स्वर्णिम अध्याय – 15 वर्षों बाद मुकंदरा नेशनल पार्क में सुनाई दी बाघ की दहाड़, समूचे क्षेत्र में उल्लास।
अरविंद
न्यूजवेव @ कोटा
कोटा से 40 किमी दूर मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व एवं नेशनल पार्क में मंगलवार ( 3 अप्रैल) को बहुप्रतीक्षित टाइगर टी-91 ने जैसे ही पहला कदम रखा, वन्यप्रेमियों ने इसे नेशनल सेंचुरी के लिए सबसे अनमोल पल बताकर खुशियां बांटी।
टाइगर रिजर्व की विशेष टीम ने सुबह 5 बजे बूंदी जिले में रामगढ़ विषधारी सेंचुरी में इसे ट्रेंकुलाइज कर सुरक्षा के साथ दोपहर 12ः48 बजे मुकंदरा एनक्लोजर में शिफ्ट कर दिया। फिलहाल इसे मुकंदरा एनक्लोजर में वन्यजीव अधिकारियों की कड़ी निगरानी में रखा गया है।
वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार, टी-91 मिर्जा के नाम से मशहूर है। यह टी-3 बहादुर और टी-30 हुस्नारा का बेटा है। इसके आने के बाद जल्द ही रणथम्भौर सेंचुरी से 2 अन्य टाइगर को यहां लाने की प्रक्रिया तेज हो जाएगी।
याद दिला दें कि टाइगर टी-91 को मुकुंदरा टाइगर रिजर्व में लाने के लिए वन विभाग के अधिकारियों, रेसक्यू टीम एवं ट्रेकर्स की पिछले एक हफ्ते से बूंदी जिले में रामगढ़ विषधारी सेंचुरी में टी-91 की निरंतर निगरानी की जा रही थी।
6 माह आश्रय ढूंढता रहा टी-91
वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशनिस्ट अनिल रोजर्स के अनुसार, सवाईमाधोपुर के रंणथम्भौर टाइगर रिजर्व से यह टाइगर नई टेरेटरी की तलाश में लगभग 120 किमी का सफर तय कर बूंदी के रामगढ़ विषधारी सेंचुरी में पहुंच गया था, जहां पिछले 6 माह से यह चंबल की कराइयों में विचरण करता रहा।
इस दौरान एक ऐसा मौका भी आया कि जब यह बूंदी के कालंदा वन्यजीव रेंज में जा पहुँचा। जो मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व के जवाहर सागर बेल्ट से मात्र 30 किमी दूर है। इससे कई वन्यजीव यह कयास लगाते रहे कि शायद यह स्वयं मुकंदरा रिजर्व की ओर मूव कर जाए। लेकिन कुछ दिनों में यह फिर से रामगढ़ की ओर दिखाई दिया।
इसके बाद टाइगर रिजर्व की विशेष टीम ने सर्च आॅपरेशन को तेज कर दिया था, जिससे 3 अप्रैल को इसे ट्रेन्कुलाइज करने में सफलता मिली। मुकंदरा टाइगर रिजर्व में टी-91 के कदम रखते ही समूचे क्षेत्र में उत्सुकता का माहौल बना रहा। इसे हाड़ौती में वाइल्ड लाइफ टूरिज्म की बेक बोन माना जा रहा है।
टूरिज्म को नई उंचाइयां मिलेगी
