नवनीत कुमार गुप्ता.
न्यूजवेव@ नईदिल्ली
पृथ्वी जीवनमय ग्रह है। जल, वायु, मिट्टी एवं जंगल प्रकृति के उपहार हैं जो जीवन के विविध रूपों को पनाह दिए हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा सन् 1972 से 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसका लक्ष्य पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूक बनाना है। इस वर्ष का विषय है – टाईम फॉर नेचर यानी प्रकृति के लिए समय। ‘जैवविविधता’ है। हमारे देश में सदैव प्रकृति का सम्मान किया जाता रहा है।
जैवविविधता की बात की जाए तो इसमें सभी प्रकार के जीव आते हैं चाहे वह कितने ही बड़े या छोटे हों और कहीं भी आवास करते हों। लेकिन अनेक जीवों की घटती संख्या आज चिंता का विषय बनती जा रही है। हाथी, गेंदों, बाघों, कछुओं, गोरिल्ला जैसे विभिन्न जीवों का शिकार चोरी-छिपे किया जाता है। यह दुर्भाग्य है कि दिनों-दिन वन्यजीवों की संख्या कम होती जा रही है। वन्यजीवों की कमी की मुख्य वजह उनका अंधाधुंध शिकार भी है।
कुछ लोग जानबूझकर जीवों को यातना देते हैं। कुछ दिन पहले केरल में एक हथिनी को अनानास के साथ आतिशबाजी खिला दी जिससे तड़प-तड़प कर उसकी हथिनी की मौत हो गयी। उसके गर्भ में पला जीव भी इन दुनिया को देखे बिना चला गया। ऐसी घटनाएं मानवता को शर्मसार करती हैं।
शिकार करने के पीछे पैसा का लालच और कुछ अंधविश्वास शामिल होते हैं। अनेक लोगों ने बाघों की हत्या को पुत्र लाभ से जोड़ दिया। जिससे कुछ लोगों ने पुत्र लाभ के लिए बाघों को मारा या किसी दूसरे से मरवाया। इसी प्रकार बाघ और गेंडों के अंगों के बारे में प्रचलित अनेक अवैज्ञानिक धारणाओं के चलते बाघ की हड्डी, जिगर, तिल्ली, चर्बी, नख, दांतों और हंसली की तस्करी की जाती है।
वन्यजीव हमारे राष्ट्रीय गौरव हैं। इसीलिए वन्यजीवों के संरक्षण की ओर प्रत्येक व्यक्ति को ध्यान देना होगा साथ ही सरकार को कुछ ऐसे कड़े नियम बनाने होंगे जिनसे वन्यजीव अपना जीवनयापन कर सकें। चाहे कितना ही छोटा जीव हो उसके अस्तित्व का भी महत्व है। जैसे यदि मधुमख्खी न हो तो परागण नहीं होगा। यह तो हम जानते ही हैं कि परागण के कारण ही पेड़-पौधों पर फल आते हैं। इसलिए धरती पर जीवन का ताना-बाना ऐसा बुना हुआ है कि सभी एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। इसलिए हमें इस धरती को जीवनदायी बनाए रखना है तो सभी जीवों का सम्मान करना होगा।