न्यूजवेव @ नासिक, 6 जनवरी
त्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग पर चल रही संगीतमय श्रीमद भागवत कथा के तीसरे सोपान में आचार्य श्री कैलाश चन्द्र जी तेहरिया ने कहा कि जीवन मे निष्काम भक्ति ही सच्चा पुरुषार्थ है। शबरी ने सेवाभाव से निष्काम भक्ति की थी, इसलिये श्रीराम उनकी कुटिया में स्वयं पहुंच गए थे।
कपिल संवाद में उन्होंने कहा कि सत्संग भगवान से मिलने की लौ जगा देता है। हमारी अज्ञानता ही अशान्ति का कारण है। इसलिए मन, बुद्धि, चित्त ईश्वर में लगाने का प्रयास करो। जीवन मे नव भक्ति से जुड़ने का प्रयास करें, इससे ही सांसारिक पापों से विरक्ति होती है। सत्संग में बैठा भक्त ही भक्ति का स्वरूप होता है।
संसार से नही, ठाकुरजी से प्रीति जोड़ें-
तीर्थनगरी में ध्रुव एवं प्रहलाद प्रसंग सुनाते हुए उन्होंने कहा कि सुनीति के यहां बाल ध्रुव का जन्म हुआ। जिनकी भगवान से लगन नही लगी, उनका जीवन व्यर्थ है। इसलिये संसार से नही, ठाकुरजी से प्रीति जोड़ें। ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र के निरन्तर जप से ही ध्रुव को ठाकुरजी के साक्षात दर्शन प्राप्त हुये। मन मे सहनशीलता, दया, प्रेम, मित्रता, करुणा भाव होने से ईश्वर प्रसन्न होते हैं। भक्तों की चर्चा भगवान भी सुनते हैं। जीवन में एक स्थिति पर पहुंचकर संतोष कर ईश्वर की भक्ति से जुड़ जाएं।
आठ गुणों से होते है विद्वान-
आचार्य तेहरिया ने कहा कि 8 गुणों से इंसान विद्वान बन जाता है। कभी कपट नही रखें, परनिंदा नही करें, कठोर नही बोलें, कटु वचन भी सहन कर लें, अहंकार नही करें, व्यर्थ क्रोध नही करें, दूसरों के दोष उजागर नही करें और सुख-दुख प्रकट नही कर सिर्फ ईश्वर से अपनी बात करें। यही विद्वता है।
कथा आयोजन समिति के प्रवक्ता ने बताया कि त्रयम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग पर इस दिव्य कथा में कोटा से 250 से अधिक महिला-पुरुष श्रद्धालु भाग ले रहे हैं। इस यात्रा में सभी श्रद्धालु 6 ज्योतिर्लिंग की दर्शन यात्रा पूरी करेंगे।