सुंदरराजन पद्मनाभन
न्यूजवेव @ नईदिल्ली
आईआईटी, रुड़की के शोधकर्ताओं ने ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे नागरिक भी प्लास्टिक कचरे से ईंट या टाइल्स जैसे उपयोगी प्रॉडक्ट बना सकते हैं। इस तकनीक को विकसित करने वाले वैज्ञानिकों के अनुसार, पॉलिमर तत्व एचडीपीई या उच्च घनत्व वाली पॉलीथीन सामग्री, कुछ रेशेदार तत्वों और संस्थान द्वारा विकसित विशेष केमिकल से इस तरह के उत्पादों का निर्माण किया जा सकेगा।
प्लास्टिक कचरे, टूटी-फूटी प्लास्टिक की बाल्टियों, पाइप, बोतल और बेकार हो चुके मोबाइल कवर आदि से काम में आने वाले उत्पाद बना सकते हैं। रेशेदार तत्वों के रूप में गेहूं, धान या मक्के की भूसी, जूट और नारियल के छिलकों का उपयोग किया जा सकता है।
आईआईटी, रुड़की में केमिकल इंजीनियरिंग डिपार्टमेंट के वैज्ञानिक डॉ.शिशिर सिन्हा ने बताया कि यह बेहद आसान तकनीक है, जिसका उपयोग आम नागरिक भी कर सकता हैं। इसके लिए प्लास्टिक, रेशेदार सामग्री और रसायन के मिश्रण को 110 से 140 डिग्री पर गर्म किया जाता है और फिर उसे ठंडा होने के लिए छोड़ देते हैं। इस तरह एक बेहतरीन टाइल या फिर ईंट तैयार हो जाती है।”
रिसर्च टीम द्वारा विकसित केमिकल ‘ओलेफिन’ पर आधारित एक बायो केमिकल है। यह कंपोजिट बनाने के लिए पॉलिमर और रेशेदार या फाइबर सामग्री को बांधने में मदद करता है। डॉ सिन्हा के अनुसार, “इस केमिकल को घरेलू सामग्री के उपयोग से बनाया जा सकता है।
मात्र 100 रू में 10 टाइलें बनाइये
50 से 100 ग्राम केमिकल बनाने पर 50 रुपये खर्च होते हैं। महज 100 रुपये के खर्च में प्लास्टिक कचरे के उपयोग से एक वर्गफीट की 10 टाइलें बनाई जा सकती हैं। यह तकनीक ग्रामीण लोगों के लिए बहुत फायदेमंद हो सकती है। इस केमिकल पर पेंटेट मिलने के बाद इसके फॉर्मूला को सार्वजनिक बताया जाएगा।’ डॉ सिन्हा के मुताबिक, “हमारी कोशिश है कि इस कंपोजिट में इंसान के बालों का उपयोग रेशेदार तत्व के रूप में किया जाए क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब व्यक्ति बालों की व्यवस्था आसानी से कर सकता है। बाल यहां-वहां पड़े रहते हैं और कई बार जल-निकासी को बाधित करते हैं। बालों में लचीलापन और मजबूती दोनों होती है। हल्का होने के साथ-साथ ये जैविक रूप से अपघटित भी हो सकते हैं। (इंडिया साइंस वायर)