Wednesday, 16 April, 2025

नगवा की माटी जो लालों के खून से इतिहास लिखती है

अमर शहीद मंगल पाण्डेय का बलिदान दिवस 8 अप्रैल: एक नेत्र चिकित्सक की नजर से

डॉ. सुरेश पाण्डेय, प्रेरक वक्ता, नेत्र चिकित्सक

भारत की माटी में जादू है। यह वह माटी है, जो अपने लालों के खून से इतिहास लिखती है और गुलामी की जंजीरों को तोड़ने के सपने बुनती है। इस माटी से निकली एक ऐसी कहानी है, जो हर हिंदुस्तानी के दिल में आग बनकर धधकती है—अमर शहीद मंगल पाण्डेय की कहानी। 8 अप्रैल 1857 का वह दिन, जब बैरकपुर की छावनी में एक सिपाही ने अपनी राइफल उठाई और अंग्रेजी हुकूमत की नींव हिला दी। वह पल, जब फांसी का फंदा उनके गले में पड़ा और उनका बलिदान आजादी की पहली चिंगारी बनकर सुलग उठा। यह कहानी सिर्फ किताबों की नहीं, मेरे खून की, मेरे जज्बे की, मेरे होने की वजह है।

जहां से  प्रज्वलित हुई स्वतंत्रता की  चिनगारी 

30 जनवरी 1831 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के नगवा गांव में मंगल पाण्डेय ने जन्म लिया। यह वह गांव है, जहां 9 मार्च 1917 को मेरी दादी, स्वर्गीय श्रीमती राम श्रृंगारी देवी ने जन्म लिया। उनकी गोद में बैठकर सुनी कहानियां सभी  बच्चों के  लिए खिलौने से बढ़कर थीं। उनकी थरथराती आवाज में मंगल पाण्डेय की शेरदिली गूंजती थी। वे कहतीं, “बेटा, यह माटी साधारण नहीं। इसने मंगल पाण्डेय को जन्म दिया, जिसने अपने खून से आजादी की पहली लकीर खींची। हमें उनके जज्बे से सीखना है, देश के लिए कुछ करना है।” उनकी चमकती आंखों में गर्व देखकर हमारा नन्हा दिल देशभक्ति की लौ से भर उठता था।

दादाजी स्व. डॉ. कमता प्रसाद पाण्डेय, इस माटी के सच्चे लाल थे। बलिया के शेर कहे जाने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री चित्तू पाण्डेय के साथ कंधे से कंधा मिलाकर उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी। लेकिन उनका जुनून सिर्फ आजादी तक नहीं रुका—उन्होंने नेत्र रोगियों की जिंदगी से अंधेरा भी हटाया।  वर्ष 1937 में हरियाणा के भिवानी में किशनलाल जालान आई हॉस्पिटल में नेत्र चिकित्सा सीखी, और फिर 1943 में, आजादी के भंवर में, राजस्थान के मोहना गांव में लोगों की आंखों में रोशनी बांटी। उनकी यह जिंदगी मेरे लिए मशाल बन गई। मेरे माता-पिता, श्री काश्मेश्वर प्रसाद पाण्डेय और श्रीमती माया देवी पाण्डेय, ने मुझे उनके रास्ते पर चलने की ताकत दी। उनके आशीर्वाद से मैंने नेत्र चिकित्सक बनने का सपना देखा—यह मेरा पेशा नहीं, उस माटी का कर्ज चुकाने का जज्बा था।

एक फिल्म जो जिंदगी बन गई

वर्ष 2005 में सिडनी, ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई के दौरान मैंने फिल्म “मंगल पाण्डेय: द राइजिंग” देखी। जब स्क्रीन पर मंगल पाण्डेय ने अंग्रेज अफसर पर गोली चलाई, मेरा दिल थम सा गया। आंखों से आंसू छलक पड़े। वह सिर्फ फिल्म नहीं थी—वह मेरे खून की पुकार थी, नगवा की माटी का नाद था, मेरे परिवार का गर्व था। उस पल मेरे  मस्तिष्क में  अपना  बचपन  दादी जी  की  कहानियाँ फिल्म  की  तरह  घूम  गईं.  मैंने ठान लिया कि मुझे अपनी जड़ों को लौटना है। विदेश में सालों काम करने के बाद मैं भारत आया और कोटा, राजस्थान में सुवि आई इंस्टीट्यूट एंड लेसिक लेजर सेंटर शुरू किया। आज यह संस्थान हजारों आंखों में रोशनी भर रहा है। हर मरीज की चमकती आंखें मुझे उस चिंगारी की याद दिलाती हैं, जो अमर शहीद मंगल पाण्डेय ने जलाई थी। उनकी एवं  अनेकों  देश भक्तों की, स्वतंत्रता सेनानियों की शहादत हम सभी  भारत  वासियों के लिए रोशनी का पहला स्रोत है।

