सूचना आयोग का अहम फैसला, कहा- कानून के समक्ष स्वच्छ मन-मस्तिष्क से आएं, कानूनी प्रक्रिया का बेजा इस्तेमाल स्वीकार्य नहीं
न्यूजवेव @ भोपाल
मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग ने दो अपीलार्थियों को सूचना के अधिकार के दुरूपयोग का दोषी करार देते हुए उनकी 13 अपीलें खरिज कर दी हैं। साथ ही उन्हें चेतावनी दी कि भविष्य में लोकहित में दिए गए इस महत्वपूर्ण संवैधानिक अधिकार का उपयोग अनुचित उद्देश्य के लिए कतई न करें। कानून के समक्ष स्वच्छ मन-मस्तिष्क से आएं और कानूनी प्रक्रिया का बेजा इस्तेमाल हरगिज न करें अन्यथा आयोग, अपीलीय अधिकारी व लोक सूचना अधिकारी के मूल्यवान समय, श्रम व सार्वजनिक संसाधन को बर्बाद करने और लोक क्रियाकलाप से जुडे शासकीय कार्य में व्यवधान उत्पन्न करने के कारण उनके विरूध्द दंडात्मक कार्यवाही पर विचार किया जा सकता है।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने विनय शर्मा व अतुल उपाध्याय की अपीलों पर दिए गए अलग-अलग फैसलों में कहा है कि विभिन्न प्रकरणों में इन अपीलार्थियों की जो प्रवृति सामने आई है, उससे स्पष्ट होता है कि वे सूचना के अधिकार के सद्भाविक उपयोगकर्ता नहीं हैं। उनके द्वारा सूचना का अधिकार अधिनियम के ध्येय के अनुरूप, लोकहित में सूचना के अधिकार का उपयोग नहीं किया जा रहा है। बल्कि लोक प्राधिकारियों को अनावश्यक रूप से परेशान करने, उन पर अनुचित दबाव बनाने, उन्हे जटिल कार्य में उलझा कर जनता के लिए किए जाने वाले राजकाज को बाधित करने की अस्वच्छ मंशा से सूचना के पवित्र अधिकार का बेजा इस्तेमाल किया जा रहा है जो स्वीकार्य नहीं है।
सख्त टिप्पणी
सूचना आयुक्त ने कहा कि तमाम मामलों में इन अपीलार्थियों की समूची कार्यवाही सूचना के आवेदन, प्रथम अपील व द्वितीय अपील डाक से भेजने तक सीमित रही है। इनके समस्त प्रकरणों में ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आता कि इन अपीलार्थियों ने आरटीआई लगाने से लेकर प्रथम व द्वितीय अपील करने तक की प्रक्रिया के दौरान, किसी भी स्तर पर, वांछित जानकारी प्राप्त करने में कभी कोई रूचि या गंभीरता दिखाई हो। इसके विपरीत, इनके रवैये से यह साफ तौर पर साबित होता है कि इनका मकसद जानकारी हासिल करना है ही नहीं। आयोग ने इन अपीलार्थियों को आगाह किया है कि अगर उन्होने आइंदा इस तरह की औचित्यहीन, निरर्थक अपीलें पेश की तो उनसे प्रतिकर वसूलने पर विचार किया जाएगा ।
सुनवाई में कभी उपस्थित नही होते
आयुक्त आत्मदीप ने कहा कि ये अपीलार्थी ग्वालियर, दतिया व शिवपुरी जिलों के विभिन्न सरकारी दफ्तरों में आरटीआई लगा कर लंबी चौड़ी जानकारी मांगते हैं। 1 आवेदन में 1 विषय या 1 विशिष्ट मद से संबंधित सूचना मांगने की बजाए विभिन्न विषयों से जुड़ी विस्तृत स्वरूप की जानकारियां मांगते हैं। अभिलेख विशेेष की प्रति न मांगते हुए ऐसी जानकारियां भी मांगते हैं जो ‘‘सूचना’’ व ‘‘अभिलेख’’ की परिभाषा में नहीं आती है। ये जानकारी लेने के लिए न तो लोक सूचना अधिकारी कार्यालय में उपस्थित होते हैं, न डाक से जानकारी प्राप्त करने हेतु पता लिखा, डाक टिकिट लगा लिफाफा आवेदन के साथ संलग्न करते हैं और न ही लोक सूचना अधिकारी से कभी कोई संपर्क करते हैं। सूचित करने के बावजूद प्रतिलिपि शुल्क भी जमा नहीं करते हैं।
