Wednesday, 11 December, 2024
In this Friday, Aug. 6, 2010 photograph, a portrait of Hindu monkey-headed god Hanuman sits on the study table of a student at a hostel in Kota, India. Every year, more than 450,000 students take the Indian Institutes of Technology (IIT) exam, hoping for entry to the hallowed public engineering institutes located across India. Slightly more than 13,000 passed in 2010, a 3 percent success rate. (AP Photo/Saurabh Das)

इंजीनियरिंग में दो बड़ी चुनौतियां-बेरोजगारी व छंटनी

अरविंद गुप्ता

कोटा। देश के इंजीनियरिंग काॅलेजों में प्रतिवर्ष 8 लाख ग्रेजुएट इंजीनियर्स की फौज तैयार हो रही है लेकिन इसमें से 70 प्र्रतिशत से अधिक बेरोजगार रह जाते हैं। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा काउंसिल के अनुसार, इससे देश में वार्षिक 20 लाख कार्य दिवस का नुकसान हो रहा है। इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की बढती बेरोजगारी को देखते हुए अब चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और क्लर्क के लिए आवेदन करने में वे सबसे आगे हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश के 6,214 इंजीनियरिंग व तकनीकी काॅलेजों में 29 लाख स्टूडेंट बीटेक व अन्य कोर्सेस कर रहे हैं। इनमें से प्रतिवर्ष 15 लाख इंजीनियरिंग स्टूडेंट डिग्री लेने के बाद जाॅब के लिए आवेदन करते है। लेेकिन अधिकांश डिग्रीधारी स्टूडेंट प्लेसमेंट के लिए भटकने पर मजबूर हो रहे हैं।
एचआर विशेषज्ञों का आंकलन है कि इस समय देश के इंजीनियरिंग काॅलेजों से जो डिग्रीधारी इंजीनियर निकल रहे हैं, वे उद्योगों में रोजगार की कसौटी पर खरे नहीं। येन-केन थ्योरी पेपर में पास होकर वे डिग्री लेते हैं लेकिन इंडस्ट्री में आकर फेल हो रहे हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने फीडबेक के आधार पर देश की तकनीकी शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव करने की योजना पर अमल शुरू कर दिया। इस रणनीति में अगले वर्ष से इंजीनियरिंग में एकल राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा आयोजित करने, वार्षिक टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम, पंजीकृत विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य इंडक्शन टेªनिंग तथा कॅरिकुलम मे वार्षिक बदलाव करना शामिल है।

 

भर्ती कैंपस केवल मेट्रो शहरों तक

तकनीकी विशेषज्ञों के अनुसार, आज मैन्यूफेक्चरिंग, आईटी एवं सर्विस सेक्टर से जुड़ी 90 प्रतिशत मल्टीनेशनल एवं प्रमुख भारतीय कंपनियां एवं इंडस्ट्रीज टेक्निकल मेनपाॅवर के लिए आईआईटी, एनआईटी, त्रिपल आईटी, केंद्रीय विŸा पोषित तकनीकी संस्थानों सहित सेंट्रल यूनिवर्सिटी एवं निजी क्षेत्र में प्रमुख प्राइवेट यूनिवर्सिटी एवं ए ग्रेड के ब्रांड इंजीनियरिंग काॅलेजों तक कैंपस प्लेसमेंट सीमित रखती है।
विभिन्न राज्यों में मध्यम श्रेणी के शहरों में इंजीनियरिंग काॅलेजों से बड़ी कंपनियों में प्लेसमेंट में गिरावट आई है। वजह साफ है कि जिन इंजीनियरिंग काॅलेजों में 12वीं साइंस के स्टूडेंट्स को 36 प्रतिशत अंकों पर एडमिशन मिल जाते हैं, उनमें ये छात्र 4 वर्ष की बीटेक डिग्री 6 से 7 वर्ष में पूरी कर रहे हैं। काॅलेजों में फैकल्टी का स्तर नहीं सुधरने से उनका नाॅलेज लेवल केवल थ्योरी पेपर तक सीमित रह जाता है। वे प्रेक्टिकल लर्निंग में शून्य पर खडे़ हैं। एक स्टडी में सामने आया कि आज 73.63 प्रतिशत इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स में कम्यूनिकेशन स्किल नहीं होने से उद्योग समूह एवं कंपनियां उन्हें जाॅब के उपयुक्त नहीं मानती।

