न्यूजवेव@कोटा
देश के इंजीनियरिंग काॅलेजों में प्रतिवर्ष 8 लाख ग्रेजुएट इंजीनियर्स की फौज तैयार हो रही है लेकिन इसमें से 70 प्रतिशत से अधिक बेरोजगार रह जाते हैं। अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा काउंसिल के अनुसार, इससे देश में वार्षिक 20 लाख कार्य दिवस का नुकसान हो रहा है। इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स की बढती बेरोजगारी को देखते हुए अब चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और क्लर्क के लिए आवेदन करने में वे सबसे आगे हैं।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश के 6,214 इंजीनियरिंग व तकनीकी काॅलेजों में 29 लाख स्टूडेंट बीटेक व अन्य कोर्सेस कर रहे हैं। इनमें से प्रतिवर्ष 15 लाख इंजीनियरिंग स्टूडेंट डिग्री लेने के बाद जाॅब के लिए आवेदन करते है। लेेकिन अधिकांश डिग्रीधारी स्टूडेंट प्लेसमेंट के लिए भटकने पर मजबूर हो रहे हैं।
एचआर विशेषज्ञों का आंकलन है कि देश के इंजीनियरिंग काॅलेजों से जो डिग्रीधारी इंजीनियर निकल रहे हैं, वे उद्योगों में रोजगार की कसौटी पर खरे नहीं। येन-केन थ्योरी पेपर में पास होकर वे डिग्री लेते हैं लेकिन इंडस्ट्री में आकर फेल हो रहे हैं। मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने फीडबेक के आधार पर देश की तकनीकी शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव करने की योजना पर अमल शुरू कर दिया। इस रणनीति में इंजीनियरिंग में एकल राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा आयोजित करने, वार्षिक टीचर्स ट्रेनिंग प्रोग्राम, पंजीकृत विद्यार्थियों के लिए अनिवार्य इंडक्शन ट्रेनिंग तथा कॅरिकुलम मे वार्षिक बदलाव करना शामिल है।
भर्ती कैंपस केवल मेट्रो शहरों तक
तकनीकी विशेषज्ञों के अनुसार, आज मैन्यूफेक्चरिंग, आईटी एवं सर्विस सेक्टर से जुड़ी 90 प्रतिशत मल्टीनेशनल एवं प्रमुख भारतीय कंपनियां एवं इंडस्ट्रीज टेक्निकल मेनपाॅवर के लिए आईआईटी, एनआईटी, त्रिपल आईटी, केंद्रीय वित्त पोषित तकनीकी संस्थानों सहित सेंट्रल यूनिवर्सिटी एवं निजी क्षेत्र में प्रमुख प्राइवेट यूनिवर्सिटी एवं ए ग्रेड के ब्रांड इंजीनियरिंग काॅलेजों तक कैंपस प्लेसमेंट सीमित रखती है।
विभिन्न राज्यों में मध्यम श्रेणी के शहरों में इंजीनियरिंग काॅलेजों से बड़ी कंपनियों में प्लेसमेंट में गिरावट आई है। वजह साफ है कि जिन इंजीनियरिंग काॅलेजों में 12वीं साइंस के स्टूडेंट्स को 36 प्रतिशत अंकों पर एडमिशन मिल जाते हैं, उनमें ये छात्र 4 वर्ष की बीटेक डिग्री 6 से 7 वर्ष में पूरी कर रहे हैं। काॅलेजों में फैकल्टी का स्तर नहीं सुधरने से उनका नाॅलेज लेवल केवल थ्योरी पेपर तक सीमित रह जाता है। वे प्रेक्टिकल लर्निंग में शून्य पर खडे़ हैं। एक स्टडी में सामने आया कि आज 73.63 प्रतिशत इंजीनियरिंग ग्रेजुएट्स में कम्यूनिकेशन स्किल नहीं होने से उद्योग समूह एवं कंपनियां उन्हें जाॅब के उपयुक्त नहीं मानती।
तकनीकी शिक्षाविद प्रो.अनिल के. माथुर ने बताया कि किसी कंपनी की एचआर टीम यह परखती है कि स्टूडेंट ने कक्षा-10, 12वीं बोर्ड एवं बीटेक में 60 प्रतिशत से अधिक मार्क्स प्राप्त किए या नहीं। इससे कम प्रतिशत वाले स्टूडेंट को कैंपस भर्ती शामिल नहीं करते। फाइनल ईयर में जाॅब आफर देते समय यह ध्यान रखा जाता है कि 7वें सेमेस्टर के बाद इंटरव्यू होने तक कोई बेक पेपर न हो। इंटरव्यू में उनके टेक्निकल स्किल के अतिरिक्त कम्यूनिकेशन स्किल, ग्रुप डिस्कशन से नाॅलेज लेवल तथा काॅन्फिडेंस लेवल का पता चल जाता है। चयन के पश्चात उन्हें बतौर प्रोबेेशनरी टेªनी इंडस्ट्रियल या प्रोफेशनल ट्रेनिंग दी जाती है।
सिस्टम में खामियां कहां-कहां
– इंजीनियरिंग में स्टूडेंट्स की क्वांटिटी कई गुना बढी लेकिन क्वालिटी बहुत नीचे गिरी।
– काॅलेजों में सिलेबस को इंडस्ट्री की डिमांड के अनुसार अपडेट नहीं किया जा रहा।
– इंजीनियरिंग एजुकेशन स्किल बेस्ड लर्निंग न होकर केवल थ्योरी एग्जाम पर आधारित।
– प्राइवेट यूनिवर्सिटी में ब्रांच की कोई लिमिट नहीं। एआईसीटीई से एप्रूवल में भी लचीलापन।
– कई इंजीनियरिंग काॅलेजों में 1से 2 हजार स्टूडेंट होने पर डीम्ड यूनिवर्सिटी का दर्जा मिल जाता है।
– हिंदी माघ्यम वाले ग्रामीण विद्यार्थी बीटेक डिग्री ले लेते हैं, लेकिन प्रथम सेमेस्टर से बेक पेपर होने के कारण वे जाॅब के लिए अयोग्य हो जाते हैं।
– 10वीं या 12वीं बोर्ड में 60 फीसदी से कम अंक मिलने पर दूसरे विकल्पों को चुनना बेहतर।
फैकल्टी व विद्यार्थियों के लिए इंडक्शन प्रोग्राम
सभी तकनीकी शिक्षा संस्थानों की टीचिंग क्वालिटी में सुधार लाने के लिए एआईसीटीई ने फैकल्टी इंडक्शन प्रोग्राम लागू करने का निर्णय किया है। जो शिक्षक इसे पास कर लेंगे, केवल उन्हीं को फैकल्टी के योग्य माना जाएगा। आज शिक्षक अपने विषयों की अच्छी जानकारी तो रखते हैं लेकिन अध्यापन शास्त्र को जानना भी उनके लिए आवश्यक है। यह प्रोग्राम 4 से 6 सप्ताह का होगा। इसी तरह विद्यार्थियों के लिए भी 6 सप्ताह के इंडक्शन प्रोग्राम चलाए जाएंगे। जिसमें फिजिक्स, केमिस्ट्री या इंजीनियरिंग सब्जेक्ट की रेगुलर क्लास नहीं होगी। स्टूडेंट ‘गेम चेंजर’ के रूप में समाज व देश की समस्याओं का सामना करते हुए मंथन करते हुए उस समस्या का समाधान निकालने का प्रयास करेंगे। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा।