श्री पीपलेश्वर महादेव मंदिर पंचम पाटोत्सव महोत्सव : कलश यात्रा में उमडे़ श्रद्धालु, संत गौरदास महाराज ने भक्तमाल कथा में पद और छंद से बरसाया भक्ति अमृत
न्यूजवेव@ कोटा
‘राजस्थान में 500 वर्ष पूर्व गलताजी में जन्मांध नाभा गोस्वामी महाराज ने 9 वर्ष की आयु में दिव्य दृष्टि से श्री भक्तिमाल ग्रंथ लिखते हुये 6-6 पंक्ति के पद अर्थात छप्पय छंद का वर्णन किया है। इसमें एक चौथाई संत राजस्थान से होने पर इस धरा पर इसे अनमोल ग्रंथ माना गया।’
वृंदावन के संत गौरदास महाराज ने रविवार को भगवान श्री पीपलेश्वर महादेव मंदिर के पंचम प्राण प्रतिष्ठा (पाटोत्सव) महोत्सव में आयोजित श्री भक्त माल कथा के प्रथम सोपान में यह बात कही। उन्होंने कहा कि इस ग्रंथ में भक्तों के चरित्र को मनका के रूप में पिरोया गया है। यह फूल, तुलसी, रूद्राक्ष से बढकर भक्तों की माला है। उन्होंने 4 दोहा और 6-6 पंक्ति के छप्पय छंद से 24 अवतारों का बोध करवाया। पांडाल में बैठे श्रोताओं को मंगलाचरण करवाते हुये कहा कि संसार में विषय-विद्वेग, मान-अपमान से परे होकर राधा-गोविंद के निकट जाने का प्रयास करो।
महाराज ने चौपाई ‘हम सुख में रहें या दुख में हम तो तुझे रिझायेंगे, नियरे रहें या न्यारे, हम तो तेरे की कहलायेंगे’ सुनाते हुये कहा कि 9 वर्ष की उम्र में नाभाजी ने सियमन रंजनी वाटिका में बैठ भक्तमाल का ध्यान किया था। संसार में भक्ति और भजन से तार जोडकर रखें क्योंकि गुरू भक्ति शिष्य के हर विध्न को काटती है। विडंबना है कि हम गैर जरूरी काम में व्यस्त हैं, भक्ति को कल पर छोड देते हैं, जबकि यह देह भक्ति के लिये ही मिली है। उन्होंने कहा कि पिछले 6 माह में कितने लोग हार्ट अटैक से अचानक चले गये। हम भक्ति से ही बचे हैं। तन तनिक में छूट जाये फिर पछताये क्या होत है।
भक्तमाल कथा में सोमवार को गागरोन के पीपाजी महाराज और सीता सहचरि प्रसंगों का वर्णन होगा। उन्होंने छंद ‘मेरो प्यारो नंदलाल किशोरी राधे’ का संकीर्तन कराया। रविवार को कथा में मौजीबाबा आश्रम की महामंडलेश्वर साध्वी हेमा सरस्वती का सान्निध्य मिला।
भव्य कलश यात्रा में उमडे श्रद्धालु
मंदिर सेवा समिति के अध्यक्ष जागेश्वर सिंह चौहान व महामंत्री कुलदीप माहेश्वरी ने बताया कि रविवार सुबह भव्य कलश यात्रा से पंचम पाटोत्सव महोत्सव का शुभारंभ हुआ। कलश यात्रा में सैकडों श्रद्धालु शामिल हुये। मार्ग में पुष्पवर्षा के साथ भक्तों का स्वागत किया गया।
भक्तमाल महात्म की सत्य घटना
संत गौरदास महाराज ने अलवर की एक सत्य घटना सुनाई। एक सेठ ने प्रियादास महाराज से भक्तमाल की पौथी मांगी और उसे अलमारी में रख दिया। बच्चों से कहा, इसे जरूर पढना। जब अंत समय आये तो इसे मेरे सीने पर रख देना। समय बीता। कंठ बंद हो गया। वे अलमारी की ओर ईशारा करते रहे। एक पुत्र पौथी लेकर आया, उसे रखते ही उनकी वाणी आ गई। वे हरिनाम लेते हुये लोकधाम चले गये।
राजस्थान के होडल गांव मंे भी चार चोरों ने ठाकुरजी के गर्भगृह से जेवर के साथ प्रतिमा को चुरा लिया था। वहां लालदास सेवारत थे। उन्होंने प्रार्थना की, तुमने दोहरे दुख डाले हैं, मेरी भक्तिमाल छुडवा दो। इस पर ठाकुरजी चोरों को सपने में प्रकट हुये और कहा, तुम्हे चार गुना फल भोगना पडेगा। इस पर चोरों को अपराधबोध हुआ कि भक्ति में कितनी शक्ति है।
ऐसे हुई भक्तमाल ग्रंथ की रचना
उन्होंने बताया कि 5 वर्ष में संत नारायणदास के माता-पिता की मृत्यु हो ने से वे जंगल में चले गय थेे। वहां से गुजर रहे गुरू अग्रदास महाराज की दृष्टि जन्मांध बालक पर पडी। उन्होंने कमंडल के जल का स्पर्श कर उसे दिव्य दृष्टि दे दी। उसे अपने साथ गलताजी ले गये और वहां शिक्षा-दीक्षा दी। दिव्य दृष्टि मिलने से वे जान गये कि गुरूदेव की नाभि में क्या चल रहा है। इसलिये उन्हें नाभा गोस्वामी नाम दिया। गुरू ने कहा कि सतयुग से अब तक महापुरूषों के चरित्र को लिखते रहो। 9 वर्ष की उम्र में नाभा गोस्वामी ने भक्तमाल ग्रंथ लिख दिया। उनके बाद वृंदावन में प्रियादास महाराज ने पद और छंदों की व्याख्या करते हुये ‘भक्ति रस गोधिनी’ टीका लिखा। इसमें हनुमान, शबरी, मीरा, कबीर, तुलसी, सूरदास, नामदेव जैसे कई महापुरूषों के प्रसंग हैं। वृंदावन के संत गौरदास महाराज (44) स्वयं 7 वर्ष की उम्र से भक्तमाल कथा कर रहे हैं। अब तक वे देश में 1200 से अधिक स्थानों पर यह कथा कर चुके हैं।