दुर्लभ सर्जरी: कोटा में 21 वर्षीया महिला की हुई ल्रेप्रोस्कोपिक सर्जरी
न्यूजवेव @ कोटा
हाडौती अंचल के मरीजों को दुर्लभ ल्रेप्रोस्कोपिक सर्जरी के लिए अब मेट्रो शहरों में जाने की जरूरत नहीं है। गुरूवार को तलवंडी स्थित जिंदल लेप्रोस्कोपिक हॉस्पिटल में एक महिला का लेप्रोस्कोपी सिस्टम द्वारा एड्रिनल ग्लैंड सिस्ट का सफल आॅपरेशन किया गया।
निदेशक डॉ. दिनेश जिंदल ने बताया कि श्योपुर निवासी 21 वर्षीय महिला के पेट में कुछ दिनों से बहुत तेज दर्द था। जांच में पता चला कि उसकी बांयी एड्रिनल ग्लैंड में 10 गुना 10 सेंटीमीटर की गांठ है।
महिला इसलिए भी ज्यादा परेशानी रही कि 25 दिन पहले उसे सिजेरियन आॅपरेशन से बच्चा हुआ था। लेकिन गांठ में असहनीय दर्द होने से वह बच्चे को संभाल नहीं पा रही थी। ऐसे में उसका आॅपरेशन करना जरूरी था।
उन्होंने बताया कि ऐसे जटिल केस में आॅपरेशन दूरबीन से करना जोखिमपूर्ण था, क्योंकि यह गांठ आमाशय, पेंक्रियास , तिल्ली, व किडनी के बीच थी। आॅपरेशन से पहले रक्त जांच में पता चला कि उसका ब्लडग्रुप ए-नेगेटिव है, जो मुश्किल से उपलब्ध होता है।
जांच के बाद गुरूवार को लेप्रोस्कोप द्वारा 4 सूक्ष्म छिद्र करके उसका सफल आॅपरेशन करके 2 घंटे में उसकी मोटी गांठ निकाली गई। इस दुर्लभ दूरबीन सर्जरी में डाॅ. दिनेश जिंदल, डाॅ. अंकुर जैन, डाॅ. प्रद्युम्न गोयल, डाॅ विनोद भार्गव की टीम शामिल रही।
आॅपरेशन के महज 6 घंटे बाद महिला रोगी को तरल पदार्थ दिए गए, जिसमें वह खुद को सामान्य महसूस करने लगी। डाॅक्टर्स के अनुसार, यदि ऐसे मामलों में ओपन सर्जरी में 12 से 14 इंच का चीरा लगाया जाता है। ओपन सर्जरी में पेट व छाती दोनों को ओपन करना जोखिमपूर्ण होता है। क्योंकि इससे हर्निया व पेट में इंफेक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है।
उन्होंने बताया कि चूंकि यह ग्रंथि पेट के पिछले भाग में गहराई में होती है, इसलिए ओपन हार्ट सर्जरी में 12 से 14 इंच का बड़ा चीरा लगाया जाता है जबकि दूरबीन सर्जरी में 1-2 इंच के छोटे छिद्र से ही गांठ को बाहर निकाल दिया गया। कोटा में बडे़ शहरों की तुलना में सस्ती सर्जरी होती है।
क्या काम करती है एड्रिनल ग्रंथि
एंडो क्राइनोलाॅजिस्ट डाॅ अखिल जोशी ने बताया कि हमारे शरीर में किडनी से उपर 2 एड्रिनल ग्रंथि है, जो जीवन में हाॅर्मोंस या स्ट्रेस से जुडी होती हैं। इसे सुप्री रीनल ग्लेंड भी कहते हैं। शरीर मे हार्मोंन सामान्य से ज्यादा या अनियंत्रित होने लगे तो वजन बढ़ने, ब्लड प्रेशर, हाथ-पैरों में कमजोरी आने जैसे लक्षण होने लगते हैं। यह ग्रंथि मिलीमीटर साइज में होती है, जिसका सोनोग्राफी में भी पता नहीं चल पाता है। यह इंसान को लड़ने, भागने या डर से बाहर निकलने में मदद करती है। और सोडियम व पोटेशियम को नियंत्रित रखती है। 10 गुणा 10 सेमी साइज की ग्रंथि को कोटा में लेप्रोस्काॅपी सर्जरी से निकालना बड़ी सफलता है।
अब कोटा में एडवांस लेप्रोस्काॅपी सर्जरी
पहले एड्रिनल सिस्ट के केस में मरीजों को मेट्रो शहरों में रैफर किया जाता था, लेकिन अब कोटा मंे एडवांस लैप्रोस्काॅपी सर्जरी की सुविधाएं होने से कई दुर्लभ सर्जरी होने लगी है। इस सर्जरी से रोगी को 24 से 48 घंटे में छुट्टी मिल जाती है और वह बहुंत जल्द सामान्य रूटीन में आ जाता है।
– डाॅ दिनेश जिंदल, निदेशक, जिंदल लेप्रोस्कोपिक हाॅस्पिटल