटेंट के लिये आवेदन किया था, जिसे इस वर्ष 20 वर्ष के लिये पेटेंट सर्टिफिकेट मिला है। इस परलाइट उत्प्रेरक का उपयोग अब दुनिया के कई उत्पादों में किया जा सकेगा।
क्या है ‘परलाइट उत्प्रेरक’
प्रो. आशू रानी ने बताया कि ज्वालामुखी से निकली राख को ठंडी होने पर पूरे क्षेत्र में पत्थर के रूप में जमा हो जाती है। जिसे टुकडों में काटकर विभिन्न देशों में भेजा जाता है। इनको स्लेब से पाउडर में परिवर्तित किया जाता है। जो बहुत हल्के व छिद्रयुक्त होते हैं। इनका मुख्य उपयोग खास तौर पर तेल शोधन, जमीनी भराव, सिलिका व एल्युमिना में होगा।
राख में मौजूद विशेष तत्वों जैसे- सिलिका, एल्यूमिनी, पोटेशियम, सोडियम, जिंक, फास्फोरस, टाइटेेनियम आदि ऑक्साइड एक बडे़ छिद्र की परतों वाली सरंचना बनकर एक-दूसरे से जुडे़ रहते हैं। जिसमें जलवाष्प एवं हवा भरी रहती है, जिससे इनका उपयोग किसी भी उत्प्रेरक के रूप में नहीं होता था।
उत्पाद को सस्ता बनाता है उत्प्रेरक
उत्प्रेरक ऐसा रासायनिक पदार्थ है जो क्रिया में भाग नहीं लेता है लेकिन फिर भी रासायनिक अभिक्रिया की गति को बढ़ा देते हैं। उद्योगों में बनने वाले सभी तरह के केमिकल्स के लिये ऐसे उपयोगी उत्प्रेरकों की बहुत आवश्यकता होती है। सभी तरह के रासायनिक संश्लेषणों में सस्ते उत्प्रेरकों के उपयोग से उत्पाद बनाने के खर्च में कमी आती है। ये उत्प्रेरक इसलिये भी उपयोगी हैं कि इनको प्रॉडक्ट को सस्ता बनाने के लिये आसानी से अलग किया जा सकता है।
परलाइट खोज को ऐसे परखा


इस आविष्कार में शोध छात्राओं ने परलाइट को विशेष तकनीक से परिवर्तित किया। इसे 250 से 450 डिग्री सेंटीग्रेड उच्च ताप पर ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में क्रियाशील किया गया। फिर एक ब्रान्सटिड अम्ल टंगस्टन फास्फोरिक एसिड की कुछ मात्रा को मजबूत परत के रूप में सतह पर लगाकर लुईस अम्लीय केंद्र बनाये गये। इन केंद्रों पर रासायनिक संश्लेषण किया। इसमें फिनॉल एवं बेंजाइल एल्कोहल की 1ः1 एवं 2ः1 अनुपात में विशेष रासायनिक परिस्थिति में अमेरिका से आयातित एक माइक्रोवेव रिएक्टर में अभिक्रिया पूरी की गई। इस माइक्रोवेव रिएक्टर का ताप 90 से 130 डिग्री के बीच रखा गया। 50 से 90 वाट क्षमता पर मात्र 4 से 12 मिनट में लगभग 99 प्रतिशत शुद्ध बेंजोइल फिनॉल उत्पाद प्राप्त हुआ। इस उत्प्रेरक से लगातार 5 बार उत्पाद प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की।
उपयोगी है बेंजोइल फिनॉल
विशेषज्ञों के अनुसार, बेंजोइल फिनॉल रोगाणु प्रतिरोधी व कीटाणुनाशक है। इसका उपयोग दुनिया में कई दवाइयों एवं कृषि के लिये कीटनाशक आदि में किया जाता है। 50 ग्राम बेंजोइल फिनॉल का मूल्य लगभग 12 हजार रू.होता है। इसकी अलग-अलग मात्रा को विभिन्न उत्पादों में प्रयोग किया जाता है।

(Visited 335 times, 1 visits today)

Check Also

राजस्थान में कैंसर से प्रतिवर्ष 65 हजार दम तोड़ रहे

विश्व कैंसर दिवस: 4 फरवरी पर विशेष, बदलती जीवनशैली से बढ रहा कैंसर राजेंद्र कुमार …

error: Content is protected !!
%d bloggers like this: