- दरा से गुजरने वाले हजारों वाहनचालको के हाल बेहाल, रेलवे अंडर ब्रिज कागजो में अटका
न्यूजवेव @ कोटा
कोटा-झालावाड़ नेशनल हाईवे पर लगातार जाम लगने से नागरिक आहत हो रहे हैं। इस ज्वलंत जनसमस्या के प्रति राज्य सरकार व प्रशासन की उदासीनता से व्यथित होकर हाड़ोती के जागरूक नागरिको ने अब लोक अदालत का रुख किया है। जाम में एम्बुलेंस फंसने से हुई मौत के बाद स्थायी लोक अदालत ने संज्ञान लिया है।
कोटा जिले के दरा- नाल में आए दिन लगने वाले ट्रैफिक जाम की गंभीर समस्या अब कोर्ट में पहुंच गई है इस जानलेवा जाम से मुक्ति के लिए अदालत से गुहार लगाई है। जाम में एम्बुलेंस फंसने की घटनाओं के कारण सात माह में चार मरीजों की मौत हो चुकी है।
कोटा-बूंदी सांसद लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने भी जाम से लोगों को राहत के लिए अपने स्तर पर प्रयास शुरू किए हैं। रोज लगने वाले जाम से आम जनता को शीघ्र राहत पहुंचाने की मांग से संबंधित जनहित याचिका कोटा की स्थाई लोक अदालत में दाखिल की गई है। इस पर अदालत ने राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के परियोजना निदेशक, जिला कलेक्टर कोटा, ग्रामीण एसपी एवं कोटा पश्चिम मध्य रेलवे कोटा के मंडल रेल प्रबंधक को नोटिस जारी कर उनसे जवाब तलब किया है। याचिका पर सुनवाई 24 फरवरी को होगी।
रेलवे अंडर ब्रिज बनाने के तेजी क्यो नहीं-
एडवोकेट लोकेश कुमार सैनी पत्रकार जगदीश अरविंद एवं स्वतंत्र पत्रकार धर्म बंधु आर्य ने अपनी याचिका में कहा कि बजट घोषणा के बाद भी नेशनल हाईवे 52 पर कोटा– झालावाड़ के बीच दरा घाटी में एक और रेलवे अंडर ब्रिज बनाने का कार्य प्रारंभ नहीं हुआ है जबकि इसके लिए 16 करोड़ रुपए का बजट भी मंजूर हो चुका है। दरा नाल में पल-पल लगने वाला जाम जानलेवा साबित हो रहा है, जिससे हजारो लोग परेशान हो रहे हैं।
दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेस वे से सफर प्रारंभ होने के बाद यहां यातायात का दबाव काफी बढ़ चुका है इस कारण जाम की समस्या और गंभीर रूप ले चुकी है।
याचिका में कहा गया कि 9 फरवरी को जाम में एंबुलेंस फंसने से एक मरीज की अकाल मौत हो चुकी है। इस कारण दरा घाटी में लम्बे ट्रैफिक जाम से निजात दिलाया जाना जनहित में आवश्यक हो गया है भटवाड़ा सड़क मार्ग को ठीक करके इससे एक्सप्रेस-वे के यातायात को निकालना अति आवश्यक है इससे दरा नाल से गुजरने वाले यातायात में कुछ कमी अवश्य आएगी।
पुरानी पुलिया के वैकल्पिक मार्ग को खोला जाना आवश्यक है जिसमें छोटे एवं हल्के वाहनों की आवाजाही सुगमता से होगी आमजन को राहत मिलेगी। प्रयागराज दिल्ली एवं अन्य राज्यों से आने वाले वाहनों को सीमलिया बारां झालावाड़ एमपी मार्ग से डायवर्ट भी किया जाना आवश्यक है
जाम से अब तक 4 मरीजों की मौत-
याचिकाकर्ताओं ने याचिका में बताया कि दरा घाटी में जाम लगने से 7 महीने में एंबुलेंस फंसने से चार मरीजों की अकाल मौत हो चुकी है।
नेशनल हाईवे 52 पर दरा कमलपुरा क्षेत्र में जाम एवं यातायात की समस्या रहती है ऐसे में दरा एवं कमलपुरा के दोनों और ट्रैफिक को 15-15 मिनट के अंतराल में निकाला जाना आवश्यक है जिससे वाहनों की आवाजाही में समय कम लगेगा। अभी यह अंतराल 30 मिनट से ज्यादा है।
फोरलेन वाले ट्रैफिक को जाम से बचने के लिए वाया भटवाड़ा चेचट रोड डायवर्ट किया जा रहा है लेकिन इससे मामूली राहत ही मिलेगी।
कोटा की ओर आने वाले भारी वाहनों को रावतभाटा मार्ग से निकालने से पहले रावतभाटा मार्ग के दोनों किनारों पर गिट्टी-सीमेंट भरनी होगी, अन्यथा रोड छोटा होने से आमने-सामने भारी वाहन फंस जाएंगे।
पुलिस विभाग के पास 40 टन की एक बड़ी क्रेन और एक छोटी क्रेन रेलवे अंडर ब्रिज के पास उपलब्ध कराना सही कदम है। रोजाना सड़क जाम से निबटने के लिए पर्याप्त होमगार्ड मोटरसाइकिल सवार पुलिस जवान और वायरलेस हैंडसेट भी होना आवश्यक है।
नेशनल हाईवे अथॉरिटी को नाल के दोनों ओर स्प्रिंग बेरिकेडिंग, पीवीसी बैरिकेडिंग, रिफ्लेक्टर रेडियम और नो ओवर टेकिंग इन जोन जैसा बोर्ड लगाना जरूरी है। ट्रैफिक जाम में कोई एंबुलेंस नहीं फंस पाए, उनकी आवाजाही का ध्यान रखा जाए।
शिक्षा मंत्री दिलावर मौन क्यों-
रामगंजमंडी क्षेत्र के नागरिकों का कहना है कि स्थानीय विधायक मदन दिलावर ने कॉंग्रेस सरकार के समय दरा में रेलवे अंडर ब्रिज बनाने के लिए पुरजोर आवाज उठाई थी, लेकिन प्रदेश मे डबल इंजन की भाजपा सरकार में वे केबिनेट मंत्री बनने के बावजूद इस सबसे बड़ी जनसमस्या को हल नही करवा पा रहे हैं। यह वन विभाग की भूमि है, जो राज्य सरकार के अधीन ही है। बजट घोषणा पर अमल क्यों नही हो रहा है। रोजाना यहां से गुजरने वाले यात्री भाजपा सरकार को कोस रहे हैं। उनका कहना है कि मुख्यमंत्री स्वयं दरा की नाल से गुजरकर आम जनता की तकलीफ को महसूस करें। रेलवे अंडर ब्रिज यदि टेंडर प्रक्रिया में उलझा है, तो मंत्री उसे हल करें। केंद्र और राज्य दोनो में एक ही सरकार होने पर भी यह समस्या एक साल से हल नही हो पा रही है। ऐसे में बार-बार जनसुनवाई कार्यक्रम करना महज औपचारिकता बन गया है। राज्य सरकार की नींद कितनी ओर मोतों के बाद खुलेगी।