Thursday, 31 July, 2025

वैज्ञानिक रहस्यों को उजागर कर रहा है ‘रामचंद्रन प्लॉट’

7 अप्रैल : माॅलिक्यूलर बायोलाॅजी के जनक जी.एन.रामचंद्रन की पुण्यतिथी

नवनीत कुमार गुप्ता
न्यूजवेव नईदिल्ली

कुछ शख्स जन्म से वैज्ञानिक प्रतिभा के धनी होते हैं, जिनके अनुसंधान अगली पीढ़ियों को नई दिशा दे जाते हैं। भारत में ऐसी ही एक शख्सियत हैं – गोपाल समुन्द्रम नारायणा रामचन्द्रन। वे भारतीय विज्ञान जगत में वैज्ञानिकों के आदर्श हैं।

जी.एन. रामचन्द्रन 20वीं सदी के सबसे प्रतिभाशाली भारतीय वैज्ञानिकों में से एक रहेे। उन्होंने आणविक जैव विज्ञान (माॅलिक्यूलर बायोलाॅजी) में कई महत्वपूर्ण खोजें कीं। प्रोटीन संरचना पर उन्होंने विशेष रूप से अध्ययन किया।

जी.एन. रामचन्द्रन ने शरीर के महत्वपूर्ण घटक प्रोटीन का विस्तृत अध्ययन करते हुए कोलेजन की त्रि-कुंडलीय संरचना का विश्लेषण किया। उनके अतुलनीय शोध को आज ‘रामचंद्रन फाई-साई डायग्राम’ या ‘रामचंद्रन प्लॉट’ के नाम से जाना जाता है। उनके कार्य ने पॉलिपेप्टाइडों की सभी त्रिविभ रासायनिक यानी स्टीरियों केमिस्ट्री संरचनाओं को समझने के लिए आधार प्रस्तुत किया। रामचंद्रन द्वारा किए गए कार्यों को आज भी त्रि-कुंडलीय संरचना के क्षेत्र में विशेष संदर्भ के रूप में देखा जाता है।

8 अक्तूबर, 1922 को केरल के अर्नाकुलम में जन्मे रामचंद्रन बचपन से प्रतिभाशाली रहेे। पिता गणित के वरिष्ठ प्रोफेसर थे, लेकिन रामचंद्रन को उन्होंने गणित के अलावा फिजिक्स और केमिस्ट्री में पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। हालांकि, वे रामचंद्रन को भारतीय प्रशासनिक सेवा में भेजना चाहते थे, लेकिन जब तक रामचंद्रन फिजिक्स से दिल लगा चुके थे।

1947 में ‘डाॅक्टर आॅफ साइंस’ की उपाधि

Dr. GN Ramachandran

उनकी प्रतिभा को तराशने में में सर सी.वी.रामन का अहम योगदान रहा, जिनकी गाइडेंस से रामचंद्रन ने भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलुरू से डॉक्टरेट किया। रामचंद्रन ने विभिन्न ठोस पदार्थों, जैसे- फ्लुओस्पार, हीरा तथा जिंक ब्लेंडी इत्यादि की प्रकाश प्रत्यास्थता यानी फोटो-इलास्टिसिटी तथा ताप प्रकाशी यानी थर्मोऑप्टिक गतिविधियों पर रामन के निर्देशन में शोध कार्य किया। 1947 में रामचंद्रन को डॉक्टर ऑफ साइंस की उपाधि प्रदान की गई।

इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में डब्ल्यू.ए वूस्टर के मार्गदर्शन में शोध कार्य किया। उन दिनों कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय की कैवेंडिश लेबोरेट्री में सर विलियम लॉरेंस ब्रैग निदेशक थे। वहां उन्हें प्रसिद्ध वैज्ञानिक लाइनस पॉलिंग से मिलने का अवसर मिला। रामचंद्रन के लिए यह विशेष मौका था। उनके लिए पॉलिंग किसी हीरो से कम नहीं थे, क्योंकि उन्होंने उन्हीं दिनों पॉलिपेप्टाइडों की अल्फा हेलिकल संरचना की खोज की थी।

कैम्ब्रिज से पोस्ट-डॉक्टरेट करके रामचंद्रन 1949 में भारत लौटे और भारतीय विज्ञान संस्थान में भौतिकी विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में कार्य किया। 30 वर्ष की उम्र में वे मद्रास यूनिवर्सिटी में फिजिक्स के प्रोफेसर और एचओडी बनकर भारतीय विज्ञान संस्थान से चले गए। मद्रास यूनिवर्सिटी में उनके शोध कार्यों ने उन्हें काफी लोेकप्रियता दिलायी।

1970 में वे फिर से भारतीय विज्ञान संस्थान में आए और उन्हें आणविक जैव भौतिकी का नया विभाग खोलने की जिम्मेदारी दी गयी। औपचारिक रूप से वर्ष 1971 में खुला यह विभाग आज देश में संरचात्मक जीव-विज्ञान के प्रमुख स्टडी सेंटर के रूप में पहचान रखता है।

सीएसआईआर में प्रो.जीएन रामचंद्रन प्रोटीन केंद्र


रामचंद्रन को वर्ष 1961 में भौतिकी में शांति स्वरूप भटनागर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 1977 में वह रॉयल सोसाइटी ऑफ लन्दन के सदस्य बने। सी.एस.आई.आर के सूक्ष्मजीव प्रौद्योगिकी संस्थान में उनकी स्मृति में प्रो.जीएन रामचंद्रन प्रोटीन केंद्र स्थापित किया गया। यह प्रोटीन विज्ञान, इंजीनियरिंग और जैव प्रौद्योगिकी प्रोटीन के क्षेत्र में परामर्श केंद्र के रूप में कार्य कर रहा है।

रामचंद्रन की दर्शनशास्त्र, भारतीय एवं पश्चिमी संगीत में गहरी रुचि रही। वैज्ञानिक होने के साथ ही वे बेहतरीन वक्ता भी रहे। फिजिक्स की अत्यन्त जटिल अवधाराणाओं को सरल शब्दों में समझाना उनकी खूबी थी। एक अच्छे शिक्षक के साथ ही वे लोकप्रिय कवि भी रहे। बहुप्रतिभा के धनी रामचंद्रन ने विज्ञान, धर्म, दर्शन और उपनिषदों पर कविताएं लिखी।

7 अप्रैल, 2001 को जी.एन. रामचंद्रन का अवसान हुआ। विज्ञान प्रसार द्वारा उनके व्यक्तित्च व कृतित्व पर एक वृत्तचित्र बनाया गया है। (इंडिया साइंस वायर)

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