विश्व नेत्रदान सप्ताह पर विशेष
राजेश गुप्ता करावन
नेत्रदान एक ऐसी प्रक्रिया है जो जीवन के अंत से प्रारंभ होती है और जीवन को अनतंता तक ले जाती है। यह अभिशप्त जीवन को वरदान बना देती है। देश में प्रतिवर्ष एक करोड लोगों की मृत्यु हो जाती है। देश में 60 लाख लोग दृष्टिहीन है जबकि स्वैच्छिक नेत्रदान करने वाले मात्र 45 हजार है। जो केवल आधा प्रतिशत से भी कम है।
हमें मिलकर देश में नेत्रदान अभियान को लेकर वृहद स्तर पर जन जागृति पैदा करने की आवश्यकता है। अगर देशवासी व सामाजिक संस्थाऐं साथ मिलकर जमीनी स्तर पर लोगों को जागृत कर पाने में सफल हो गये तो हम मृत्यु दर के 50 प्रतिशत लोगों को फिर से जागृत कर पायेंगे। संकल्प करें कि हम देश को अंधता से मुक्ति दिलाने के लिये अपना योगदान अवश्य करेंगे। अंतरराष्ट्रीस नेत्रदान सप्ताह के अवसर पर हमें यह महान संकल्प लेकर इसे साकार करना होगा।
याद रहे, अपने परिजन या मित्रों की मृत्यु होने के तत्काल पश्चात नेत्रदान कर सकते हैं। मृत्यु के पश्चात ही नेत्रदान हो सकता है। जीवन के अंत के बाद नेत्रदान के पश्चात जिनको कॉर्निया मिलता है वह इस सुन्दर जीवन और इस ब्रम्हाण्ड के सौन्दर्य की अनंत यात्रा कर सकता है। इस सृष्टि के अदभुत रहस्यों को और इस सुन्दर दुनिया के रहस्यों को देख सकता है। जिनके नेत्र नही होतें है या ये कह सकते है कि वे अन्धे होते है अन्धे या तो जन्मजात या दुर्घटनावश होतें है, अन्धे होने से जीवन अभिशप्त हो जाता है और अभिशप्त जीवन में बहुत मुश्किल घडी होती है। नेत्रदान की प्रक्रिया को सामाजिक जागृति बनाकर हम अभिशाप को वरदान में बदल सकते है। विश्व नेत्रदान सप्ताह पर हम सभी देशवासी यह संकल्प लें कि एक ऐसा महाभियान प्रांरभ करें कि अभिशाप को वरदान मे बदलेगें।
‘‘दान करो आंखों के मोती अमर रहेगी जीवनज्योति‘‘