केवलादेव नेशनल पार्क के पूर्व निदेशक आईएफएस विजय सालवान ने बताया कि राज्य में सरिस्का, केवलादेव, रणथम्भौर सेंचुरी के बाद अब मुकंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व से टूरिज्म को नई उंचाइयां मिलेगी। उन्होंने बताया कि पहले भी यह क्षेत्र अन्य वन्यजीवों के साथ बाघों के लिए आश्रय स्थली रहा। मुकंदरा रिजर्व में चंबल नदी की कराइयां और सघन वन क्षेत्र बाघों के लिए अनुकूल हैं। जहां पानी, जंगल और बहुतायत से वन्यजीव हों, वहां बाघ खुद को बसाने की कोशिश करते हैं। पिछले 6 माह से टी-91 अपना अनुकूल क्षेत्र तलाश कर रहा था। मुकंदरा में आ जाने से उसे शिकारियों से कोई खतरा नहीं रहेगा।
उन्होंने बताया कि मुकंदरा सेंचुरी पूरी तरह विकसित हो जाने पर देश-विदेश के सैलानी यहां 7 दिन तक ठहरेंगे। वे टाइगर रिजर्व के साथ घडियाल सेंचुरी, बस्टर्ड, चिंकारा आदि देखने के लिए आकर्षित होंगे। हैंगिंग ब्रिज, डेम, किले, बिजलीघर, चंबल के व्यू पाॅइंट, बर्ड वाचिंग सेंटर, हेरिटेज, हस्तकला आदि से टूरिज्म कई गुना बढ़ जाएगा।
बाघ का नया बसेरा
मुकंदरा हिल्स को 9 अप्रैल,2011 में मुकंदरा टाइगर रिजर्व घोषित किया गया। कोटा एयरपोर्ट से महज 40 किमी दूर यह नया अभयारण्य राज्य के चार जिलों कोटा, बूंदी, झालावाड़ व चितौड़गढ़ में लगभग 760 वर्ग किलोमीटर मेें फैला हुआ है। इसमें लगभग 417 वर्गकिमी में कोर एरिया तथा 343 वर्गकिमी में बफर जोन होगा, जिसमें मुकंदरा नेशनल पार्क, दरा अभयारण्य, जवाहर सागर सेंचुरी तथा चंबल घड़ियाल सेंचुरी का कुछ भाग भी शामिल रहेगा। जानकारों ने बताया कि 1962 तक इस क्षेत्र में शेर दिखाई देते थे। 1980 के दशक में यहां बाघों की दहाड़ सुनाई देती थी। 2003 में भी एक बाघ ने यहां विचरण किया।
क्राॅसबीड के लिए अनुकूल
वन्यजीव अधिकारियों के अनुसार, मुकंदरा रिजर्व का क्षेत्रफल सरिस्का सेंचुरी से ज्यादा है। रणथम्भौर सेंचुरी में इस समय 62 से अधिक टाइगर होने से वहां के नर बाघ समीपवर्ती मुंकदरा रिजर्व में आकर अन्य मादा बाघ से क्राॅसबीड कर सकेंगे, जिससे निकट भविष्य में यहां टाइगर की हाईब्रिड देखी जा सकती है। जलवायु की बात करें तो मुकंदरा टाइगर रिजर्व एवं नेशनल पार्क का नजारा बरसात में देखने लायक होता है। यहां 885.6 मिमी औसत वर्षा होती है।
उंची पहाड़ियों के बीच खूबसूरत घना वन क्षेत्र, नदी व घाटियां है। इस हरे-भरे क्षेत्र में पलाश,अमलताश, नीम, जामुन, इमली, अर्जुन, तेंदू, बरगद, पीपल, महुआ, बेल, कदम, सेतल व आंवले के वृक्षों के साथ सघन जंगल है।
यही वजह है कि चंबल किनारे बाघ, पैंथर, चिंकारा, भालू, सांभर, चीतल, जरख (हाइना), भेड़िया, लोमड़ी, नीलगाय, काले हिरण, वनविलाव, खरगोश,दुर्लभ स्याहगोह, निशाचर सिविट केट और रेटल जैसे दुर्लभ वन्यजीव यहां देखने को मिलते हैं। वन्य अधिकारियों के अनुसार, मुकंदरा क्षेत्र में लगभग 1000 चीतल, 60 भालू, 60 से 70 पैंथर, 60 नील गायों सहित बाघ प्रजाति के 6 बघेरा (लेपर्ड) भी हैं। बडी संख्या में छोटे वन्यजीव विचरण करते हैं।