Thursday, 12 December, 2024

उद्योगों के अपशिष्टों को उपयोगी उत्पाद में बदलें

आरटीयू में 5 दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण वर्कशॉप में विशेषज्ञों ने किया मंथन
न्यूजवेव @ कोटा
राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय में सोमवार को पांच दिवसीय ऑनलाइन प्रशिक्षण वर्कशॉप ग्रीन टेक्नोलॉजी एंड सस्टेनेबल इंजीनियरिंग का उद्घाटन हुआ। मुख्य अतिथि आईआईटी गुवाहाटी के निदेशक प्रोफेसर पीजी सीताराम ने उद्योगों के अपशिष्टों को उपयोग लेने के लिये महती आवश्कता बताया। राजस्थान में दो दशक पहले थर्मल की राख किसी को बुला कर देनी पड़ती थी, थर्मल प्लांट तथा सीमेंट उत्पादकों के तकनीक अपनाने के कारण वर्तमान में राख चाहने वाले बहुत है।
उन्होंने कहा कि इसी तरह राज्य में पत्थर उद्योग व जिंक के विशाल भंडारो के दोहन के साथ उत्पन्न हो रहे पदार्थो के उपयोग की जरुरत है। आरटीयू कुलपति प्रोफेसर आर ए गुप्ता ने आईआईटी व उद्योगों के साथ समन्वय बढ़ाने के कदमों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि यह कार्यशाला पीएचडी स्कॉलर एवं एमटेक के विद्यार्थियों के लिए बहुत उपयोगी साबित होगी। डीन, प्रोफेसर अनिल के माथुर ने आरटीयू एवं अभियांत्रिकी विभाग की उपलब्धियों के बारे में बताया।

वर्कशॉप में पहले दिन तीन तकनीकी सत्र हुए। पहले सत्र में आईआईटी इंदौर के प्रोफेसर संदीप चौधरी ने अपशिष्टों से बनने वाली निर्माण सामग्री की बाजार में उपलब्ध वैकल्पिक सामग्री की क्वालिटी में समतुल्य होने पर बल दिया। उन्होंने बताया कि पुरानी आरसीसी संरचना की कंक्रीट को काम लेने हेतु उसे केमिकल के उपयोग से बेहतर बनाने वाली तीन तकनीके अब पूरी तरह मान्य हो चुकी है।

कोटा थर्मल की 80 फीसदी राख उपयोगी


दूसरे सत्र में कोटा सुपर थर्मल पावर प्लांट के अधीक्षण अभियंता ए.के.आर्य तथा अधिशासी अभियंता मोहम्मद अहमद ने बताया कि यदि पूरी यूनिट चले तो एक दिन में लगभग 20 हजार मीट्रिक टन कोयला काम में आता है। थर्मल से फ्लाई ऐश के उपयोग के बारे में उन्होने बताया कि सरकार तथा कोर्ट के आदेशानुसार अब 80 प्रतिशत राख बेची जा रही है। पिछले वित्त वर्ष में इससे लगभग 37 करोड़ रुपए की आय हुई। राख के कणों में हानिकारक तत्व सल्फर की मात्रा में आगामी दो तीन वर्षो में बेहद कमी आ जाएगी।
तीसरे सत्र में मिसेज लोपा मुद्रा सेन गुप्ता, वाइस प्रेसीडेंट एवं एन.के.सावंत टेक्निकल हेड जेएसडब्ल्यू सीमेंट एवं कंक्रीट में ेस्लग के उपयोग के बारे में बताया। उन्होंने बताया कि नदियों कि रेत के स्थान पर उपयोगी स्लग 50 किलोग्राम पैकेट बनाकर उनकी कंपनी बेच रही है। भारतीय मानक ब्यूरो ने इसे 2016 से मान्यता दे रखी है।
उनके द्वारा नई तकनीकों को अपनाने की वजह से पिछले सात वर्षों में उनकी फैक्ट्री से सीमेंट उत्पादन में निकलने वाली कार्बन डाइऑक्साइड में एक तिहाई कमी आई हैं। कोयले की मात्रा आधी रखने में सफलता पाई है। कार्यशाला के समन्वयक प्रोफेसर प्रवीण कुमार अग्रवाल ने सभी अतिथियों एवं प्रतिभागियों को धन्यवाद दिया।

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