जायसवाल हॉस्पिटल में हेड इंजरी पर हुई अवेयरनेस सेमीनार
न्यूजवेव, कोटा
दुर्घटनाओं मे 70 से 75 प्रतिशत मामले युवाओं से जुडे हैं। इन दुर्घटनाओं में हेड इंजरी के केस सर्वाधिक हैं। जिसमें 50 से 60 प्रतिशत मामले ट्रैफिक एक्सीडेन्ट के होते है। हेलमेट व ट्रैफिक नियमों का पालना नहीं करना, नशे में वाहन चलाना, वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करना आदि मुख्य कारण हैं। ‘हेड इन्जरी’ पर जायसवाल अस्पताल में हुए अवेयरनेस प्रोग्राम में न्यूरो सर्जन दीपक वाधवा ने कहा कि ट्रेफिक नियमों की पालना कर खुद को बड़ी दुर्घटना से बचाएं।
उन्होनें कहा कि भारत सिर की चोंट (हेड इंजरी) की राजधानी बनता जा रहा है। देश मे ंप्रतिवर्ष 10 लाख मामले दुघर्टनाओं में हेड इंजरी के आते है, जिसमें समय पर उपचार मिल जाने से 1 लाख लोगों को बचाया जाता है। कई मामले गम्भीर होने पर घायल परिवार वालों पर बोझ बन कर रह जाता है।
इन हादसों से बचाव के लिए खुद को जागरूक होना पडे़गा।
दुर्घटनाओं में हेड इंजरी के अलावा चेहरे पर चोट आना, जबडे की हड्डी टूटना, अंग भंग होना आदि कारणों से व्यक्ति परिवार पर बोझ बनकर जीने को मजबूर हो जाता है। दुर्घटना के बाद जब ऑपरेशन के दौरान युवाओं की मौत होती है तो डॉक्टर्स भी मृतक के परिजनों को बताने में बहुत व्यथित होते हैं।
ऐसे हादसों से बचने के लिए ट्रैफिक नियमों की जानकारी, अनुपालना व जागरूकता जरूरी है। इसका एक पोस्टर जायसवाल हॉस्पिटल ने जारी किया है, जो शहर के प्रमुख चौराहों पर लगाए जाएंगे।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथी रिटायर्ड आरएएस अधिकारी केएल जायसवाल सहित डॉ.संजय जायसवाल, डॉ.जुझर अली, आर्थोपेडिक ट्रोमा विशेषज्ञ डॉ.योगेश गोत्तम, डॉ.अक्षत गुप्ता मौजूद रहे। डॉ.गुलाम रसूल, डॉ.जसवंत आर्य व पीआरओ भूपेन्द्र ने अतिथियों का स्वागत किया।
शॉर्टकट से दूसरे की जिन्दगी खतरे में
डॉ.संजय जायसवाल ने बताया कि आज लाईसेंस प्राप्त करना आसान है किन्तु वाहन चलाते समय सही नियमों की जानकारी किसी को नहीं होती। इस दौर में जल्दबाजी में व्यक्ति शॉर्टकट अपनाता है, जिससेे या तो खुद के मौत के गले लग जाता है, या दूसरे की जिन्दगी खतरे में डालते है। इस मौके पर डॉ. जुझर अली, आर्थोपेडिक ट्रोमा विभाग के डॉ.योगेश गोत्तम, डॉ.अक्षत गुप्ता ने भी विचार व्यक्त किये।
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