Monday, 29 December, 2025

भव तापेन तप्तानाम् योगो हि परमौषधम

विश्व योग दिवस पर विशेष आलेख-


 योगाचार्य गोपाल सिंह गुप्ता, नरसिंहगढ
सांसारिक दुःखों से त्रस्त व्यक्तियों के लिये योग ही एकमात्र औषधि है। प्राकृतिक नियमों को अपना कर व्यक्ति अपने जीवन को स्वस्थ, सुखी, सम्पन्न और शान्तिमय बनाने में सफल हो सकता है। यौगिक प्रक्रियाएं शरीर की सम्पूर्ण प्रणालियों का शोधन करती है, अंतःस्त्रावी ग्रन्थियों (एंडोक्राइन ग्लेंड्स) के कार्यों में सामंजस्य स्थापित करके उनके कार्यों को तेज करती है, जिससे जीवनी शक्ति के विकास के साथ-साथ रोग प्रतिरोधक शक्ति तथा व्यक्ति की कार्य क्षमता में वृद्धि होती है।
व्याधियां तो प्रकृति का विधान है, परन्तु हमें स्वास्थ्य के प्रति सदैव सजग रहना चाहिए। इसलिए प्राणायाम अमर विद्या है। प्राणायाम द्वारा शुद्ध रक्त ,फेफड़ों से होता हुआ हृदय को पहुंचता है जो सारे शरीर को स्वस्थ बनाता है। प्राणायाम के कई तरह के होते हैं, जैसे कपालभाति, भस्त्रिका, लोम-विलोम ।
कपालभाति – धीरे से सांस लेना और नाभि से झटका देते हुए सांस को बाहर निकालना। इस क्रिया का जैसा नाम है वैसा ही कार्य है अर्थात कपाल की समस्त सूक्ष्म नाडियों को सबल बनाना होता है। जैसे नारियल के ऊँचे पेड में नारियल पानी अमृत के समान इसी विधि से पहुँचता है। आधुनिक वैज्ञानिकों ने नारियल गिरी और नारियल पानी स्मरण शक्ति, मानसिक शक्ति को सबल बनाने में महत्वपूर्ण बताया है। मानसिक चिंतन करने वालों को यह क्रिया बहुत लाभदायक है।
भस्त्रिका – भस्त्रा शब्द से भस्त्रिका बना है। और भस्त्रिका का काम शरीर के त्रिदोष को सम करना है। ‘‘सम दोषः समाग्निश्च सम धातु मलक्रिया‘‘। इन सबको समान रूप से पुष्ट एवं स्वस्थ रखता है। इससे शरीर ओजस्वी, तेजस्वी और सुंदर बनता है।
लोम-विलोम – यह प्राणायाम श्वेद ग्रंथियों को स्वस्थ बनाता है। जिससे हमें सर्दी गर्मी का एहसास नहीं होता। शरीर का तापमान कम ज्यादा नहीं होता। शरीर के विकारों को निकालकर चमड़ी को सुंदर स्वस्थ और सहनशील बनाता है। प्रत्येक व्यक्ति को हर अवस्था में इस प्राणायाम को करना चाहिए। बुजुर्ग, बालक या गर्भवती महिलाएँ इस प्राणायाम को नियमानुसार लेट कर या बैठ कर धीरे धीरे कर सकते हैं।
सभी प्राणायाम नित्य कर्म (शौचादि) से निवृत होकर बिना आहार के प्रातः या शाम को करना चाहिए। प्राणायाम और व्यायाम में यही अंतर है। व्यायाम करने से दूषित रक्त हृदय पर दबाव बनाकर फेफडों पर जाता है। जिससे हृदयरंग और स्नायु विकार की संभावना बढ़ती है। जिम में या खेल के मैदान में दौडते हुए अथवा स्टेज पर नृत्य करते हुए पुरुष या महिला को मौत की नींद में सोते हुए देखा व सुना गया है। व्यायाम से अनावश्यक सांस फूलना, अवसाद एवं मानसिक तनाव को हृदय और फेफडे सहन नहीं कर पाते है, इसलिए इंसान की मृत्यु हो जाती है।
अति सर्वत्र वर्जियेत
व्यायाम बुरी चीज नहीं है किंतु सावधानीपूर्वक क्षमता अनुसार धीरे-धीरे करना चाहिए। प्राणायाम में शुद्ध रक्त ही फेफडों द्वारा हृदय को पहुंचता है। इससे प्रसन्नता, स्फूर्ति और आनंद का अनुभव होता हैं। इसलिए, मनुष्य को नियमित प्राणायाम अवश्य करना चाहिए।

