Thursday, 12 December, 2024

गागरोन के राजा पीपाजी ने द्वारकाधीश को पाने के लिये छोड़ा राज

श्री पीपलेश्वर महादेव मंदिर पर भक्तमाल कथा में संत गौरदास महाराज ने कहा, पीपाजी व सहचरि के चरणों से राजस्थान की भूमि पवित्र हुई
न्यूजवेव @ कोटा 

वृंदावन के संत गौरदास महाराज ने भगवान श्री पीपलेश्वर महादेव मंदिर में भक्तमाल कथा के दूसरे सोपान में सोमवार को झालावाड जिले के गागरोन किले के राजा पीपाजी और रानी पदमावती की अविरल भक्ति का वृतांत सुनाते हुये कहा कि द्वारिकाधीश के प्रति राजा पीपाजी व रानी पदमावति (सहचरि) के समर्पण भाव से राजस्थान की भूमि पवित्र हो गई।
उन्होंने बताया कि भक्तमाल ग्रंथ में गागरोन के राजा पीपाजी की भक्ति पर नाभा गोस्वामी ने छप्पय छंद लिखे हैं। पहले राजा पीपाजी बहुत तामसी थे। एक स्वप्न में उन्होंने देखा कि बकरे व भैंसा मारने वाले राजा को भूतप्रेत मार रहे हैं। उन्हें आत्मबोध हुआ। सुबह प्रार्थना की कि राजकाज, भोग, सम्पत्ति खूब मिल चुकी, अब संसार से मुक्ति दे दो। उनसे कहा गया कि काशी के पंचगंगा घाट पर जगदगुरू रामानंदाचार्य से दीक्षा लेकर पहले वैष्णव बनो। वे धन-सम्पत्ति दान कर भिखारी बन काशी चले गये। जगदगुरू ने कहा, पहले कुएं में कूद जाओ। राजा ने देह का अभिमान तोडा तो एक सेवक ने उन्हें थाम लिया। रामानंदाचार्य ने उन्हें कान में श्रीराम मंत्र सुनाया और कहा अब गागरोन लौट जाओ। सबको वैष्णव बनाओ, मैं एक साल बाद वहां आउंगा।
मेरे घर आये चारों धाम, मैं आते देखूं संतन को..

जगदगुरू रामानंदाचार्य 40 भक्तों कबीर, रैदास, धन्नादास आदि के साथ द्वारिकाधीश जाते समय कोटा-बूंदी होते हुये झालावाड के गागरोन किले में पहुंचे। वहां जगदगुरू के स्वागत में कहारों की जगह खुद राजा पीपाजी ने ली और पद सुनाया- मेरे घर आये चारों धाम, मैं आते देखूं संतन को। जगदगुरू कई माह गागरोन में रूके जिससे वहां अयोध्या जैसा वातावरण बन गया। रोज भजन-संकीर्तन होने लगे। पीपाजी ने भतीजे भोजराज को राज सौंपकर द्वारिकाधीश में शरणागत होने की इच्छा जताई। 20 में से सबसे छोटी रानी पदमावति ने भी 15 वर्ष की उम्र में कहा, जो धर्म कार्य में साथ दे, वही धर्मपत्नी है। मैं भी सबका त्याग करूंगी। इस पर जगदगुरू ने उन्हे सीता सहचरि नाम से दीक्षा दी।
समुद्र में ऐसे मिले द्वारिकाधीश


पीपाजी सहचरि के साथ जब द्वारिकाधीश पहुंचे तो सब मूरत के दर्शन कर रहे थे, वे ठाकुर जी की सूरत के दर्शन चाहते थे। समुद्र किनारे बैठ तपस्या कर रहे थे। वहां पता चला कि दिव्य द्वारिका लीला में ठाकुरजी 7वें दिन समुद्र में लीन हो गये। यह सुन पीपाजी व सहचरि भी समुद्र में कूद गये। गहराई में द्वारिकाधीश व रूक्मणी द्वार पर उनकी प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्हें कठिन साधना में नाम,रूप, लीला और धाम चारों मिल गये। श्रीकृष्ण ने उनकी भुजाओं पर शंख, चक्र, गदा और पदम की मुद्रा अंकित कर कहा जिसे इनका स्पर्श करवा दोगे, उन्हें मैं स्वीकार कर लूंगा। यह अमृत कृपा पाकर पीपाजी सहचरि के साथ समुद्र जल पर सतह की तरह चलते हुये आये। उन्होंने सारी मुद्रायें द्वारिकाधीश मंदिर के मुख्य पुजारी को सौंप दी। वहां से शेष शाही के जंगल में चौथे वर्ण की गरीब चीधर व चीधरनी से मिलते हुये जयपुर, दौसा, टोंक होते हुये झालावाड पहुंचे। वे मानसी सेवक रहे, इसलिये यह भूमि धन्य व पवित्र हो गई।
संत गौरदास महाराज ने कहा कि भक्तमाल ग्रंथ के छंदों में कई महापुरूषों के चरित्रों का उल्लेख है। जो हमें वैष्णव परंपरा के भक्तिभाव से जोडते हैं। मंदिर में मूरत के दर्शन होते हैं लेकिन भगवान की सूरत तो मूरत के अंदर छिपी होती हैं, उसे देखने के लिये निरंतर भक्ति करनी होगी। हाडौती की धरती पर पीपाजी महाराज का त्याग द्वारिकाधीश में शरणागति ही है। जिसे भक्त ही महसूस कर सकते हैं।
18 अप्रैल को विशाल भजन संध्या


श्री पीपलेश्वर महादेव मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष जागेश्वर सिंह ने बताया कि पंचम पाटोत्सव महोत्सव के तहत मंगलवार को मंदिर परिसर में रात्रि 8 बजे से विशाल भजन संध्या का आयोजन होगा, जिसमें भजन संवाहक गोविंद माहेश्वरी अपनी मधुर वाणी से मनोहारी भजनों की प्रस्तुतियां देंगे।

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