सुवि नेत्र चिकित्सालय कोटा में ट्राईफोकल टोरिक लेंस का सफल प्रत्यारोपण
न्यूजवेव @ कोटा
सुमेरगंमण्डी (बून्दी) निवासी सरकारी शिक्षक दिनेश गौचर (42) की दाहिनी आंख में किरेटोग्लोबस नामक दुर्लभ नेत्र रोग था, जिसके कारण उनके चश्में का नंबर माइनस 13 हो गया था। इसके साथ ही उनको 4 नंबर का तिरछा नंबर भी था। विगत 6 माह से उनकी दोनो आंखों में न्यूक्लियर लेंटिकुलर आपेसिटी होने के कारण धुधंला दिखाई देने लगा। इन सभी नेत्र समस्याओं के कारण उनको अध्यापन कार्य में काफी परेशानी आने लगी। अपनी नेत्र समस्याओं को लेकर वेे अनेको नेत्र सर्जन से मिले परन्तु समाधान नहीं हो सका। अपने परिचितों के माध्यम से उन्होनें सुवि नेत्र चिकित्सालय कोटा में डाॅ. सुरेश पाण्डेय से परामर्श लिया । डाॅ. विदुषी पाण्डेय ने उनके आंखों के पेण्टाकेम टोपोग्राफी, आप्टिकल बायोमेट्री एवं ओ.सी.टी. टेस्ट किए एवं नेत्र आपरेशन की रूपरेखा बनाई।
24 मार्च को सुवि नेत्र चिकित्सालय कोटा में डाॅ. सुरेश पाण्डेय ने रोगी दिनेश की दाहिनी आंख में टोपिकल माईक्रो फेको विधी से मोतियाबिन्द आपरेशन कर 7.5 नंबर का पेनोआप्टिक्स ट्राईफोकल टोरिक लेंस का सफल प्रत्यारोपण किया। सफल आपरेशन बाद उनकी दाहिनी आंख की पास एवं दूर की शत प्रतिशत रोशनी 6/6 एवं एन 6 लोट आई है जिससे उनको चश्मा लगाने की आवश्यकता नही है।
होली पर्व दिनेश गौचर के लिए विशेष खुशियां लेकर आया क्योंकि अब वे पास व दूर का काम बिना चश्मा लगाए कर सकते है।
उन्होने इस दुर्लभ आपरेशन के लिए डाॅ.सुरेश पाण्डेय एवं डॉ विदुषी पाण्डेय सहित सुवि नेत्र चिकित्सालय टीम का आभार व्यक्त किया। डाॅ. सुरेश पाण्डेय ने बताया कि किरेटोग्लोबस नामक रोग में सफल ट्राईफोकल लेंस का सफल प्रत्यारोपण करने का यह एक दुर्लभ केस है जिसे अंतर्राष्ट्रीय नेत्र जर्नल में प्रकाशन हेतु भेजा गया है।
*किरेटोग्लोबस आपरेशन इसलिए है चुनौतीपूर्ण*
किरेटोग्लोबस रोगियों में आंख की पारदर्शी पुतली का उभार होने के कारण किरेटोमेट्रि रीडिंग 50 तक हो जाती है जिसके कारण कृत्रिम लैंस का सटीक नम्बर निकालना संभव नहीं हो पाता है। ऐसे रोगियों में चश्में का तिरछा नम्बर भी रहता है। ऐसे रोगियों के लिए बारेट लैंस पावर कैलकुलेशन फार्मूला के माध्यम से सटीक नम्बर निकाला जाता है और लैंस प्रत्यारोपण किया जाता है।