अहम फैसला- विक्रम यूनिवर्सिटी के कुलपति व कुलसचिव को मप्र सूचना आयोग की फटकार, छात्रा को आंसर शीट की प्रमाणित प्रति 7 दिन में निःशुल्क देने के निर्देश।
न्यूजवेव @ भोपाल
मध्यप्रदेश राज्य सूचना आयोग ने परीक्षार्थी को उसकी उत्तर पुस्तिका की प्रति नहीं दिए जाने पर विक्रम यूनिवर्सिटी, उज्जैन को फटकार लगाते हुए निर्देश दिए कि अपीलार्थी को अगले 7 दिन में यह प्रति उपलब्ध कराई जाए।
राज्य सूचना आयुक्त आत्मदीप ने कुलपति व कुलसचिव को निर्देश दिए कि अपीलार्थी छात्रा को उसकी उत्तर पुस्तिका की प्रमाणित प्रति निःशुुल्क देकर 28 अप्रेल तक आयोग में अनुपालना प्रतिवेदन प्रस्तुत करें। अन्यथा उनके विरूध्द सूचना के अधिकार अधिनियम की धारा 20 (1) व 20 (2) के तहत दंडात्मक प्रावधान इस्तेमाल किए जा सकते हैं।
अपीलार्थी कु0 तितिक्षा शुक्ला की अपील मंजूर करते हुए राज्य सूचना आयुक्त ने आदेश में कहा कि आरटीआई एक्ट में नियमानुसार जांची हुई उत्तर पुस्तिका परीक्षक की राय का दस्तावेज है, जो धारा-2 के तहत ‘सूचना’ की परिभाषा में आता है। परीक्षार्थी या नागरिक को लोक प्राधिकारी के नियंत्रण में रखी ऐसी सभी सूचनाओं को पाने का मौलिक अधिकार है।
केन्द्रीय सूचना आयोग व विभिन्न राज्य सूचना आयोगों द्वारा पूर्व में दिए गए फैसलों में पुष्टि की जा चुकी है कि उत्तरपुस्तिका की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने का अधिकार परीक्षार्थी को है।
सुप्रीम कोर्ट ने इसे वैधानिक अधिकार माना
सर्वोच्च न्यायालय ने भी सीबीएसई बनाम आदित्य बंदोपाध्याय मामले में स्पष्ट आदेश दिए कि परीक्षार्थी को मूल्यांकित उत्तरपुस्तिका की प्रमाणित प्रति प्राप्त करने का वैधानिक अधिकार है। अपनी आंसर काॅपी में दी गई सूचनाओं को उसे बताने में प्रतिलिप्याधिकार का उल्लंघन नहीं होता है। ऐसे में परीक्षा लेने वाली संस्थाओं को आरटीआई एक्ट की धारा-9 की छूट प्राप्त नहीं होगी ।
सूचना आयुक्त ने यूनिवर्सिटी की इस दलील को विधि विरूद्ध करार दिया कि यूनिवर्सिटी समन्वय समिति द्वारा मंजूर स्थायी समिति की अनुशंसा के अनुसार यूनिवर्सिटी या काॅलेज के विद्यार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं की प्रति नहीं दी जा सकती क्योंकि इससे वैधानिक परेशानी बढ़ने की आशंका है। अतः आरटीआई के तहत उत्तर पुस्तिका की प्रति नहीं दी जा सकती, केवल उसका अवलोकन कराया जा सकता है।
आरटीआई एक्ट के प्रावधान सर्वोपरि
इस महत्वपूर्ण मामले में अपीलीय अधिकारी (कुलपति) व लोक सूचना अधिकारी (कुलसचिव) के निर्णय खारिज करते हुए आयुक्त आत्मदीप ने फैसले में कहा – अधिनियम की धारा 22 के अनुसार आरटीआई एक्ट के प्रावधान का सर्वोपरि (ओवर राईडिंग) प्रभाव रहेगा। इसका आशय है कि यदि अन्य किसी कानून, नियम या प्रावधान में आरटीआई एक्ट से विसंगति रखने वाला कोई प्रावधान है तो ऐसे असंगत प्रावधान मान्य नहीं होंगे, उसके स्थान पर आरटीआई एक्ट के प्रावधान मान्य होंगे।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया जा चुका है कि आरटीआई एक्ट की धारा 22 के अनुसार, अधिनियम के प्रावधान सर्वोपरि होने से, परीक्षा लेने वाले निकाय इस बात से आबद्ध हैं कि वे अपने नियमों या विनियमों में विपरीत प्रावधान होने के बावजूद, परीक्षार्थी को उत्तरपुस्तिका देखने का अवसर दें और चाहे जाने पर उसकी प्रति प्रदान करें ।
अपील संबंधी जानकारी देना जरूरी
अपीलार्थी के सूचना आवेदन का नियत अवधि में समाधान न करने, अपीलार्थी को प्रथम व द्वितीय अपील संबंधी जरूरी सूचना नहीं देने एवं प्रथम अपील की सुनवाई में अपीलार्थी के प्रतिनिधि को नहीं सुनने पर नाराजगी जताते हुए राज्य आयोग ने कुलपति व कुलसचिव कोे भविष्य में ऐसी वैधानिक त्रुटि न करने की हिदायत दी है ।
यह है मामला
कु0 तितिक्षा शुक्ला ने विक्रम यूनिवर्सिटी, उज्जैन से मैनेजमेंट अकाउंटिंग सब्जेक्ट के पेपर में स्वयं की उत्तर पुस्तिका की प्रति चाही थी, जिसे देने से कुलसचिव ने यह कह कर इंकार कर दिया कि आरटीआई एक्ट के तहत उत्तर पुस्तिका की प्रतिलिपी देने का प्रावधान नहीं है। कुलपति ने इसी आधार पर प्रथम अपील खारिज कर दी थी। राज्य सूचना आयोग ने कुलपति व कुलसचिव के आदेशों को निरस्त कर अपीलार्थी को उत्तर पुस्तिका की प्रति देने का आदेश जारी किया।