न्यूजवेव @ हैदराबाद
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. सिवन ने कहा कि 5 महीनों में 5 प्रक्षेपण करने पर ध्यान केंद्रित है. इनमें चंद्रयान- 2 अभियान भी शामिल है .
सिवन अंतरिक्ष विभाग में सचिव और अंतरिक्ष आयोग के अध्यक्ष भी हैं.उन्होंने बताया कि 2018 की पहली छमाही में श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष केंद्र से जिन अभियानों की योजना है, उनमें जीएसएलवी – एफओ8 (जीसैट – 6 ए उपग्रह), जीएसएलवी एमके3 (सेकेंड डेवलपमेंट फ्लाइट), ‘चंद्रयान- 2’ और पीएसएलवी (आईआरएनएसएस – 1 आई दिशा एवं स्थान सूचक उपग्रह) शामिल हैं. अंतरिक्ष एजेंसी ने एरियनस्पेस को 5 . 7 टन वजनी जीएसैट – 11 उपग्रह जून तक प्रक्षेपित करने के लिए एक अनुबंध भी दिया है.
इसका प्रक्षेपण फ्रेंच गुयेना के कौरौ स्थित यूरोपीय अंतरिक्ष संघ अंतरिक्ष स्थल से किया जाएगा. भारत के बेड़े में फिलहाल 45 आर्बिटिंग उपग्रह हैं और अंतरिक्ष एजेंसी प्रमुख ने कहा कि इतनी ही संख्या में अंतरिक्षयानों की भी जरूरत है. हम अगले साल से प्रति वर्ष 15 से 18 प्रक्षेपण करने की योजना बना रहे हैं.
जीसैट – 11 को विदेशी अंतरिक्ष यान से प्रक्षेपित किया जाने वाला संभवत: आखिरी भारी उपग्रह समझा जा रहा है. उन्होंने कहा कि हम यह नहीं कह सकते कि हम किसी विदेशी अंतरिक्ष यान की मदद नहीं लेंगे.
चार टन तक के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की क्षमता
उन्होंने कहा कि अभी हमारी क्षमता चार टन तक के उपग्रहों को प्रक्षेपित करने की है. उस उच्चतर क्षमता तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं. हम उपग्रह के आकार को घटाने के बारे में सोच रहे हैं. जो कुछ हमें 5. 7 टन वजन के उपग्रह से मिल रहा है, वही हमें चार टन वजन के उपग्रह से भी मिल सकता है, बशर्ते कि हम इलेक्ट्रिक प्रणोदक (प्रोपल्शन) का इस्तेमाल करें. सिवन ने कहा कि यह हमारी जीएसएलवी की क्षमता के अंदर होगा.
दूसरी डेवलपमेंट फ्लाइट जून से पहले
जीएसएलवी एमके 3 की दूसरी डेवलपमेंट फ्लाइट जून से पहले होने का कार्यक्रम है. अंतरिक्ष एजेंसी ने छोटे रॉकेट के डिजाइन और विकास पर काम शुरू किया है ताकि लागत में कटौती की जा सके. इसरो अधिकारियों ने कहा है कि यह करीब 500 किग्रा वजन का एक प्रक्षेपण यान है.
इसरो अध्यक्ष ने कहा कि काम चल रहा है. इसमें कुछ वक्त लगेगा हम उपलब्ध धन से इसे (छोटे रॉकेटों से जुड़ा कार्य) पूरा करने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं, छोटे रॉकेटों से होने वाले फायदे के बारे में इसरो अधिकारियों ने बताया कि इससे छोटे उपग्रहों की लागत में कमी आएगी और उनके प्रक्षेपण के लिए इंतजार की अवधि भी घटेगी.