Thursday, 12 December, 2024

बीमा की तरह है बेसिक साइंस में निवेश

नवनीत कुमार गुप्ता
न्यूजवेव / नई दिल्ली

कुछ लोग कहते हैं कि भारत जैसे विकासशील देश में, जहां समस्याओं की भरमार है, वहां बेसिक साइंस की बजाय अनुप्रयुक्त विज्ञान पर ध्यान देना चाहिए। तर्क यह कि बेसिक साइंस पर तो कई देशों में काम हो रहा है, जिसे वहां से लिया जा सकता है। पर, खुद विकसित करने के बजाय जब किसी अन्य देश से तकनीक लेते हैं तो हम उन देशों की कठपुतली बन जाते हैं।

भारत सरकार के नवनियुक्त प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार प्रोफेसर के. विजयराघवन ने ये बातें एक ताजा इंटरव्यू में कही। बेसिक साइंस के बारे में उन्होंने कहा कि “इस क्षेत्र में भारतीय वैज्ञानिकों को अधिक सक्रियता से कार्य करने की जरूरत है। आधारभूत विज्ञान का फायदा यह नहीं है कि आप क्या सीख रहे है। इसका फायदा यह है कि उससे आपको समाधान के लिए आधार मिलेगा। ऐसा सोचना की आप केवल माउंट एवरेस्ट बनाएंगे और उसके लिए माउंटेन रेंज नहीं बनाएंगे तो यह गलत है। एवरेस्ट बनाने के लिए माउंटेन रेंज भी जरूरी है।”

प्रो. के. विजयराघवन के अनुसार “पहले यह समझना जरूरी है कि मूलभूत विज्ञान से हमें फायदा क्या हो सकता है? हमें नहीं पता कि भविष्य में क्या समस्याएं उत्पन्न होंगी। अगर पता हो कि भविष्य में कौन- सी समस्या आएंगी तो हम उसका समाधान करने की तैयारी कर सकते हैं। पर, वास्तव में ऐसा हो नहीं पाता।
इस तरह देखें तो बेसिक साइंस में रिसर्च एंड डेवलपमेंट को बढ़ावा देना एक बीमा की तरह है, जो सुरक्षित एवं बेहतर भविष्य की गारंटी देता है।”

न्यूट्रिनो वैधशाला पर जनता से सीधा संवाद करें

तमिलनाडु में न्यूट्रिनो वैधशाला से जुड़े विवाद पर उन्होंने कहा कि “साइंस को समझने वाले लोगों का सीधा संवाद जनता से होना चाहिए। किसी वैज्ञानिक प्रयोग की उपयोगिता पर सार्थक चर्चा के लिए जनसंवाद जरूरी है। वैज्ञानिकों और जनता के बीच संवाद होगा तो आम लोगों में बेंसिक साइंस पर आधारित न्यूट्रिनो वेधशाला जैसी परियोजनाओं के बारे में समझ बढ़ेगी और वे इस पर अपनी राय व्यक्त कर सकेंगे। इस तरह के जनसंवाद विवादों को दूर करने में मददगार हो सकते हैं।”

भविष्य में देश के विज्ञान क्षेत्र के लक्ष्यों की बात करते हुए उन्होंने कहा कि “भारत ऐसा देश है जहां हर क्षेत्र सामर्थ्य से भरा हुआ है। नैनो प्रौद्योगिकी से लेकर सौर ऊर्जा या फिर निर्माण क्षेत्र समेत विभिन्न आयाम नवीनतम विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ आगे बढ़ने के लिए तैयार हैं।”

विभिन्न समस्याओें के बारे में उन्होंने जोर देकर कहा कि “वैज्ञानिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों में कार्यरत वैज्ञानिकों को सामाजिक समस्याओं के समाधान के लिए भी काम करना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो भविष्य में देश विकास के पथ पर तेजी से अग्रसर होगा।”

क्षेत्रीय भाषाओं पर प्रोफेसर विजयराघवन ने बताया कि “भाषा में परेशानी केवल संचार से संबंधित नहीं है, बल्कि यह एक तरह से उपनिवेशवाद है। आज यह मानसिकता से भी जुड़ गयी है। अगर आप झारखंड में हो या कर्नाटक से हो और आपने स्कूल में अंग्रेजी नहीं पढ़ी तो विज्ञान सीखने के लिए आपको अंग्रेजी पहले सीखनी पड़ेगी।

स्वीडन, डेनमार्क, हॉलैंड जैसे देशों में लोग विज्ञान अपनी भाषा में पढ़ते हैं और अंग्रेजी भी सीखते हैं। वह विज्ञान का संचार अन्य देशों के साथ अंग्रेजी में करते हैं। शोधपत्र अंग्रेजी में करते हैं, लेकिन उनकी सोच अपने समाज और संस्कृति से जुड़ी हुई है क्योंकि वे विज्ञान अपनी भाषा में करते हैं, इससे बहुत फायदा होता है। हमें अंग्रेजी को हटाना नहीं चाहिए, पर हमारी भाषाओं में भी विज्ञान का प्रचार-प्रसार होना चाहिए।”

विज्ञान के क्षेत्र में भी महिलाओं की समान भागीदारी एक मुद्दा है। स्नातक स्तर तक तो लड़कियां आगे आ रही हैं, पर शोधकार्यों में उनका प्रतिशत काफी कम है। प्रोफेसर विजयराघवन के अनुसार “उच्च शिक्षा में लैंगिक असंतुलन को दूर करने के लिए हमारे संस्थानों में महिलाओं के लिए अनुकूल माहौल होना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि महिलाओं को कार्यालय समय में थोड़ी छूट मिलनी चाहिए और उनके बच्चों के लिए डे-केयर जैसी सुविधाओं की व्यवस्था होनी चाहिए।
इसके अलावा विज्ञान संस्थानों में प्रवेश के समय महिलाओं के लिए आयु सीमा में भी छूट होनी चाहिए। किसी कारणवश यदि महिला कुछ समय के लिए अन्य जिम्मेदारियों के चलते अपना शोध कार्य रोकती हैं तो उन्हें ऐसी सुविधा मिलनी चाहिए कि वे दोबारा अपने शोधकार्य से जुड़ सकें। उच्च पदों और समितियों में भी महिलाओं को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए। ऐसा करने से भारत के लैंगिक प्रोफाइल में बदलाव देखने को मिल सकता है।”

जलवायु परिवर्तन ने आज पूरे विश्व का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। इस समस्या से निपटने के लिए भारत की तैयारियों के बारे में बताते हुए प्रोफेसर विजयराघवन ने कहा कि “भारत ने जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से समझा है और इसके लिए कार्य कर रहा है। देश में अनेक ऐसी पहल की जा रही हैं, जिनसे ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का कम किया जा सके। कई अंतरराष्ट्रीय परियोजाओं में भी भारत साझीदार है। मिशन इनोवेशन, सोलर एनर्जी एलायन्स आदि में भारत की भूमिका काफी अहम है। जिस प्रकार से हम स्वच्छ ऊर्जा में आगे बढ़ रहे हैं, उस हिसाब से हम जलवायु परिवर्तन जैसी समस्या के लिए पूर्ण रूप से सक्रिय और तत्पर हैं।” (इंडिया साइंस वायर)

(Visited 251 times, 1 visits today)

Check Also

मुख्यमंत्री भजनलाल व उपमुख्यमंत्री प्रधानमंत्री मोदी से मिले

न्यूजवेव @नई दिल्ली राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भजन लाल शर्मा और उप मुख्यमंत्री दीया कुमारी …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!