तकनीकी शिक्षाविद प्रो.अनिल के. माथुर ने बताया कि किसी कंपनी की एचआर टीम यह परखती है कि स्टूडेंट ने कक्षा-10, 12वीं बोर्ड एवं बीटेक में 60 प्रतिशत से अधिक माक्र्स प्राप्त किए या नहीं। इससे कम प्रतिशत वाले स्टूडेंट को कैंपस भर्ती शामिल नहीं करते। फाइनल ईयर में जाॅब आॅफर देते समय यह ध्यान रखा जाता है कि 7वें सेमेस्टर के बाद इंटरव्यू होने तक कोई बेक पेपर न हो। इंटरव्यू में उनके टेक्निकल स्किल के अतिरिक्त कम्यूनिकेशन स्किल, ग्रुप डिस्कशन से नाॅलेज लेवल तथा काॅन्फिडेंस लेवल का पता चल जाता है। चयन के पश्चात उन्हें बतौर प्रोबेेशनरी टेªनी इंडस्ट्रियल या प्रोफेशनल ट्रेनिंग दी जाती है।

सिस्टम में खामियां कहां-कहां
– इंजीनियरिंग में स्टूडेंट्स की क्वांटिटी कई गुना बढी लेकिन क्वालिटी बहुत नीचे गिरी।
– काॅलेजों में सिलेबस को इंडस्ट्री की डिमांड के अनुसार अपडेट नहीं किया जा रहा।
– इंजीनियरिंग एजुकेशन स्किल बेस्ड लर्निंग न होकर केवल थ्योरी एग्जाम पर आधारित।
– प्राइवेट यूनिवर्सिटी में ब्रंाच की कोई लिमिट नहीं। एआईसीटीई से एप्रूवल में भी लचीलापन।
– कई इंजीनियरिंग काॅलेजों में 1से 2 हजार स्टूडेंट होने पर डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा मिल जाता है।
– हिंदी माघ्यम वाले ग्रामीण विद्यार्थी बीटेक डिग्री ले लेते हैं, लेकिन प्रथम सेमेस्टर से बेक पेपर होने के कारण वे जाॅब के लिए अयोग्य हो जाते हैं।
– 10वीं या 12वीं बोर्ड में 60 फीसदी से कम अंक मिलने पर दूसरे विकल्पों को चुनना बेहतर।

क्लर्क के लिए पात्र होंगे बीटेक इंजीनियर
हाल ही में राजस्थान लोक सेवा आयोग की पूर्णपीठ ने एक अहम फैसला किया कि कम्प्यूटर मंे डिप्लोमा, डिग्री या बीटेक करने वाले अब सरकार सेवाओं में एलडीसी (क्लर्क) की भर्ती प्रक्रिया में पात्र माने जाएंगे। विभिन्न सरकारी विभागों में 6 हजार से अधिक कनिष्ठ लिपिकों की भर्ती की जाएगी। यह प्रकिया पिछले 4 वर्ष से अटकी हुई थी। इससे ढाई हजार से अधिक इंजीनियरिंग डिग्री धारक बेरोजगारों को लाभ मिलेगा।

एजुकेशन स्किल एक बड़ा मुद्दा
दिल्ली के शिक्षा मंत्री श्री मनीष सिसोदिया मानते हंै कि देश में एजुकेशन एक बडा मुद्दा है। नई शिक्षा नीति में बदलाव के लिए पूरे देश में डिबेट होनी चाहिए। क्लासरूम को आंदोलन में बदलें। अभी स्कूल या काॅलेजों में पुराने तरीकों और सिलेबस से पढ़ाया जा रहा है। जबकि सब कुछ बदल चुका है। हम 360 डिग्री नाॅलेज नहीं दे पा रहे हैं। स्कूल में लर्निंग की बजाय केवल रटंत टीचिंग चल रही है। कुछ सब्जेक्ट से बच्चों की जिंदगी तय नहीं की जा सकती। हम सूचना युग में खडे़ हैं। बच्चे मोबाइल से कई गुना आगे निकल चुके हैं। वे नया सोचें, बदलाव के लिए उनमें समझ और जीजिविषा पैदा हो, उनके माइंड को रिफ्रेश करें। जोखिम लेने की क्षमता जागृत करें। केवल हर चेप्टर के प्रश्नोत्तर पढ़कर डिग्री लेने से रोजगार नहीं मिलेंगे।
टेक्नोलाॅजी में हम बहुत आगे निकल रहे हैं फिर भी देश के अधिकांश इंजीनियरिंग काॅलेजों में विभिन्न ब्रांचों के कोर्सेस केवल थ्योरी बेस्ड एग्जाम पर आधारित है। प्रेक्टिकल लर्निंग की बात करें तो केवल 1 प्रतिशत इंजीनियरिंग छात्र ही समर इंटर्नशिप में भाग लेते हैं। गुणवत्ता के मापदंडों पर इंजीनियरिंग काॅलेजों विफल रहे हैं, यही वजह है कि आज देश मे ं6214 में से केवल 3,200 उच्च तकनीकी संस्थान ही राष्ट्रीय संबद्धता बोर्ड (एनबीए) से मान्यता प्राप्त हैं। यानी 50 फीसदी इंजीनियरिंग काॅलेजों में क्वालिटी एजुकेशन नहीं होने से डिग्री का अवमूल्यन हो रहा है और इंजीनियरिंग क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ रही है।

