डॉ. पी सूरत
न्यूजवेव @ नईदिल्ली
भारतीय वैज्ञानिकों ने कमल के तने के स्टार्च, दही के पानी से एकत्रित प्रोटीन और ईसबगोल को मिलाकर जैविक रूप से अपघटित होने वाली ईको-फ्रेंडली पैकेजिंग झिल्ली विकसित की है। यह झिल्ली मजबूत एवं कम घुलनशील है। इसका उपयोग कई प्रॉडक्ट्स की पैकेजिंग में किया जाएगा।
वैज्ञानिकों के अनुसार, विभिन्न रासायनिक क्रियाओं द्वारा स्टार्च को रूपांतरित कर उसके गुणों में सुधार किया जा सकता है। कमल के तने में उसके वजन का 10-20 प्रतिशत स्टार्च होता है। शोधकर्ताओं ने ऑक्सीकरण और क्रॉस-लिंकिंग प्रक्रिया की मदद से कमल के तने को स्टार्च में बदलकर उसके गुणों में सुधार किया है। यह शोध पंजाब के संत लोंगोवाल इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने किया है।
शोधकर्ता साक्षी सुखीजा व चरणजीत एस. रायर ने बताया कि ‘‘पौधों से प्राप्त पॉलिमर से अपघटित होने वाली पैकेजिंग सामग्री बनाने के लिए शोध किये जा रहे हैं। इन शोधों का उद्देश्य पेट्रोलियम आधारित प्लास्टिक का उपयोग कम करना है। स्टार्च कम लागत में आसानी से उपलब्ध हो सकता है और यह जालीनुमा संरचना बनाने में सक्षम है। यह एक ऐसा महत्वपूर्ण पॉलिमर है, जिसका उपयोग कई बार किया जा सकता है। अकेले स्टार्च के उपयोग से बनी झिल्लियां कमजोर होती हैं और उनमें जलवाष्प भी अधिक मात्रा में होती है। ऐसे में इनका उपयोग बहुत कम हो पाता है।
दही के पानी से प्रोटीन पनीर बनाना बाय-प्रॉडक्ट है। प्रोटीन और स्टार्च के बीच बहुलक अंतरक्रिया से बेहतर गुणों वाली झिल्ली बनायी जा सकती है। ईसबगोल अत्यधिक पतला और चिपचिपा होता है, जिसका उपयोग झिल्ली बनाने की सामग्री में शामिल एक घटक के रूप में किया जा सकता है।
ऐसे किया प्रयोग
ईको-फ्रेंडली झिल्ली को दो चरणों में तैयार किया गया। पहले ईसबगोल भूसी को 30 मिनट तक पानी भिगोया गया और फिर उसे 20 मिनट तक उबलते पानी में गर्म किया गया। घोल को ठंडा करके उसमें दही के पानी के संकेंद्रित प्रोटीन, कमल के तने का स्टार्च और ग्लिसरॉल को मिलाया गया। इसके बाद पूरे मिश्रण को 90 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म करके उसे टेफ्लॉन के सांचों में डाल दिया गया। फिर गर्म सांचों में बनी झिल्ली को निकाल लिया गया। इन झिल्लियों को नमी से बचाने के लिए विशेष पात्रों में एकत्रित करते हैं।
रायर के अनुसार,”ये झिल्लियां सफेद और पारदर्शी हैं और इनसे बनाए गए थैलों में रखी सामग्री देखी जा सकती है। इसलिए उपभोक्ताओं द्वारा बड़े पैमाने पर इसके उपयोग को बढ़ावा मिलेगा। इन झिल्लियों का उपयोग खाद्य पदाथों को ढंकने के लिए उनके ऊपर परत चढ़ाने, किसी सामान को बंद करके रखने, किसी सामग्री को सूक्ष्मजीवों से संक्रमित होने से बचाने के लिए उसे लपेटकर रखने, दवाओं के वितरण और कई तरह की खाद्य सामग्रियों की पैकिंग में किया जा सकता है।” अध्ययन से जुड़े शोधकर्ताओं में साक्षी सुखीजा, सुखचरन सिंह और चरणजीत एस रायर शामिल थे। (इंडिया साइंस वायर) भाषांतरण: शुभ्रता मिश्रा