Saturday, 21 December, 2024

कलियुग में तमोगुण छोडकऱ भक्ति गुण अपनायें – आचार्य पं.संजय कृष्ण त्रिवेदी

श्री फलौदी महिला मंडल द्वारा आयोजित ‘नानी बाई रोे मायरो’ में उमडे़ श्रद्धालु
न्यूजवेव @ कोटा
श्री फलौदी महिला मंडल सेवा समिति द्वारा अग्रसेन सभागार, तलवंडी में आयोजित ‘नानी बाई रोे मायरो’ कथा में बुधवार को आचार्य पं. संजय कृष्ण त्रिवेदी ने कहा कि जीवन में भक्त और भगवान के संबंध को समझना है तो नरसी को सुनने का प्रयास करें। आज मोक्ष से भी बडा है भगवान का भजन। आज बिगडे़ काम देखने के लिये तो भीड़ इकट्ठी हो जाती है लेकिन भागवत कथा या राम कथा सुनने के लिये समय नहीं होता है। ऐसे में भगवान से संबंध कैसे जुडेंगे। कलियुग में जिसने तमोगुण छोड भक्ति गुण अपनाया वह ठाकुरजी के निकट पहुंच गया।


आचार्य त्रिवेदी ने केदार राग पद सुनाते हुये कहा कि नानी बाई सावन में राखी लेकर जब जूनागढ मायके की टापरी में पहुंची तो नरसी बाहर सूरदास जैसे संतों के साथ भजन कर रहे थे। भीतर मां मिली ना भाई। पूछा तो नरसी बोले, जिसने दिया था उसने ही ले लिया। रात भर नानी बाई रोती रही। मां बिन मायका कैसा। वह वापस चल दी। सुबह नरसी सेवा करने भीतर गये तो देखा ठाकुरजी के हाथ में राखी बंधी थी। वे बोले, नानी बाई अब तक सब संबंध झूठे थे, ये संबंध छूटने वाला नहीं है।
उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति में तिलक, शिखा, धोती-कुर्ता सनातन धर्म के आकर्षण हैं। जिन्होंने भारतीय संस्कारों को छोड दिया, वो अपनों को भी छोडने लगे हैं। संस्कार ऐसे बंधन हैं जो परिवारों को जोडते हैं। कलियुग में स्वयं तो भक्ति करें साथ ही एक अन्य को भक्ति से जोडकर पुण्य कमायें। श्री फलौदी महिला मंडल द्वारा कथा में आने वाले प्रत्येक भक्त के माथे पर तिलक लगाने जैसी पवित्र परंपरा हमें ठाकुरजी से जोड देती है।
‘होई सोई जो राम रचि राखा’


आचार्य त्रिवेदी ने भगवान राम के पूर्वज राजा मुचकुंद का प्रसंग सुनाते हुये कहा कि जब हमारा काम नहीं संभल रहा हो तो हरि इच्छा को स्वीकार कर लो। नरसी ने अपनी वाणी का सदुपयोग किया। इंद्र के वरदान पर सूर्यवंश के राजा सतयुग, द्वापर व त्रेता के 38 लाख वर्ष तक सोये ही रहे। 17 बार आक्रमण करने वाले जरासंध उनको जगाकर स्वयं भस्म हो गये थे। आंख खुलने पर राजा मुचकुंद ने ठाकुरजी की स्तुति की तो उनको दर्शन फलीभूत हुये। आज जो सिर्फ अपने सुख के लिये अहंकारी हैं वे कंस समान हैं। जो भजन करते हैं उनको नरसी जैसा पूण्य प्रताप मिल जाता है।
‘नानी बाई रो मायरो, भाया जस लो जी..’

अंत में मार्मिक वृतांत ‘नानी बाई रो मायरा, भाया जस लो जी..’ सुनाकर उन्होंने सबको भाव विव्हल कर दिया। नरसी रो मायरो भरने के लिये गांव से टूटी बैलगाडी मिली। नरसी ने सोचा, जैसा भाग्य वैसी गाड़ी। उन्होंने बीच में गोपी चंदन आसन पर ठाकुरजी को बिठाया। अंधे संतों के साथ वे भजन करते हुये टूटी गाडी से ही चल पडे़। गरीब मायरेदार गांव से बाहर निकले तो अकेले नहीं थे द्वारिकाधीश उनके साथ चले। कथा के अंतिम सोपान में गुरूवार को नानी बाई का मायरा भरा जायेगा।


मेडतवाल वैश्य समाज सेवा समिति, श्री फलौदी महिला मंडल सेवा समिति एवं मेडतवाल वैश्य नवयुवक संघ कोटा की ओर से बुधवार रात्रि को सभागार में खाटू श्यामजी की भजन संध्या एवं छप्पन भोग का भव्य आयोजन रखा गया जिसका समाजबंधुओं ने सपरिवार उल्लास के साथ आनंद लिया।

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