सुधार के लिए उच्च शिक्षा में नवप्रयोग
एमएचआरडी के उच्च स्तरीय सूत्रों के अनुसार, इंजीनियरिंग प्रोग्राम में प्रवेश के लिए नेशनल टृेनिंग सर्विस (एनटीएस) द्वारा आने वाले समय में ‘नीटी’ (नेशनल एलीजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट) आयोजित करने की योजना है। यह एकल प्रवेश परीक्षा वर्ष में कई बार होगी। ताकि विद्यार्थी एक से अधिक अवसरों में अपनी योग्यता को परख सकें। सरकार उच्च तकनीकी शिक्षा में ग्रेजुएट छात्रों का रोजगार 40 प्रतिशत से बढाकर 60 प्रतिशत करना चाहती है। प्रेक्टिकल लर्निंग के लिए प्रत्येक संस्थान के 75 प्रतिशत छात्रों को समर इंटर्नशिप से जोड़कर इंडस्ट्रीज का एक्सपोजर दिया जाएगा।

एमएचआरडी की दीर्धकालिक योजना के अनुसार, उच्च तकनीकी शिक्षा में क्वालिटी इम्प्रूवमेंट के लिए वर्ष 2022 से पहले सभी तकनीकी संस्थानों के 50 प्रतिशत प्रोग्राम एनबीए से अधिस्वीकृत किए जाएंगे। साथ ही, किसी भी इंस्टीट्यूट को मान्यता तभी मिलेगी, जब वहां वार्षिक क्रेडिट सिस्टम लागू होगा। सभी संस्थान प्रतिवर्ष दिसंबर में अपने कॅरिकुलम में उचित बदलाव करेंगे।

अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के चेयरमैन अनिल दतात्रेय सहस्त्रबुद्धे के अनुसार, इंजीनियरिंग में एकल प्रवेश परीक्षा नीटी अगले 1-2 वर्ष में लागू की जाएगी। कुछ राज्य इस पर सहमत हैं, वहीं अन्य राज्यों को यह विकल्प भेजा है। कुछ राज्यों का मानना है कि उनके कॅरिकुलम सीबीएसई के अनुसार नही हैं। ऐसे राज्यों को सिलेबस अपडेट करने के निर्देश दिए गए। राज्यों में एडमिशन के लिए रिजर्वेशन व अन्य क्राइटेरिया में कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। राज्य के इंजीनियरिंग काॅलेजों की सीटों को उसी राज्य के विद्यार्थियों से भरने को प्राथमिकता दी जाएगी। एपेक्स बाॅडी प्रश्नपत्रों के पैटर्न में भी आवश्यक बदलाव करेगी।

फैकल्टी व विद्यार्थियों के लिए इंडक्शन प्रोग्राम
सभी तकनीकी शिक्षा संस्थानों की टीचिंग क्वालिटी में सुधार लाने के लिए एआईसीटीई ने फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम लागू करने का निर्णय किया है। जो शिक्षक इसे पास कर लेंगे, केवल उन्हीं को फैकल्टी के योग्य माना जाएगा। आज शिक्षक अपने विषयों की अच्छी जानकारी तो रखते हैं लेकिन अध्यापन शास्त्र को जानना भी उनके लिए आवश्यक है। यह प्रोग्राम 4 से 6 सप्ताह का होगा। इसी तरह विद्यार्थियों के लिए भी 6 सप्ताह के इंडक्शन प्रोग्राम चलाए जाएंगे। जिसमें फिजिक्स, केमिस्ट्री या इंजीनियरिंग सब्जेक्ट की रेगुलर क्लास नहीं होगी। स्टूडेंट ‘गेम चेंजर’ के रूप में समाज व देश की समस्याओं का सामना करते हुए मंथन करते हुए उस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करेंगे। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।

