रिसर्च स्टडी : तेंदुए के शिकार में शामिल पालतू पशुओं की संख्या छह गुना अधिक पायी गई
उमाशंकर मिश्र
न्यूजवेव @ नईदिल्ली
तेंदुए वन्यजीवों की तुलना में संरक्षित क्षेत्र के बाहर बड़ी संख्या में पालतू पशुओं को अपना शिकार बना रहे हैं। पश्चिम बंगाल के चाय बागान, कृषि भूमि तथा इनके बीच फैले वन क्षेत्रों में तेंदुओं का अनुकूलन बढ़ रहा है। यह बात भारतीय वैज्ञानिकों के एक ताजा अध्ययन में उभरकर सामने आई।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि तेंदुए सबसे अधिक गाय, बैल और बकरी जैसे पालतू जीव का शिकार कर रहे हैं जबकि वन्यजीवों में रीसस मकाक का शिकार अधिक किया गया है।
बेंगलूरू स्थित वाइल्ड लाइफ कन्जर्वेशन सोसायटी, नेशनल सेंटर फॉर बायोलॉजिकल साइंस, फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल रिसर्च एडवोकेसी एंड लर्निंग और पश्चिम बंगाल के वन विभाग द्वारा संयुक्त रूप से यह अध्ययन में
तेंदुए के मल के 70 नमूनों का परीक्षण कर उसके द्वारा किए गए शिकार की पहचान की गई।
अधिक शिकार किए जाने वाले जीवों का पता लगाने के लिए वहां शिकार की उपलब्धता और तेंदुए द्वारा उपयोग किए गए शिकार से तुलना की गई है। चाय बागानों और आसपास के संघन आबादी वाले 400 वर्गकिमी में यह अध्ययन किया गया ।
प्रमुख शोधकर्ता अरित्रा क्षेत्री के अनुसार “इस अध्ययन में संरक्षित क्षेत्र के बाहर चाय बागानों में तेंदुए की अनुकूलता और वहां उपलब्ध शिकार के उपयोग पर फोकस किया गया। अध्ययन क्षेत्र में तेंदुए के शिकार में शामिल पालतू पशुओं की संख्या छह गुना अधिक पायी गई।
रिपोर्ट के अनुसार, मानवीय क्षेत्रों में अधिक भोजन की उपलब्धता के कारण तेंदुए जैसे मांसाहारी जीव चाय बागानों और अन्य गैर वन क्षेत्रों में डटे रहते हैं। मानवीय इलाकों में बड़े मांसाहारी जीवों की घुसपैठ को देखते हुए दुनिया भर में संरक्षण तथा प्रबंधन प्रयासों के लिए समस्याएं खड़ी हो रही हैं। तेंदुए जैसे मांसाहारी जीवों के शिकार में मारे गए पशुधन के नुकसान से त्रस्त स्थानीय लोगों के गुस्से से इन वन्यजीवों के संरक्षण के लिए बेहतर तालमेल स्थापित करना जरूरी है।
अध्ययनकर्ताओं में अरित्रा क्षेत्री, श्रीनिवास वैद्यनाथन और डॉ विद्या आत्रेय शामिल रहेे। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, रफोर्ड फाउंडेशन और आइडिया वाइल्ड द्वारा इस शोध रिपोर्ट को शोध पत्रिका ट्रॉपिकल कन्जर्वेशन साइंस में दर्शाया गया। (इंडिया साइंस वायर)