Tuesday, 30 December, 2025

‘मैं वीर रणबांकुरों की धरती हूं….’

राजस्थान दिवस पर विशेष: शौर्य, संस्कार और स्वाभिमान की कहानी नेत्र सर्जन डॉ. विदुषी शर्मा, डॉ.सुरेश पाण्डेय की कलम से…

‘मेरा परिचय क्या पूछ रहे
मैं  वीर रणबांकुरों की धरती हूँ,
तपती रेत की लपटों में,
स्वाभिमान की प्रचंड लौ हूँ।
अरावली के हर शिखर पर,
मेरा शौर्य एवं गौरव अंकित है…’

मैं राजस्थान हूँ…मेरा गौरवशाली इतिहास 30 मार्च 1949 को एक नए स्वरूप में ढला, जब राजपूताना की रियासतें एकजुट होकर राजस्थान बनीं। यह केवल राजनीतिक एकीकरण नहीं था, यह हमारी आत्मा की एकजुटता थी।
मैं केवल एक भूभाग नहीं, मैं त्याग, शौर्य और पराक्रम का प्रतीक हूँ.. मेरी मिट्टी में वीरता की अमर गाथाएँ बसी हैं.. मेरी हवाओं में मरुभूमि की गरमी के साथ बलिदानों की गूंज भी है… मेरी आत्मा में महाराणा प्रताप का संघर्ष है.. पृथ्वीराज चौहान का शौर्य है और पन्ना धाय का त्याग है। हल्दीघाटी का युद्ध केवल तलवारों की टकराहट नहीं, आत्मगौरव की हुंकार थी। चित्तौड़गढ़ की रानी पद्मिनी का जौहर मेरी अस्मिता की रक्षा का प्रण था। कुंभलगढ़ का किला,जिसकी दीवारें चीन की दीवार के बाद सबसे लंबी हैं, मेरे गौरवशाली इतिहास की अमिट छवि है। मेरे स्वर्णिम इतिहास का युगपुरुष डॉ. मथुरालाल शर्मा ने अनेकों पुस्तकों में जीवंत चित्रण किया है।
लेकिन मैं केवल तलवारों की भूमि नहीं हूँ, मेरी आत्मा भक्ति और प्रेम से पूरित है। मीरा भक्ति, पुष्कर के ब्रह्मा मंदिर, दिलवाड़ा के जैन मंदिर मेरी सांस्कृतिक धरोहर हैं। जैसलमेर का सोनार किला मेरे स्वर्णिम इतिहास का प्रतीक है।
इतिहास गवाह है मैंने कठिनाइयों से संघर्ष किया, पर कभी झुका नहीं। आज जल प्रबंधन, पर्यावरण संरक्षण एवं मेरे विशाल भूभाग में विचरण करने वाले वन्य जीवों का संरक्षण, मेरी सबसे बड़ी चुनौती है। मेरी झीलें, बावड़ियाँ, कुंड और नदियाँ जैसे-चंबल, कालीसिंध, बनास, परवन, आहू आदि इनका सही प्रबंधन हो तो मैं जल संकट से मुक्त हो सकता हूँ। मेरा वन्य जीवन भी गौरव का प्रतीक है। रणथंभौर के बाघ, सरिस्का के दुर्लभ वन्यजीव, मेरे अभयारण्यों में बसे असंख्य पशु, पक्षी एवं जीव मेरी प्राकृतिक धरोहर हैं। अवैध शिकार रोकना और मेरी हरितिमा, मेरे जंगलों को बचाना, मेरे पर्यावरण का भावी पीढ़ी के लिए संरक्षण करना प्रशासन एवं जन साधारण की सबसे बड़ी प्राथमिकता हो।
मेरे भूभाग के सैंकड़ों किले, हवेलियाँ, स्मारक मेरे आत्मगौरव के प्रतीक हैं। आमेर, चित्तौड़गढ़, मेहरानगढ़, नाहरगढ़ आदि मेरे अनेकों किले सिर्फ पत्थरों की संरचनाएँ नहीं, ये मेरी आन, बान और शान हैं। पर्यटकों की बढ़ती संख्या के साथ इनका स्वच्छ, सुन्दर और संरक्षित रहना आवश्यक है।
जहां माटी में शौर्य महकता है..
मेरा सपना है कि मैं केवल ऐतिहासिक नहीं, बल्कि भारत के सबसे विकसित राज्यों में गिना जाऊँ। मेरा अपना पिंकसिटी जयपुर अब स्टार्टअप हब बन रहा है, सूर्य नगरी के नाम से जाना जाने वाला मेरा जोधपुर और सिटी ऑफ लेक से विश्वभर में विख्यात मेरा उदयपुर पर्यटन एवं नवाचार के महत्वपूर्ण केंद्र बन रहें हैं। कचौरी की तीखी स्वाद के लिए विश्वभर में मशहूर मेरा कोटा सिर्फ कोचिंग सिटी नहीं, बल्कि केयरिंग सिटी, पर्यटन सिटी, शिक्षा और तकनीकी शोध का केंद्र भी बनने की और अग्रसर है। मेरा अपना बीकानेर नमकीन और मिष्ठान की खुशबू विश्वभर में फैला चुका है.

मेरे गौरव हैं मेरे सपूत

देश विदेशों में बसे मेरे अपने राजस्थानी सपूत मेरे गौरव हैं। राजस्थान दिवस के अवसर पर मेरी उनसे प्रार्थना है कि वे मेरे विशाल भूभाग के गाँवों के स्कूलों, चिकित्सालयों को गोद लें, मेरा आर्थिक विकास करें, और मेरी माटी का कर्ज चुकाएँ। मेरे पास अभी भी अशिक्षा, बाल विवाह, अंधविश्वास की अनेकों चुनौतियाँ हैं। मेरी बेटियाँ पर्दे से निकलकर अंतरिक्ष, विज्ञान, प्रशासन, खेल और उद्योगों में नाम कमा रही हैं, लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। मेरे किसान, जो मेरी रेगिस्तानी भूमि में भी सोना उगाते हैं, आधुनिक कृषि तकनीकों से सशक्त हों। जल संरक्षण, सौर ऊर्जा, और हरित क्रांति मुझे आत्मनिर्भर बना सकते हैं। मैं सिर्फ रेगिस्तान नहीं, मैं अनेकों संभावनाओं की भूमि हूँ। मेरे थार में सौर और पवन ऊर्जा की अपार संभावनाएँ हैं, जो पूरे भारत की ऊर्जा जरूरतें पूरी कर सकती हैं।
30 मार्च 2025 को जब हिन्दू नववर्ष के पावन अवसर पर हर घर दीप जलाएगा, हर नगर उत्सव मनाएगा, मेरा हृदय गर्व से भर जाएगा। यह पर्व सिर्फ अतीत के बलिदानों को नमन करने का नहीं, बल्कि भविष्य को संवारने का संकल्प लेने का भी है। मैं हर वर्ष की तरह इस बार भी अपनी नई ऊँचाइयाँ छूऊँगा। मेरे रेगिस्तान की रेत के हर कण में मेरे संघर्षों की गाथाएँ दर्ज हैं।
मैं राजस्थान हूँ, मैं हमेशा रणबांकुरों की शान था, हूँ और रहूँगा… जय जय राजस्थान.

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