Thursday, 12 December, 2024

कोविड से सिकुड़ रहे दिमाग के हिस्से, गंध-स्वाद व याददाश्त प्रभावित

ब्रिटेन में हुई एक ताजा स्टडी में पाया गया कि कोविड-19 बीमारी से दिमाग के कुछ हिस्से सिकुड़ने लगते हैं। 700 से ज्यादा रोगियों पर हुई स्टडी में ये नतीजे सामने आए हैं।
न्यूजवेव @ नईदिल्ली
कोविड-19 की बीमारी का फेफड़ों और दिल पर असर तो होता ही है, नई स्टडी में सामने आया कि दिमाग पर भी इसका असर होता है। पहली बार कोविड-19 से पहले और बाद में दिमाग के स्केन पर परीक्षण किये गये। स्टडी में पाया गया कि थोड़ी गंभीर बीमारी होने पर दिमाग पर असर देखा गया है। कोविड सिर्फ लोगों को तनाव के साथ नहीं छोड़ रहा बल्कि दिमाग के कई हिस्से सिकुड़ते दिखे हैं।
सिकुड़े मिले दिमाग के हिस्से
हार्वर्ड मेडिकल स्कूल की फिजिशियन डॉ. अदिति नेरूरकर के अनुसार, ब्रिटेन वैज्ञानिकों की टीम ने यह स्टडी की है, जिसमें लिंबिक कॉर्टेक्स, हिपोकैंपस और टेंपोरल लोब सिकुड़ते पाए गए। दिमाग के इन हिस्सों से गंध,स्वाद, याददाश्त और भावनाएं कंट्रोल होती हैं। ये बदलाव ऐसे लोगों में देखे गए जिन्हें कम बीमारी थी और अस्पताल में भर्ती नहीं थे।
सर्वे में आया सामने
सीरम सर्वे कर्नाटक में कुछ डॉक्टर्स द्वारा किया गया। डॉक्टर्स ने ऐसे बच्चों पर सर्वे किया जो कोरोना एंटीबॉडी टेस्ट के लिए अस्पताल आए थे। सर्वे रिजल्ट के अनुसार 30 प्रतिशत बच्चे संक्रमित होकर ठीक हो चुके हैं। चूंकि, ज्यादातर संक्रमित वयस्क घर पर रहकर ठीक हुए हैं, इसलिए बच्चे भी आसानी से उनकी चपेट में आ गए। अच्छी खबर यह कि कई बच्चों में कोरोना के हल्के या कोई लक्षण नहीं दिखे और वो अपने आप ही ठीक हो गए।
कोरोना की तीसरी लहर के खतरे
विशेषज्ञों के अनुसार, कोरोना की तीसरी लहर से बच्चे भले ही गंभीर रूप से प्रभावित न हो लेकिन कोरोना की वजह से मल्टीसिस्टम इंफ्लामेट्री सिंड्रोम (MIS-C) जैसी कई गंभीर परेशानियां हो सकती हैं। कोरोना से ठीक हुए बच्चों में MIS-C की समस्या देखी जा रही है। आमतौर पर बच्चे कोरोना से ठीक होने के 5 से 6 हफ्ते बाद इस बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। वयस्कों की तरह बच्चों में इम्यूनिटी लेवल तेजी से नहीं बढ़ता है। यह स्थिति 90 प्रतिशत मामलों में हार्ट को प्रभावित कर सकती है जो बहुत खतरनाक है।
छोटे बच्चों को है खतरा


छोटे बच्चों के फेफड़ों में पर्याप्त रिसेप्टर्स नहीं होते हैं इसलिए कोरोना की वजह से इन्हें नुकसान ज्यादा पहुंच सकता है। एमआईएस-सी की वजह से तेजी से सेहत खराब होती है। इसके कुछ शुरुआती लक्षणों में बुखार और पूरे शरीर पर रैशेज होना है। इन रैशेज में खुजली नहीं होती जिससे पता चलता है कि ये एलर्जी की वजह से नहीं हुए हैं।
कुछ मामलों में बुखार और रैशेज के साथ पल्स रेट और ब्लड प्रेशर गिरने की भी दिक्कत हो सकती है। ऐसे मामलों में बच्चे को तुरंत हॉस्पिटल ले जाना चाहिए। वहां बच्चों को आईसीयू में मॉनिटर करने की जरूरत पड़ सकती है। इसमें तुरंत इलाज की जरूरत होती है क्योंकि यह कंडीशन 24 से 48 घंटों के अंदर ही भयंकर रूप ले लेती है।
सही समय पर पता चलना और लक्षणों के बारे में जानकारी रखने से, अस्पताल जाने की नौबत को टाला जा सकता है। इस वजह से विशेषज्ञ मान रहे हैं कि कोरोना से ज्यादा बच्चों को इस वायरस से रिकवर होने के बाद सामने आने वाले पोस्ट इफेक्ट ज्यादा नुकसान पहुंचा रहे हैं।

40 हजार लोगों का ब्रेन स्कैन
ब्रिटेन बायोबैंक ने महामारी की शुरुआत में 40 हजार लोगों का ब्रेन स्कैन किया था। 2021 में इनमें से 782 को दोबारा बुलाया गया। वापस आए लोगों में से 394 कोरोना पॉजिटिव रह चुके थे। स्टडी में लोगों की उम्र, लिंग, स्थान जैसे मानकों को ध्यान में रखा गया और दिमाग की बनावट और काम करने की प्रक्रियाओं को स्कैन किया गया। नतीजों में दिमाग के कुछ हिस्से सिकुड़े पाए गए।

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