पुस्तकों  से जारी  रोशनी  की  यात्रा 

अँधेरे  से  रोशनी  के इस  सफर को अपनी किताबों “An Eye for the Sky” और “Diary of an Eye Surgeon” में समेटा है। ये किताबें मेरे करियर से ज्यादा उस प्यार की गवाह हैं, जो मुझे नगवा की माटी और मेरे परिवार से मिला। हर शब्द में मंगल पाण्डेय की शहादत की गूंज है। 8 अप्रैल 1857 को जब उन्होंने चर्बी वाले कारतूसों के खिलाफ बगावत की, तो वह सिर्फ एक सिपाही का गुस्सा नहीं था—वह एक कौम के जागने की हुंकार थी। फांसी के फंदे पर चढ़ते वक्त उनकी आंखों में डर नहीं, आजादी का सपना चमक रहा था। उनका बलिदान 1857 की क्रांति का पहला कदम बना। उस दिन एक सिपाही नहीं मरा, एक उम्मीद जन्मी—एक ऐसी उम्मीद, जिसने अंग्रेजी हुकूमत को घुटनों पर ला दिया।

 नगवा से नेत्र  चिकित्सा का  सन्देश 

नगवा की माटी मेरे लिए जिंदगी का आधार है। इसने मुझे नाम दिया, सपने दिए, और एक मकसद दिया। आज जब मैं एक नेत्र चिकित्सक के रूप में किसी की आंखों में रोशनी लौटाता हूं, तो अमर शहीद मंगल पाण्डेय एवं  सभी  स्वतंत्रता  सेनानियों को  कृतज्ञ भाव  से  नमन  करते हूँ जिनके बलिदान से हम सभी आज आजाद भारत में सांस ले पा रहे हैं। वे सभी खड़े हुए, अंग्रेजों से टकराए, और साबित कर दिया कि एक इंसान की हिम्मत पहाड़ को भी झुका सकती है।

युवाओं के लिए अमर  शहीद मंगल पाण्डेय 

8 अप्रैल को उनकी शहादत को याद करते हुए सीना गर्व से फूलता है, और आंखें नम हो जाती हैं। अमर शहीद मंगल पाण्डेय की कहानी आज के युवाओं के लिए एक चुनौती है। अगर एक सिपाही अपनी जान देकर हुकूमत को हिला सकता है, तो सोचिए—हमारी युवा पीढ़ी मिलकर क्या नहीं कर सकती? 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का सपना हमारा है। मंगल पाण्डेय का जज्बा हमें सिखाता है कि मेहनत, हिम्मत और देशप्रेम से कुछ भी नामुमकिन नहीं। चाहे वह विज्ञान हो, तकनीक हो, या समाज सेवा—हर कदम पर हमें उनकी चिंगारी को जिंदा रखना है। उनकी शहादत हमें चीखकर कहती है: “उठो, जागो, और देश के लिए कुछ कर दिखाओ।”

एक कर्ज, एक जिम्मेदारी

हमारी नई पीढ़ी को मंगल पाण्डेय और सभी स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी को दिल से याद रखना होगा। आजादी मुफ्त नहीं मिली—यह मांओं के आंसुओं, बेटों के खून और सपनों की कुर्बानी से बनी है। मंगल पाण्डेय का बलिदान एक जज्बा है—एक ऐसा जज्बा, जो हमें अपनी जड़ों से जोड़ता है। आइए, हम सब उनके बलिदान को नमन करें। मंगल पाण्डेय सिर्फ एक नाम नहीं, हमारे गर्व का प्रतीक हैं। उनकी चिंगारी आज भी जल रही है—हर उस सीने में, जो आजादी की कीमत समझता है। जब तक उनकी कहानी हमारे दिलों में जिंदा रहेगी, यह देश कभी नहीं झुकेगा। उनकी शहादत की यह आग हमारे खून में है, हमारी सांसों में है। अमर शहीद मंगल पाण्डेय अमर हैं, और उनकी वजह से यह देश हमेशा सिर ऊंचा रखेगा।

  • सुवि नेत्र चिकित्सालय, कोटा 
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