परिचय- योगाचार्य श्री गोपाल सिंह गुप्ता

शासकीय सेवा में रहते हुए स्वाध्यायी छात्र के रूप इंटरमीडिएट, बी,.ए,एवम बी. एड.की उपाधि प्राप्त की। शिक्षा विभाग द्वारा शासकीय योग प्रशिक्षण केंद्र भोपाल द्वारा आयोजित त्रैमासिक प्रशिक्षण शिविर में योग प्रशिक्षण प्राप्त किया,प्रशिक्षण शिविर में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन के चलते आपको शासकीय योग प्रशिक्षण  केंद्र भोपाल के योग निर्देशक के पद पर नियुक्त किया गया। इस पद पर रहते हुए आपने योग के प्रचार प्रसार के लिए कई महत्वपूर्ण कार्य किए । पूर्व राष्ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा, तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री प्रकाश चंद्र सेठी,श्री श्यामचरण शुल्क,श्री मोतीलाल वोरा,श्री अर्जुन सिंह,श्री सुभाष शेखर,श्री भंवर सिंह पोर्ते,श्री भोपाल राव पंवार,श्री जगदीश अवस्थी,श्रीमती निर्मला बुच,आदि सुप्रसिद्ध व्यक्तियों को आपने योग प्रशिक्षित किया।

इस दौरान 7 सालो में लगभग 1200 से ज्यादा लोगों को आपने योग प्रशिक्षण दिया। आपने तीन महीने तक कश्मीर के कटरा में भी योग प्रशिक्षण दिया। आप राजगढ़ जिले से पहले शासकीय योग शिक्षक भी रहें है। आपके योग शिक्षण से प्रभावित होकर  तत्कालीन शिक्षा मंत्री अर्जुन सिंह ने लिखा था,” में जब तक में हूं गुप्ता भोपाल  में ही रहेंगे” इसके अतिरिक्त आपने पच मढ़ी,पेंड्रा, चांदामेटा,अमरकंटक भिंड,इंदौर,नरसिंहगढ़ आदि में कई प्रशिक्षण शिविर लगाए,जिसमे सभी तरह के प्राणायाम, हठ योग,समाधि,योगासन,प्राकृतिक चिकित्सा के अंतर्गत मिट्टी चिकित्सा ,जलनेति, वस्त्रधोति ,शंख प्रक्षालन , षठकर्म, बाघी ,विरेचन,कुंजर क्रिया आदि कई योगिक क्रियाओं का प्रशिक्षण ,एवम हैरतअंगेज प्रदर्शन किया।

सेवा के अंतिम वर्षों में  नरसिंहगढ़ से सन 2000 में आप प्रधानाचार्य पद से सेवानिवृत्त हुए। सेवानिवृत्ति के बाद आप सपरिवार नरसिंहगढ़ में ही कई लोगों को प्रशिक्षित करते हुए  निरंतर योग , प्राकृतिक चिकित्सा,आयुर्वेद ,हिंदी साहित्य की सेवा में सेवारत है। अभी आपने योग को सरल बनाने के लिए 30 मिनिट की योग साधना नाम से अपना एक एल्बम निर्मित किया है। आपने योग, हिंदी साहित्य पर पुस्तक लिखी है उनमें शंख प्रक्षालन,सौरभ स्मारिका, मक्का की राबड़ी आदि है।

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