सफलता : इस उपग्रह से युद्धक्षेत्र में दुश्मनों की स्थिति जानने, समुद्री नेविगेशन एवं आपदा प्रबंधन में मदद मिलेगी
नवनीत कुमार गुप्ता
न्यूजवेव @ नईदिल्ली
इसरो ने श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से गुरूवार को PLSV C41 अंतरिक्ष यान से भारत के नवीनतम नेविगेशन उपग्रह IRNSS-1 आई का सफल प्रक्षेपण किया गया।
इस सफलता पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने वैज्ञानिकों को बधाई दी और कहा कि “यह सफलता हमारे अंतरिक्ष कार्यक्रम के लाभ के साथ आम आदमी को लाभ पहुंचाएगी। इसरो की टीम पर हमें गर्व है।”
IRNSS-1 आठवां नेविगेशन उपग्रह है, जो भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली के अन्तर्गत IRNSS-1 एच का विकल्प है। 31 अगस्त 2017 को प्रक्षेपित IRNSS-1H उपग्रह पीएसएलवी अंतरिक्ष यान से निकलकर अपनी कक्षा में स्थापित होने में असफल रहा था, क्योंकि प्रक्षेपण के बाद ऊष्मारोधी कवच अलग नहीं हो पाया था।
भारतीय क्षेत्रीय नौवहन उपग्रह प्रणाली के अन्तर्गत इसरो ने सात उपग्रह प्रक्षेपित किये हैं। इन सात उपग्रहों में तीन 2016 में, एक 2015 में तथा शेष तीन 2013 तथा 2014 में प्रक्षेपित किये गए थे।
IRNSS-1 के प्रक्षेपण ये यह उम्मीद लगाई जा रही है कि सातों उपग्रहों का समूह सुचारु रूप से कार्य आरम्भ कर देगा तथा भारतीय उपमहाद्वीप में नेविगेशन की सूचनाएं प्रदान करेगा।
IRNSS-1 के तीन उपग्रह भू-स्थिर कक्षाओं में हैं। ये कक्षा गोलाकार है तथा उपग्रहों को धरती से एक निश्चित दूरी पर बनाए रखती है और वो हर समय एक जगह स्थिर दिखते हैं। अन्य चार उपग्रह भूसमकालिक कक्षाओं में स्थित हैं, जो धरती के अक्ष से एक सुनिश्चित कोण पर अंडाकार कक्षा है।
IRNSS एक स्वतंत्र क्षेत्रीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली है, जिसे भारत ने अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम के आधार पर तैयार किया है। भारतीय जीपीएस प्रणाली उपयोगकर्ताओं को भारत के भीतर तथा देश की सीमा से बाहर 1,500 किलोमीटर के क्षेत्र में किसी भी स्थिति की सटीक जानकारी देने के लिए तैयार की गई है।
आम लोगों को इस प्रणाली से क्षेत्रीय तथा समुद्री नेविगेशन में मदद मिलेगी, आपदा प्रबंधन के समय सटीक जानकारी प्राप्त हो सकेगी तथा वाहन चालकों को वाहन तलाशने और नेविगेशन में सहायता मिलेगी।
भारतीय नेविगेशन उपग्रह प्रणाली विकसित करने का एक मुख्य कारण है रक्षा मामलों में इस पर सटीक निर्भरता। हालांकि इस कार्य के लिए अमेरिकी जीपीएस तथा रूस की ग्लोनास प्रणाली भी उपलब्ध है। लेकिन 1999 में करगिल युद्ध के समय जब भारतीय सेना युद्धक्षेत्र में दुश्मनों की स्थिति जानने के लिए अमेरिकी जीपीएस का उपयोग करने में असमर्थ रही थी, तो इसरो ने प्त्छैै प्रणाली को विकसित करना आरम्भ किया था ।