Saturday, 14 June, 2025

स्मार्ट सिटी कोटा को कैटल फ्री बनाने का सपना टूटा, कोर्ट में याचिका दायर

धर्मबंधु आर्य
न्यूजवेव @कोटा

स्मार्ट सिटी कोटा को कैटल फ्री बनाने के लिये  नगर निगम द्वारा लगभग 300 करोड़ रू खर्च कर दिये गये। इसके बावजूद शहर के मुख्य मार्गों व वार्डों की आवासीय कॉलोनियों में मवेशियों का जमावडा सडकों पर यथावत बना हुआ है, जिससे शहर में दुर्घटनाओं का अंदेशा बना रहता है। इस मामले में एडवोकेट लोकेश कुमार सैनी, पत्रकार धर्मबंधु आर्य,जगदीश अरविंद एवं जगदीश प्रसाद नायक ने शुक्रवार को स्थायी लोक अदालत में एक जनहित याचिका दायर की। जिसमें न्यायाधीश ने आयुक्त नगर निगम कोटा दक्षिण, कोटा उत्तर को 2 जुलाई को जवाब-तलब किया है।

याचिका में बताया कि शहर को कैटल फ्री बनाने के लिये पूर्व राज्य सरकार ने धर्मपुरा गांव के पास 108 हैक्टेयर भूमि पर शहर के पशुपालकों के लिये देवनारायण एकीकृत आवासीय योजना के तहत 1200 पशुपालकों को आवासीय भूखंड रियायती दरों पर आवंटित किये। प्रदेश की इस प्रथम योजना में शेड सहित आवास, गोदाम, हाट बाजार, मानव एवं पशु चिकित्सालय,स्कूल, डेयरी उत्पाद बिक्री के लिये स्थान, बायोगैस प्लांट, सामुदायिक शौचालय, मेला ग्राउंड,रंगमंच, पानी, अंडरग्राउंड बिजली सप्लाई, सामुदायिक सुविधा केंद्र, पुलिस थाना सहित प्रवेश के लिये सिंहद्वार का निर्माण कराया गया। पशुओं के गोबर से आय बढाने के लिये उसे खरीदकर प्रोसेस करने के लिये आधुनिक बायोगैस प्लांट लगाया गया। इस योजना का उद्देश्य शहरवासियों को मवेशियों की गंदगी से छुटकारा दिलाने, बेसहारा गौवंश की रक्षा एवं पशुपालकों को सुविधायुक्त आवास उपलब्ध करवाना रहा।

दोबारा शहर की आवासीय कॉलोनियों में तबेले

इस ऐतिहासिक योजना में शहर के सभी पशुपालकों को भूखंड एवं आवास आवंटित कर उनमें शिफ्ट किया गया। इसके बावजूद योजना में पानी सहित अन्य सुविधाओं की कमी बताकर पशुपालकों ने दोबारा शहर की आवासीय कॉलोनियों में तबेले बनाकर बसना प्रारंभ कर दिया, जिससे मवेशियों की गंदगी के कारण शहर का स्वच्छता अभियान चौपट हो गया। इतना ही नहीं, आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों से भी मवेशी शहर में आकर जमा हो रहे हैं। शहर की इस प्रमुख जनसमस्या पर लगातार शिकायतें दर्ज कराने के बावजूद नगर निगम उत्तर एवं दक्षिण द्वारा कोई कदम नहीं उठाये जा रहे हैं।

गौशाला क्षमता 1100, वहां 3200 गौवंश
निगम के सूत्रों ने बताया कि नगर निगम की गौशाला की क्षमता 1100 गौवंश रखने की है, जबकि वर्तमान में वहां 3200 गौवंश है, जिससे उनके विचरण करने की जगह नहीं बची है। दुर्भाग्य से नगर निगम ने अभी तक शहर के बाहर एक और नई बडी गौशाला खोलने का प्रस्ताव राज्य सरकार को नहीं भेजा है।
नगर निगम के आंकडों के अनुसार, इस वर्ष 1500 मवेशियों को सडकों से पकडने पर 35 लाख रू खर्च हो चुके हैं। इसके बावजूद आवासीय क्षेत्रों में मवेशियों की संख्या लगातार बढती जा रही है। हाल ही में सुभाष नगर में सांड के हमले से एक बुजुर्ग की मौत हो गई। इससे पहले कई नागरिक व कोचिंग छात्र सांडों से घायल हो चुके हैं। अप्रार्थी नगर निगम व केडीए की अनदेखी से इस जनसमस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है, जिससे पैदल सैर करने वाली महिलाओं में भय बना रहता है।


याचिका में न्यायालय से अपील की गई कि जनहित में कोटा को कैटल मुक्त बनाने के लिये शहर में अवैध रूप से मवेशी बांधने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जाये एवं पशुपालकों को देवनारायण एकीकृत आवासीय योजना में शिफ्ट नहीं होने पर नियमानुसार, उनको आवंटित आवास निरस्त करने के निर्देश प्रदान करें।

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