कोटा में जिंदल लेप्रोस्कोपिक हॉस्पिटल हुई जटिल सर्जरी, लार्वा बाहर निकालने से महिला को मिली राहत
न्यूजवेव@ कोटा
50 वर्षीया महिला की नाभि के बांयी ओर असहनीय दर्द होने से उसकी स्थिति नाजुक हो गई। परिजनों ने एक चिकित्सक से परामर्श लिया, जिन्होंने पथरी का दर्द समझकर मरीज की सीटी स्केन जांच करवाई। रिपोर्ट में रोगी की मांसपेशियों के बीच में मवाद होने की संभावना जताई गई। लेकिन इलाज से उसे कोई राहत नहीं मिली।
परिजनों ने कोटा में जिंदल लेप्रोस्कोपिक हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. दिनेश जिंदल को दिखाया। उन्होंने महिला रोगी की आंतों में फीता कृमि (टीनिया सेलियम) होने की संभावना बताई। फीता कृमि का यह लार्वा पेट के बांयें हिस्से में मासंपेशियों के अंदर तक पहुंच गया था। डॉ. जिंदल ने जटिल ऑपरेशन में रोगी के पेट से मवाद एवं लार्वा को बाहर निकाला तथा मांसपेशियों की सफाई की। बायोप्सी जांच में पता चला कि रोगी को सिस्टीर्काेसिस नामक बीमारी है। महिला का समय पर डायग्नोसिस हो जाने से उसे जल्दी आराम मिल गया है।
क्या है सिस्टीर्काेसिस बीमारी
लेप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ.दिनेश जिंदल ने बताया कि सिस्टीर्काेसिस सामान्यतः सिर एवं आंखों में पायी जाती है। यह बीमारी शाकाहारी लोगों में दूषित पानी अथवा दूषित सब्जियों के सेवन से हो सकती है। उच्च वर्ग में यह रोग कम पाया गया है जबकि मांसाहारी एवं निम्न वर्ग के लोगों में अधिक होता है। आजकल हाईडेटिड सिस्ट व फीता कृमि (सिस्टीर्कोसिस) की संख्या बढ़ने लगी है। उनके पास एक वर्ष में 10 से 12 रोगी इससे ग्रसित होकर आते हैं। इससे शरीर में ऑटो इंफेक्शन तब होता है जब कोई व्यक्ति टीनिया सोलियम से ग्रसित हो, वह इस परजीवी के दूषित तत्व को दोबारा निगल लेता है।
जब आंतों में टेप वर्म पूरी तरह विकसित हो जाते हैं, उसके 6 से 8 सप्ताह में लक्षण दिखाई देने लगते हैं। ज्यादातर ये परजीवी मांसपेशियों में रहते हैं और कोई लक्षण पैदा नहीं करते हैं। ऐसे में जांच से ही इसका पता चलता है।
लार्वा से बचाव के लिये यह करें
टेप वर्म से बचने के लिये पूरी तरह पका हुआ भोजन लें। फल एवं सब्जियों को अच्छी तरह धोकर उपयोग में लें। बरसात के मौसम में दूषित पानी से बचें, फिल्टर पानी का ही सेवन करें। परजीवी या लार्वा को मारने के लिये एल्बेंडाजोल या प्रॉजिकांटल दवा लें। सूजन कम करने के लिये सूजनरोधी दवायें लें। सिस्ट आंख या मस्तिष्क में है तो किसी विशेषज्ञ चिकित्सक से परामर्श लें। इसका मांसपेशियों में पहुंचना बहुत घातक होता है। क्लिनिकल टेस्ट से इसका निदान संभव है।