Thursday, 12 December, 2024

मलेरिया को हराने के लिए तैयार रहें

विश्व मलेरिया दिवस- 25 अप्रैल

नवनीत कुमार गुप्ता
न्यूजवेव @ नईदिल्ली

इस वर्ष मलेरिया दिवस की थीम है-‘मलेरिया को हराने के लिए तैयार‘। स्माल पॉक्स और पोलियो को भारत से खत्म करने के बावजूद मलेरिया जैसी कुछ बीमारियां अधिक भयावह हो रही हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 1955 में घोषणा की थी कि मलेरिया पर विजय का समय आ गया है, जल्द यह रोग समाप्त हो जाएगा। लेकिन हुआ इससे विपरीत। मलेरिया ने पलटवार किया, जिससे यह रोग दुनियाभर में हर साल करीब 22 से 50 करोड़ लोगो को चपेट में लेकर लाखों जानें ले चुका है।

मलेरिया से बढ़ा मौत का तांडव

डब्ल्यूएचओ के अनुसार 2016 में दुनिया में 21.60 करोड़ मलेरिया पीड़ित हुए, जिसमें से 4.45 लाख मरीजों की मृत्यु हो गई। 2015 की तुलना में 2016 में 50 लाख अधिक लोग मलेरिया की चपेट में आ गए।

विशेषज्ञों के अनुसार, विश्व की करीब सवा 3 अरब आबादी को मलेरिया होने का खतरा है। 2015 में करीबन 97 देशों में इसका प्रकोप रहा। कुल 80 प्रतिशत मौतें मलेरिया प्रभावित 15 देशों में हुई। इसमें नाइजीरिया और कांगों दो देशों में 35 प्रतिशत मौते हुई। मरने वालों में 78 प्रतिशत बच्चे हैं। मलेरिया से निपटने के लिए प्रतिवर्ष 5.1 अरब डॉलर की राशि चाहिए जो उपलब्ध राशि से दोगुनी है।

भारत में 20 लाख लोग प्रभावित
देश में हर साल मलेरिया से करीब 20 लाख लोग प्रभावित होते हैं। जिसमें प्रतिवर्ष 1000 की मौत मलेरिया के कारण हो जाती है। राजस्थान, मध्यप्रदेश,, महाराष्ट्र, छत्तीगढ़, गुजरात, झारखंड, उड़ीसा एवं आंध्रप्रदेश राज्य सर्वाधिक मलेरिया प्रभावित राज्यों में शामिल हैं।
लगभग 300 वर्षों से मलेरिया के इलाज में काम आने वाली कड़वी कुनैन टेेबलेट आज बेअसर साबित हो रही है। क्लोरोक्विन से भी कारगर इलाज नहीं हो रहा है। डीडीटी और दूसरे कीटनाशकों के छिड़काव से आस जगी थी कि अब मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों का सफाया हो जाएगा लेकिन मच्छर ग्रामीण व शहरी इलाकों में पूरी ताकत से हमला बोल रहे हैं।

राष्ट्रीय मलेरिया नियंत्रण प्रोग्राम
इस घातक रोग पर काबू पाने के लिए केंद्र सरकार ने 1958 में ‘राष्ट्रीय मलेरिया उन्मूलन’ कार्यक्रम प्रारंभ किया। डीडीटी आदि कीटनाशक दवाइयों के छिड़काव में ढील से 1960 व 1970 के दशक में मलेरिया मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी। 1990 के दशक में यह रोग नई ताकत के साथ वापस लौट आया। इसकी वापसी के कारणों में मुख्य रूप से कीटनाशकों के लिए मच्छरों की प्रतिरोधिता एवं खुले स्थानों में मच्छरों की बढ़ती तादाद है।

