कोटा। तेजी से बदलते वैश्विक परिदृश्य को देखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा देश की शिक्षा नीति में आमूल परिवर्तन किए जा रहे हैं। न्यू इंडिया-2022 के विजन में परंपरागत थ्योरी से परे अब प्रेक्टिकल लर्निंग और स्किल पर फोकस किया जा रहा है। डिग्री लेकर केवल नौकरी करना युवाओं का लक्ष्य नहीं रहा। वे एक कदम आगे हैं। आज युवा कोचिंग के जरिए क्वालिटी एजुकेशन लेकर देश में विभिन्न क्षेत्रों में नए स्टार्टअप बिजनेस शुरू कर रहे हैं।
सीबीएसई स्कूलों में कक्षा-10 से ही क्वालिटी सुधार की मुहीम तेज कर दी गई। टीचर्स पर क्वालिटी कंट्रोल किया जा रहा है। अब तक सरकारी स्कूलों के विद्यार्थी अच्छे काॅलेजों में एडमिशन से वंचित रह जाते थे, इसलिए सरकारी स्कूलों को पीपीपी मोड में संचालित करने का अभियान कई राज्यों में शुरू हो चुका है।
प्रवेश परीक्षाओं पर नजर डालें तो देश में इंजीनियरिंग, आईआईटी, एम्स या मेडिकल की प्रवेश परीक्षाओं का पेपर पैटर्न स्कूली पढ़ाई से बिल्कुल अलग है। प्रवेश परीक्षाओं में विद्यार्थियों की विषयों के साथ लाॅजिकल एप्रोच, एप्लीकेशन पर आधारित नाॅलेज, कंसेप्चुअल समझ, स्पीड, एक्यूरेसी और मेंटल एबिलिटी की कसौटी पर परखा जाता है। जबकि स्कूलों में केवल सिलेबस पर आधारित थ्योरी नाॅलेज ही मिलता है। ऐसे में कोचिंग सिस्टम दोनों पैटर्न के बीच सेतु का काम कर रहा है।
ऐसे में विद्यार्थियों को प्रवेश परीक्षाओं के स्तर के अनुसार ऐसे उच्च प्रशिक्षित शिक्षकों की आवश्यकता महसूस हुई जो स्वयं आईआईटी, एनआईटी, एम्स या मेडिकल काॅलेजों से डिग्री लेकर उन्हें क्लास में पढ़ाते हुए सही गाइडेंस दे सके। देश में इस समय इंजीनियरिंग में लगभग 12 लाख और मेडिकल में 11 लाख विद्यार्थी प्रवेश परीक्षाओं में सम्मिलित होते हैं। 17 से 25 वर्ष की उम्र में 20 लाख किशोर विद्यार्थी अच्छे कॅरिअर के लिए आगे पढ़ना चाहते हैं। लेकिन आईआईटी एवं मेडिकल काॅलेजों में सीटों की संख्या सीमित होने से उन्हें प्रवेश परीक्षाओं में कडी प्रतिस्पर्धा का सामना करना होता है।
आज ‘कोचिंग’ शब्द को व्यापक अर्थ में देखना होगा। क्रिकेट या अन्य स्पोटर्स में एक कोच किसी खिलाडी को राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेलने के लिए तैयार कर देता है। उसी तरह कोचिंग संस्थान में भी अनुभवी शिक्षक कोच या मेंटर के रूप में विद्यार्थी की रूचि के अनुसार उसे विषयों की गहराई तक ले जाते हैं। वे बच्चों में आत्मविश्वास भर देते हैं। यही वजह है कि पिछले तीन दशकों से लाखों विद्यार्थी स्तरीय कोचिंग लेकर आईआईटी, एनआईटी, fत्रपल आईटी, एम्स, मेडिकल काॅलेजों में दाखिला ले रहे हैं।
o कोचिंग में विषय विशेषज्ञ प्रत्येक टाॅपिक के कंसेप्ट को गहराई से समझाते हैं। वे विद्यार्थी शिक्षकों से खूब सवाल-जवाब करते हैं। जिससे उनका आत्मविश्वास बढता है।
o देश में केवल इंजीनियरिंग या मेडिकल में ही नहीं आजकल सीए, सीएस, यूपीएससी, नेट, क्लेट, कैट सहित कई प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए विशेषज्ञों द्वारा कोचिंग दी जा रही है।
o कोचिंग संस्थान स्कूल और कठिन प्रवेश परीक्षा के बीच ज्ञान के गेप को पूरा कर देते हैं।
o प्रत्येक विद्यार्थी को अच्छे स्तर की शिक्षा देकर उसे विषयों के ज्ञान के साथ समय प्रबंधन, आत्मविश्वास, मेंटल एबिलिटी, एक्यूरेसी एवं एप्टीटयूड में दक्षता मिल जाती है।
o देश के 23 आईआईटी में इस समय 10,988 सीटें हैं, जो 2018 में 11.509 हो जाएंगी। पहले शहरी और संभ्रांत वर्ग के बच्चे ही आईआईटी में प्रवेश लेते थे लेकिन कुछ दशकों में कोचिंग संस्थानों ने देश के हजारों ग्रामीण बच्चों, सरकारी स्कूलों में हिंदी माध्यम के विद्यार्थियों को आईआईटी, एनआईटी, एम्स तथा मेडिकल काॅलेजों में एडमिशन के लिए योग्य बना दिया।
o रिजल्ट देखें तो कोचिंग में पढ़ने वाले दिहाडी मजदूर, किसान, कुली, हम्माल या रिक्शाचालक के बच्चे भी मेडिकल, आईआईटी एवं एनआईटी में पहुंचे। कोचिंग में स्काॅलरशिप मिलने से निम्न एवं निर्धन वर्ग के सैकडों विद्यार्थियों को शिक्षा में समानता अवसर मिला।
o कोचिंग के शांत शैक्षणिक वातावरण का नतीजा है कि इस वर्ष राजस्थान से प्रत्येक 5वां विद्यार्थी आईआईटी में पहुंचा है। इतना ही नहीं, आईआईटी की विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार, इस वर्ष 25 प्रतिशत ग्रामीण बच्चे आईआईटी मंे प्रवेश लेने में सफल रहे।
o आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र एवं गुजरात जैसे राज्यों में राज्य सरकार ने विद्यार्थी हित में प्रमुख कोचिंग संस्थानों को जूनियर काॅलेज या इंटरमीडिएट काॅलेज की मान्यता देकर विद्यार्थियों पर दोहरा आर्थिक एवं मानसिक दबाव कम किया है। यही वजह है कि आंध्रप्रदेश से बडी संख्या में विद्यार्थी आईआईटी एवं एनआईटी में पहुंच रहे हैं।
o विद्यार्थियों को उच्च शिक्षा के लिए प्रोत्साहन देते हुए सरकार यदि अन्य राज्यों में भी समान व्यवस्था लागू कर कोचिंग संस्थानों को जूनियर काॅलेज की मान्यता प्रदान करे तो विद्यार्थियों पर समय, मेहनत और फीस का दोहरा दबाव नहीं पडे़गा।