Friday, 19 April, 2024

कोटा कोेचिंग के द्रोणाचार्य वी.के.बंसल सर नहीं रहे

71 वर्षीय वीके बंसल ने असाध्य बीमारी ‘मस्कुलर डिस्ट्रोफी’ से हार नहीं मानी, 47 वर्षों तक व्हील चेयर से हजारों बच्चों को पढ़ाकर आईआईटी पहुंचाया
न्यूजवेव @ कोटा

‘कुछ लोग थे जो वक्त के सांचे में ढल गये, कुछ ऐसे भी थे जो वक्त के सांचे को बदल गये..।’ कोटा कोचिंग के प्रकाशपुंज विनोद कुमार बंसल सोमवार 3 मई को सुबह 3ः30 बजे चिरनिद्रा में लीन हो गये। पुत्र बसंल क्लासेस के निदेशक समीर बंसल ने बताया कि 20 दिन पहले वे कोरोना पॉजिटिव थे, बाद में नेगेटिव भी हो गये थे लेकिन फेंफड़ों में तकलीफ बढ़ती गई, जिससे अचानक सोमवार सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। आपका जन्म 26 अक्टूबर,1949 को झांसी में हुआ था।


देश-विदेश में शिक्षा नगरी कोटा को पहचान दिलाने वाले 71 वर्षीय कोचिंग शिक्षक वीके बंसल के बारे में बहुत कम लोग जानते होंगे उनके घर में बिजली तक नहीं थी। उन्होंने बचपन में लालटेन की रोशनी में पढाई की थी। 1971 में बीटेक करने के बाद उन्होंने जेके सिंथेटिक्स, कोटा में मैकेनिकल इंजीनियर के रूप में जॉब शुरू किया। तीन वर्ष बाद ही उन्हें ‘मस्कुलर डिस्ट्रोफी’ जैसी असाध्य बीमारी ने घेर लिया। गंभीर बीमारी होने से जॉब छोडा लेकिन हिम्मत नहीं हारी।
अंधेरे में प्रकाश की किरण

उस समय इलाज कर रहे डॉक्टर्स ने कहा था कि इस रोग में 15-20 वर्ष का जीवन ही शेष है इसलिये ‘एजुकेशन एट होम’ से बच्चों को पढ़ा सकते हो। घर पर डायनिंग टेबल पर कुछ बच्चों को निशुल्क पढाने लगे। 11वीं एवं 12वीं के बच्चों को मैथ्स पढ़ाने से 1-2 वर्ष बाद 70 में से 50 बच्चे आईआईटी में चयनित होने लगे। इससे अंधेरे में प्रकाश की किरण मिल गई। उन्हंोंने विज्ञान नगर में बंसल क्लासेस से कोचिंग की नींव रखी। फिर व्हील चेयर से क्लास में निरंतर पढाते हुये कभी पीछे मुडकर नहीं देखा।

करीब 35 वर्षो में 25 हजार से अधिक विद्यार्थियों को आईआईटी में पहुंचाकर कोटा कोचिंग का नाम दुनियाभर में रोशन कर दिया। यूएसए की वॉल स्ट्रीट जर्नल ने उन्हें कोटा कोचिंग का पायोनियर बताया । इकलौता ऐसा कोच जिसने हजारों विद्यार्थियों के साथ कोचिंग शिक्षक भी तैयार कर कोटा कोचिंग को नेशनल ब्रांड के रूप में स्थापित कर दिया। शहर के सभी कोचिंग संस्थानों के निदेशकों एवं वरिष्ठ फैकल्टी सदस्यों ने उनके निधन को अपूरणीय क्षति बताते हुये भावपूर्ण श्रद्धाजंलि दी है।
जीवन एक प्रश्नपत्र की तरह

दिवंगत वीके बसंल बच्चों से कहते थे, जीवन एक प्रश्नपत्र की तरह है, जिसे हल करने के लिये किसी कॉम्प्रिहेंशन की जरूरत नहीं है। अच्छे कार्यों से पास होना मायने रखता है। नदी के प्रवाह की तरह प्रतिस्पर्धा में बहना ही होगा। जिंदगी में सबको पग-पग पर विजयी होने के लिये कडी परीक्षाओं से गुजरना होता है। जीवन की पूरी समीकरण को हल करना ही असली जीत है। हमेशा एक विजेता की तरह सोचें। उनके ये शब्द कोरोना से जूझ रहे रोगियों का मनोबल बढा सकते हैं।

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