उमाशंकर मिश्र
न्यूजवेव @ नईदिल्ली
एक्टिव इन्फ्रारेड थर्मोग्राफी जैसी तकनीक जो इंडस्ट्री में उपकरणों को जांचने के लिए काम आती है, भविष्य में यही तकनीक स्तन कैंसर का पता लगाने में मदद करेगी।
आईआईटी-रोपड़ के वैज्ञानिक एक दशक से ‘सेलीनियर फ्रीक्वेंसी मॉड्युलेटिड थर्मल वेव इमेजिंग’ नामक तकनीक के औद्यौगिक पहलुओं पर काम कर रहे हैं। अब इसी वैज्ञानिक थ्योरी पर आधारित स्तन कैंसर जांच की एक नई विधि विकसित की जा रही है।
‘एक्टिव इन्फ्रारेड थर्मोग्राफी’ तकनीक का उपयोग विभिन्न स्तन प्रकारों और हर उम्र के मरीजों पर किया जा सकेगा। गर्भवती या स्तनपान कराने वाली महिलाओं में स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए भी इसका उपयोग संभव हैं। इमेजिंग की यह विधि पीड़ा एवं स्पर्शरहित है, जो अन्य प्रचलित तरीकों की अपेक्षा अधिक तेज काम कर सकेगी।
इस तकनीक में थर्मल कॉन्ट्रास्ट के जरिये ट्यूमर का पता लगाया जा सकेगा। लेबोरेट्री में टेस्टिंग के दौरान इन्फ्रारेड कैमरे से स्तन की सतह से निकलने वाले उत्सर्जन की पहचान करके उस पर होने वाले ऊष्मीय बदलाव की मैपिंग की गई है।
ट्यूमर की मौजूदगी का ऐसे पता चलेगा
इस तकनीक पर रिसर्च कर रहे डॉ. रविबाबू मुलावीसला के अनुसार, ‘परीक्षण के दौरान अलग-अलग फ्रीक्वेंसी में थर्मल प्रभाव विभिन्न स्तन मॉडल्स पर डाला गया। इससे उत्पन्न थर्मल तरंगें त्वचा पर एक अंतराल पर निश्चित मात्रा में अस्थायी तापक्रम पैदा करती हैं।
ट्यूमर की मौजूदगी शरीर के उस भाग में ऊष्मीय प्रवाह को बदल देती है, जिससे सतह पर तापमान में बदलाव होता है। इस प्रक्रिया के दौरान अलग-अलग समय तथा फ्रीक्वेंसी के आंकड़ों के विश्लेषण से चरणबद्ध एवं विभिन्न आकार की छवियों का निर्माण होता है, जो बेहतर कन्ट्रास्ट के जरिये ट्यूमर का पता लगाने में मदद करती हैं।
डॉ मुलावीसला के अनुसार, ‘यह नई तकनीक स्तन कैंसर का पता लगाने के लिए प्रचलित मैमोग्राफी, अल्ट्रसाउंड और मैग्नेटिक रिजोलेंस जैसी मौजूदा विधियों की पूरक बन सकती है।’
शोधकर्ताओं के अनुसार घने स्तन में कैंसर का पता लगाने के लिए आमतौर पर उपयोग होने वाली मैमोग्राफी की अपनी सीमाएं होती हैं। चर्बीदार स्तन की अपेक्षा घने स्तन में वसा कम और ग्रंथि ऊतक अधिक होते हैं, जो मैमोग्राफी के जरिये ट्यूमर का पता लगाने में अक्सर बाधा पैदा करते हैं।
ट्यूमर क्षेत्र और ग्रंथी के बीच घनत्व में मामूली अंतर होने की वजह से स्तन के ग्रंथि क्षेत्र में स्थित ट्यूमर का पता लगाने में अक्सर दिक्कतें आती हैं और ट्यूमर-ग्रस्त तथा स्वस्थ हिस्से में भरपूर रेडियोग्राफिक कन्ट्रास्ट उपलब्ध कराने में मैमोग्राफी कारगर नहीं हो पाती। इसलिए घने स्तन की जांच के लिए मैमोग्राफी का सीमित उपयोग हो पाता है। मैमोग्राफी से रोगी को होने वाली परेशानी और रेडिएशन के कारण इसे उपयुक्त नहीं माना जाता।
डॉ मुलावीसला के अनुसार, ‘रिसर्च अनुमान की सफलता को देखते हुए हमारी कोशिश इस तकनीक को किफायती और पोर्टेबल बनाने की है, ताकि इसका उपयोग आसानी से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच सके।’ रिसर्च टीम में डॉ. मुलावीसला एवं गीतिका दुआ शामिल थीं। यह स्टडी शोध पत्रिका बायोमेडिकल ऑप्टिक्स में प्रकाशित की गई है। (इंडिया साइंस वायर)