Thursday, 30 October, 2025

तीन निराश्रित बेटियों ने अपने हाथों से रचा नया संसार

कोटा। सूरज तो सिर्फ दिन में रोशनी देता है लेकिन बेटियां पूरा जीवन घर को रोशनी से भर देती है। शहर के मधु स्मृति महिला बाल कल्याण संस्थान में तीन निराश्रित बेटियों राधिका, काजल व सायबीन पर आज भले ही माता-पिता का साया न हो, लेकिन 18 वर्षों से साथ रहते हुए उन्हांेने अपने हाथों व हुनर से नया संसार रच दिया। तीनों ग्रेजुएशन कर रही हैं। संस्थान की संरक्षिका बृजबाला निर्भीक ने 18 वर्ष की उम्र होने पर उन्हें बेटियों के रूप में गोद लेकर आगे पढ़ाने की जिम्मेदारी ले ली। ‘दीदी’ की भूमिका में ये तीनों सभी 42 निराश्रित बच्चों के साथ एक संयुक्त परिवार में रह रही हैं।
आरएएस बनना चाहती है राधिका

18 वर्ष पहले राधाअष्टमी के दिन तेज वर्षा एवं बाढ़ के दौरान बालुदा पुलिया पर एक बच्ची पाॅलिथीन बैग में लिपटी हुई मिली। बारां पुलिस ने उसे संभाला और कोर्ट के निर्देश पर मधु स्मृति संस्थान में भेजा। यहां बालिका की परवरिश होती रही। वह स्कूल भी जाने लगी। दसवीं में उसे 49 प्रतिशत तथा 12वीं में 55 प्रतिशत अंक मिले। कूकिंग, सिलाई, खूबसूरत पेंटिंग व डांस में रूचि होने से उसने कभी घर की कमी महसूस नहीं की। संस्थान में उसे परिवार जैसा वातावरण मिला। इन दिनों वह बीए सेकंड ईयर में है तथा एसटीसी प्रथम वर्ष कर चुकी है। भविष्य में आरएएस बनने के लिए वह हिस्ट्री व सामान्य ज्ञान पर दिन-रात मेहनत कर रही है। निदेशक डाॅ.अंजली निर्भीक ने बताया कि एसटीसी के बाद एक साल के लिए उसे सिविल सर्विस की कोचिंग के लिए जयपुर भेजेंगे।
रामायण पढ़ती है दृष्टिहीन सायबीन
बचपन से अपनी बायीं आंख से वह दृष्टिहीन है लेकिन जीआरपी थाना, कोटा से मधुस्मृति संस्थान में आकर उसने जिदंगी का नया अध्याय शुरू किया। यहां रहते हुए उसे कभी घर या माता-पिता की याद नहीं आई। उसे नहीं मालूम कि माता-पिता कहां है। मुस्लिम होकर भी बचपन से वह रामायण पढ़ती है। देशभक्ति गीतों से मन मोह लेती है। सिलाई सीखते हुए उसने जींस से पायदान तैयार किए। बिना ट्यूशन पढ़ते हुए उसने 10वीं में 47 प्रतिशत व 12वीं में 52 प्रतिशत अंक मिले। आश्रम में अपने जैसे गरीब लाचार बच्चों को देख वह जुलाई से उन्हें पढाने भी लगी। खुद बीए प्रथम वर्ष में है।
जज बनना चाहती है काजल
18 वर्षीय काजल दुनिया में अकेली है लेकिन अपनी तरह राधिका व सायबीन को साथ देख उसका हौसला बढ़ गया। उसने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसे बेटी होने पर गर्व है। 10वीं में 43 प्रतिशत अंक मिले तो निराश नहीं हुई। 12वीं में उसे 53 प्रतिशत अंक मिले। अब बीए प्रथम वर्ष के साथ एसटीसी भी कर रह रही है। संस्थान में नृत्य सीखना उसे अच्छा लगा। माता-पिता जैसा स्नेह-प्यार मिलने से उसकी हिम्मत बढ गई। बड़ी होकर वह जज या सोशल वर्कर बनना चाहती है ताकि ऐसे वंचित वर्ग की सेवा कर सके।

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