इसके बाद भी लोक सूचना अधिकारी नियत समय सीमा में पंजीकृत डाक से इन्हे वांछित जानकारी के संबंध में वस्तुस्थिति से अवगत करा देते हैं और या जानकारी निःशुल्क प्रेषित कर देते हैं। इस तरह आवेदन का समुचित निराकरण कर देने के बावजूद ये संतुष्ट नहीं होते हैं और बिना किसी विधिक आधार के प्रथम अपील कर देते हैं। पर सुनवाई में कभी उपस्थित नहीं होते हैं। अपीलीय अधिकारी द्वारा सूचित किए जाने पर भी जानकारी लेने के लिए कभी हाजिर नहीं होते हैं।
प्रथम अपील का विधि अनुसार निराकरण कर दिए जाने के बाद भी ये बिना किसी औचित्य के सूचना आयोग में द्वितीय अपील कर देते हैं और आयोग की सुनवाई में भी कभी उपस्थित नहीं होते हैं। ये प्रथम अपीलीय अधिकारी व सूचना आयोग को सुनवाई में हाजिर न होने का कोई कारण भी कभी सूचित नहीं करते हैं और न ही सुनवाई हेतु लिखित कथन प्रेषित करते हैं। जबकि लोक सूचना अधिकारी प्रथम व द्वितीय अपील की सुनवाई में वांछित अभिलेख सहित उपस्थित होते हैं। वे पुनः समक्ष में निःशुल्क देने के लिए जानकारी पेश करते हैं। लेकिन उसे लेने के लिए ये अपीलार्थी कभी नहीं आते हैं । अपनी अपील की ग्राह्यता पर नियत सुनवाई में भी ये अपीलार्थी हमेशा गैरहाजिर रहते हैं। इनकी अपीलों की सुनवाई के लिए आयोग ने इनके गृह जिले दतिया में कैंप कोर्ट लगाई। पर ये सदैव की भांति वहां भी उपस्थित नहीं हुए ।
यह भी हुआ: इन अपीलार्थियों ने इनका आवेदन संबंधित कार्यालय को अंतरित करने की सूचना मिलने के बाद भी जानकारी प्राप्त करने हेतु संबंधित कार्यालय से किसी प्रकार से संपर्क नहीं किया। इसी तरह अवगत कराने के बाद भी सक्षम अपीलीय अधिकारी को प्रथम अपील नहीं की और विधि विरूध्द ढंग से द्वितीय अपील कर दी ।
ऐसे भी अनेक मामले आयोग के सामने आए जिनमें लोक सूचना अधिकारी के सूचित करने के बाद भी इन अपीलार्थियों ने न तो नकल शुल्क जमा किया और न ही जानकारी प्राप्त करने हेतु उपस्थित हुए। फिर लोक सूचना अधिकारी को लिख कर दे दिया कि मैंने समस्त रेकार्ड का अवलोकन कर लिया है। अब मुझे वांछित दस्तावेजों की जरूरत नहीं है। इसके बाद भी प्रथम अपील कर दी। इस पर अपीलीय अधिकारी ने इन्हें निर्देषित किया कि उनके समक्ष उपस्थित होकर जानकारी प्राप्त करें। लेकिन इन्होंने उनके सामने हाजिर होकर जानकारी लेने की जगह आयोग में द्वितीय अपील कर दी ।
अपीलार्थी विनय शर्मा ने तो एक मामले में लोक सूचना अधिकारी को यह भी लिख कर दिया कि मैं जानकारी की अपनी संपूर्ण मांग खारिज करता हूं, आइंदा कोई जानकारी नही मांगूंगा और अगर मांगू तो आयोग मेरी अपील स्वतः खारिज कर दे। इसके बाद भी इस अपीलार्थी ने इसी मामले में आयोग में अपील दायर कर दी ।