नन्हे मच्छर-भयावह रोग
मलेरिया की प्राब्लम के लिए जिम्मेदार जीव है- एक नन्हा सा मच्छर। मच्छर खतरनाक रोगाणु वाहक कीट हैं। इनकी एनाफिलीज प्रजाति के मादा मच्छर मलेरिया फैलाते हैं। असल में मलेरिया एक सूक्ष्म परजीवी प्लाज्मोडियम के कारण होता है। इसकी चार प्रजातियों प्लाज्मोडियम फैल्सिपेरम, प्लाज्मोडियम वाइवैक्स प्लाज्मोडियम ओवेल, और प्लाज्मोडियम मलेरी से मनुष्यों को मलेरिया रोग होता है। इसकी पांचवीं प्रजाति प्लाज्मोडियम नोलेसी जूनोटिक है। यानी, इससे मैकाक बन्दरों और मनुष्यों को मलेरिया होता है जो एक-दूसरे में फैल सकता है।

इस परजीवी सूक्ष्मजीव को एनाफिलीज प्रजाति के मादा मच्छर फैलाते हैं। जब वे किसी मलेरिया के रोगी का खून चूसते हैं तो मलेरिया परजीवी यानी स्पोरोजॉइट उनकी लार ग्रंथियों में पहुंच जाते हैं। वहां से रक्त वाहिनियों के जरिए लिवर यानी यकृत में पहुंचते हैं। वहां परिपक्व होकर लाखों मेरोजॉइट बनाते हैं। वे रक्त प्रणाली में पहुंच कर लाल रक्त कोशिकाओं में लाखों की तादाद में बढ़ते हैं। 48 से 72 घंटे के भीतर वे लाल रक्त कोशिकाएं फट जाती हैं।

इस तरह लाल रक्त कोशिकाएं बड़ी संख्या में नष्ट हो जाती हैं और मलेरिया रोगी एनीमिया का शिकार हो जाता है। मलेरिया के मुख्य लक्षण हैं- एनीमिया, ठंड के साथ कंपकंपी, जूड़ी बुखार, एंठन, सिर दर्द, मल में खून, उल्टी, पसीना निकलना और बेहोशी। मलेरिया के लक्षण आमतौर पर 10 दिन से 4 सप्ताह तक के भीतर प्रकट हो जाते हैं। लक्षण हर 48 से 72 घंटे बाद प्रकट होते है।

मलेरिया वैक्सीन की खोज जारी
मलेरिया की प्रचलित दवा कुनैन को सिनकोना के पेड़ की छाल से बनाया जाता है। 1943 में क्लोरोक्विन की खोज हुई जिससे मलेरिया के उपचार में बहुत मदद मिली। मनुष्यों को मलेरिया से बचाने के लिए टीके की खोज चल रही है। विशेषज्ञ मलेरिया फैलाने वाले मच्छरों के जीन में हेरफेर करके ऐसे मच्छर तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं, जिनके शरीर में परजीवी जाना ही न चाहें या ऐसे मच्छर मनुष्य का खून न चूसना चाहें।
देश में केन्द्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान, लखनऊ ने कुछ समय पूर्व मलेरिया इलाज के लिए ‘ई-माल’ तथा ‘आब्लाक्विन’ नामक औषधियों का विकास किया है।

घर से करें मलेरिया का मुकाबला
मलेरिया की रोकथाम के लिए वैज्ञानिकों का कहना है कि मच्छरदानियों को रसायनों में भिगा-सुखा कर काम में लें। ऐसी दवा-बुझी मच्छरदानियों से कई विकासशील देशों में लोग मलेरिया की मार से बच रहे हैं। मच्छरों की लार्वा खाने वाली मछलियों की संख्या बढ़ाने पर भी बल दिया जा रहा है।
हम अपने घरों के आसपास पानी जमा नहीं होने दें ताकि वहां मच्छर नहीं पनप सकें। कूलर में नियमित पानी बदलते रहें। स्वच्छता अभियान से मच्छरों का प्रकोप कम हुआ है लेकिन थमा नहीं है।इसलिए अवेयरनेस रखते हुए इसे बचने का प्रयास अवश्य करें।

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