आईटी इंडस्ट्री में ‘रिस्किल’ की जरूरत

आईटी इंडस्ट्री के थिंक टेंक मेें इस बात पर मंथन हो रहा है कि युवाओं को बदलते वैश्विक परिदृश्य में जाॅब खोने की बजाय कैसे यथाशीघ्र रिस्किल से जोड़ा जाए। नास्काॅम के प्रेसीडेंट आर.चंद्रशेखर कहते हैं, आज के दौर में आईटी प्रोफेशनल्स को ‘रिस्किल’ करने की जरूरत है। जाॅब के लिए अनावश्यक बनने से बेहतर है कि वे जाॅब में वापसी करें। नए जाॅब के लिए उंच्च स्तर का स्किल चाहिए। अपने क्षेत्रों में अपस्किल या अपग्रेड को सर्वोच्च प्राथमिकता देकर आप किसी भी जाॅब में बने रह सकते हैं। जाॅब से निकाले जाने से वे ज्यादा भयभीत होते हैं जो खुद को सही समय पर अपस्किल करने से चूक जाते हैं। विप्रो के प्रमुख स्ट्रेटेजी आॅफिसर रिशाद प्रेमजी की बात मानें तो इंजीनियरिंग ग्रेजुएट अपने स्किल को निरंतर अपग्रेड करने पर फोकस करें। यह देखें कि टेक्नोलाॅजी के स्पेस में कितने बदलाव हो रहे हैं, अपने स्किल का स्पान बहुत छोटा रखें क्यांेकि अपग्रेड होने के दायरे को अनवरत विस्तार देना ज्यादा महत्वपूर्ण है। नए स्किल क्षेत्रों में अपनी क्षमताओं को परखें। नवीनतम टेक्नोलाॅजी में आईटी कंपनियां मेनपाॅवर को ‘रिस्किल’ करके नए क्षेत्रों में कदम रख सकती हैं। इंफोसिस के सीईओ सलिल पारेख अपने कर्मचारियों को रिस्किल पर जोर देते हुए कहते हैं, आज प्रत्येक कर्मचारी निरंतर बदल रहे प्रौद्योगिकी उतार-चढ़ाव की दुनिया में आगे बढ़ रहा है। हम भविष्य के लिए तैयार रहें और खुद को आवश्यक स्किल से समृद्ध करते चलें। भारत में 70 से 80 प्रतिशत जाॅब को आउटसोर्स किया जा रहा है। जिससे स्किल्ड मेनपाॅवर की डिमांड बढ़ी है।

2 लाख सीए, 10 लाख डाॅक्टर, करोड़ो इंजीनियर्स
एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, देश में आज 2 लाख सीए, 10 लाख डाॅक्टर्स हैं, जबकि इंजीनियर्स की संख्या करोडों तक पहुंच गई है। डाॅक्टर्स की बात करें तो अमेरिका में 32 करोड़ की आबादी पर 25 लाख डाॅक्टर्स हैं, जबकि भारत में 130 करोड़ की आबादी पर डाॅक्टर्स की संख्या 10 लाख ही है। डाॅक्टर्स की संख्या कम होने से उन्हें अच्छा वेतन मिल रहा है। इसी तरह, अमेरिका में प्रतिवर्ष 1 लाख क्वालिटी इंजीनियर्स तैयार होते हैं, जबकि भारत में प्रतिवर्ष 16 लाख युवा इंजीनियरिंग की डिग्री लेकर निकल रहे हैं।
पहले मैन्युफेक्चरिंग क्षेत्र में सिविल, इलेक्ट्रिकल, मैकेनिकल जैसी कोर ब्रांचों से सर्वाधिक इंजीनियर्स को जाॅब मिलते थे। किंतु आज जीडीपी में मैन्युफेक्चरिंग का योगदान केवल 17 प्रतिशत रह गया है। जबकि 25 वर्षों में जीडीपी में आईटी सेक्टर की वृद्धि 5 प्रतिशत तक हुई है। जिससे इस क्षेत्र में जाॅब के अवसर बढते चले़ गए। लेकिन आज आईटी में चरम स्थिति आ गई। भारतीय अर्थव्यवस्था को देखें तो टूरिज्म, विŸा, व्यपार, होटल, रेस्तरां आदि में इंजीनियर्स की आवश्यकता नहीं। स्वास्थ्य, शिक्षा व एग्रीकल्चर में भी इंजीनियर्स की डिमांड कम है। कुल मिलाकर जीडीपी के 50 प्रतिशत में इंजीनियर्स की कोई भूमिका नहंी है, फिर भी इंजीनियर्स बनने की होड़ मची है। डिमांड नगण्य है, जबकि सप्लाई कई गुना ज्यादा है। इससे परे, औसत इंजीनियर्स मंे स्किल लेवल बहुत कमजोर है। आज एक मैकेनिकल ग्रेजुएट फ्रेम बनाना नहीं जानता। उसने केवल माक्र्स पाकर डिग्री ले ली, सही नाॅलेज नहीं मिल सका। एक इंजीनियरिंग डिग्री पर कोचिंग व 4 वर्ष के खर्च पर 10 लाख से अधिक खर्च हो जाते हैं। सरकार को अब इंजीनियरिंग एजुकेशन सिस्टम को फिर से बदलना होगा, अन्यथा यह बेरोजगारी नया मोड़ ले लेगी।

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