पद्म भूषण अभिनव बिंद्रा से बातचीत के प्रमुख अंश
न्यूजवेव @ कोटा
पद्म भूषण अभिनव बिंद्रा रविवार को एलन कॅरियर इंस्टीट्यूट प्रा.लि. के एक भव्य समारोह में हजारों स्कूली विद्यार्थियों से रूबरू हुये। बीजिंग ओलम्पिक, 2008 में 10 मीटर राइफल शूटिंग में देश के प्रथम व्यक्तिगत स्वर्णपदक विेजेता बिंद्रा ने कहा कि खेल आपको हारना और जीतना दोनो सिखाते हैं। इसलिये स्कूल की स्पोटर्स प्रतियोगिताओं में अवश्य भाग लें। देशभर के स्कूली विद्यार्थियों से उन्होंने खुलकर संवाद किया। बातचीत के प्रमुख अंश-
प्रश्न- आपने शूटिंग को ही क्यों चुना?
जवाब – 10-11 साल की उम्र तक मुझे स्पोर्ट्स से नफरत थी। स्कूल में फिजिकल एजुकेशन दूर रहता था। बाद में एक कोच ने मेरे टेलेंट को परखा। उन्होंने गाइड किया। मैं कन्वेंशनल नहीं था। लेकिन रोज हार्ड वर्क करना और प्रतिदिन अपना सर्वश्रेष्ठ करना मेरी आदत सी बन गई। शूटिंग कोच कर्नल ढिल्लन ने मुझे हारने के बाद जीतना सिखाया। आप भी जेईई या मेडिकल की तैयारी करते समय ईमानदारी से अपने लक्ष्य के लिये हार्ड वर्क करें। आपको कोई रोक नहीं सकता ।
प्रश्न- आपने असफलता को कब महसूस किया?
जवाब- सिडनी ओलिम्पिक में 17 साल की उम्र में मैं सबसे जूनियर था। फाइनल मुकाबले में सभी 10 शॉट बेकार हो गये। क्यांेकि नीचे टाइल्स हिल रही थी। मैं निराश होकर सबसे पहले मां से मिला। मां ने कहा, तुम मेरे बेटे हो अब सिर्फ गोल्ड मेडल के लिये ही खेलना। भारत आकर मैने हिलती हुई टाइल्स पर खूब प्रेक्टिस की। मेरा लक्ष्य सिर्फ गोल्ड मेडल था। बीजिंग ओलम्पिक में 206 देशों के 10,500 एथलीट पहंुचे। प्रेशर बहुत था। लेकिन मुझे मां के बोल याद रहे। मैने सांसो को नियंत्रित कर दिमाग को शांत रखा। फाइनल में 10 मे से 10 शॉट सही खेलकर देश को गोल्ड मेडल दिलाया। आप जब भी प्रेशर महसूस करें अपनी मां से 10 मिनट बात जरूर कर लें। प्रेशर में जीना सीख लेंगे।
प्रश्न- इतनी कडी प्रतिस्पर्धा में सफलता कैसे मिलेगी?
जवाब- कोई भी प्रतिस्पर्धा आपको सक्सेस की ओर ही बढाती है। कंफर्ट जोन से बाहर निकलें और अपने भीतर सफलता पाने की भूख जगायें। प्रेशर के समय धैर्य, साहस और एकाग्रता रखें। कभी गलतियां हों तो उनसे सबक लेकर आगे बढें। सेल्फ अवेयरनेस से ही आपका टेलेंट सामने आता है। कोच आपको गाइड करते हैं, आप हार्डवर्क और रेगुलर प्रेक्टिस के साथ हर कॉम्पिटिशन में सक्सेस पा सकते हैं।
प्रश्न- ओलम्पिक में भारत को इतने कम मैडल क्यों मिलते हैं ?
जवाब – जरा गौर करें, इतनी बडी आबादी वाले भारत में खेलने वाले युवाओं की संख्या कितनी है। हमारी युवा आबादी स्पोर्ट्स को चुनेगी तभी हम मेडल में भी आगे बढेंगे। 2036 में अहमदाबाद में वर्ल्ड ओलम्पिक होंगे। कुछ वर्षों से हमारे एथलीट तेजी से आगे बढ रहे हैं।
प्रश्न-गोल्ड मेडल जीतने पर आपका अनुभव कैसा रहा ?
जवाब- कोई भी सफलता एक दिन की मेहनत से नहीं मिल जाती। मैने 15 साल रेगुलर प्रेक्टिस की, हार्डवर्क किया। अपने लक्ष्य को पाने के लिये आपका वातावरण, प्रतिस्पर्धा का लेवल, टेªनिंग मैथेडोलॉजी, पर्सनल मोटिवेशन बहुत महत्व रखता है। मैंने मां को याद करते हुये सांसें नियंत्रित कर सिर्फ उस समय के पलों पर फोकस किया। जिससे आत्मविश्वास बना रहा और देश के लिये गोल्ड मेडल जीतने में सफल रहा।
प्रश्न- नई चुनौतियों को मुकाबला हम कैसे करें?
जवाब- मैने हैप्पीनेस को अपने गोल यानि लक्ष्य से जोड लिया था। हारा या जीता, हर दिन खुश रहता था। रोज खुद से मुकाबला करता था। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्पोर्ट्स में भी प्रतिस्पर्धा प्रेशर देती है। मैनेे मस्तिष्क को संतुलित और सांस को नियंत्रित रखना सीखा। आप भी चुनौतियों से घबरायें नहीं। खुद का मुकाबला खुद से करते हुये आगे बढते रहें। कोटा में अच्छे कोच आपको सफलता के बहुत करीब ले जाते हैं।