नवनीत कुमार गुप्ता
न्यूजवेव@ नईदिल्ली
मौसम पूर्वानुमान के पहले चरण में भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने इस वर्ष 97 प्रतिशत बारिश के साथ सामान्य मानसून की भविष्यवाणी की है, जो कृषि क्षेत्र के लिए अच्छी खबर है।
इस पूर्वानुमान के लिए आईएमडी ने आधुनिकतम ‘डाइनेमिकल ग्लोबल क्लाइमेट फाॅरकास्टिंग’ सिस्टम का उपयोग किया, जिसे मानसून मिशन तथा आईएमडी के स्टेटिस्टिकल एसेम्बल फाॅरकास्टिंग सिस्टम के अन्तर्गत विकसित किया गया है। अंदरूनी शोध द्वारा इसकी क्षमता पहले से महत्त्वपूर्ण तथा बेहतर बनाई गई है।
वैज्ञानिकों के अनुसार दक्षिण पश्चिमी मानसून पर ‘अल निनो’ और ‘ला-निना’ की घटनाओं का असर पड़ता है। उष्णकटिबंधी पूर्वी प्रशांत महासागर की सतह का तापमान बढ़ जाने की घटना को ‘अल निनो’ कहते हैं। सतह का तापमान घट जाने की घटना ‘ला-निनो’ कहलाती है। इन घटनाओं के साथ उष्ण कटिबंधीय पष्चिमी प्रशांत महासागर में सतह का वायुमंडलीय दाब भी बढ़ता या घटता है जो ‘सदर्न आॅसिलेशन’ कहलाता है।
इन घटनाओं को सम्मिलित रूप से ‘अल निना या ला-निना’ सदर्न आॅसिलेशन कहते हैं। ‘अल-निना’ होने पर पश्चिमी प्रशांत महासागर में वायुमंडलीय दाब बढ़ जाता है और ‘ला-निना’ की स्थिति में वायुमंडलीय दाब घट जाता है। इसके अलावा ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन से भी मानसून के प्रभावित होने की संभावना व्यक्त की जाती रही है।
कृषि में मानसून के महत्व को देखते हुए पुर्वानुमान का महत्व बढ़ जाता है। देश की प्राचीन कथाओं में में प्राचीन समय में मौसम पुर्वानुमान के लिए उपयोग किए जाने वाले तरीके मिल जाएंगे।
आज नए वैज्ञानिक उपकरणों और उपग्रहों से प्राप्त आंकड़ों तथा तस्वीरों से मौसम वैज्ञानिकों को मानसून का पूर्वानुमान लगाने में काफी मदद मिल रही है। वे कई बार लगभग सटीक पूर्वानुमान भी लगा रहे हैं लेकिन मानसून की रहस्यमय परिघटना का अभी तक पूरी तरह पता नहीं लगा है। वैज्ञानिक इसकी गुत्थी सुलझाने का निरंतर प्रयास कर रहे हैं। असल में मानसून की परिघटना इतनी रहस्यमय है कि हर साल इसकी एकदम सटीक भविष्यवाणी करना संभव नहीं हो पाता।