ISTD की पेरेंट्स रिलेशनशिप वर्कशॉप में आध्यात्मिक वैज्ञानिक अजीत तैलंग ने किया बच्चों के डीएनए का विश्लेषण
न्यूजवेव@कोटा
इंडियन सोसायटी ऑफ ट्रेनिंग एंड डवलपमेंट (आईएसटीडी) के स्वर्ण जयंति वर्ष पर कोटा चेप्टर द्वारा गुरूवार को पेरेंट्स रिलेशनशिप वर्कशॉप आयोजित की गई। मुख्य वक्ता सेनेजर्सिक की सीईओ कृपा चौकसी ने कहा कि बच्चे में अच्छाई क्या है, यह ढूंढे। वे अपनी आंखों से दुनिया को देखते हैं, हम उनकी अच्छाइयों को सामने लाएं। जब उनको लगेगा कि वे जैसे भी हैं, उनको स्वीकार किया है, तो अच्छाई का विस्तार होगा। बच्चे अपना भविष्य खुद बनाएंगे,उनका केवल सपोर्ट करें।
आध्यात्मिक वैज्ञानिक अजीत तैलंग ने कहा कि नई जनरेशन के बच्चों पर एक रिसर्च से पता चला कि 91 प्रतिशत भविष्य के प्रति एंग्जाइटी से ग्रसित हैं। 31 प्रतिशत में पढाई के साथ डिप्रेशन भी आ रहा है। इसमें 54 प्रतिशत बच्चे गेजेट्स के आदी है। 48 प्रतिशत बच्चे हाइपर व 43 प्रतिशत गुस्सैल हो रहे हैं। 49 प्रतिशत बच्चे माता-पिता को जवाब देते हैं-मुझे पता है। एक प्रजेंटेशन में उन्होंने बताया कि 18 से 25 वर्ष के युवाओं में डीएनए यानी गुणसूत्र में बदलाव होने से विकृतियां आ रही हैं। डीएनए के 28 तत्व हमारे 5 अंगों से शरीर, भावनात्मक संबंध, मानसिक स्थिति, बौद्धिक स्तर व आध्यात्मिक अनुभूति को प्रदर्शित करते है। आज के बच्चे इंटेलीजेंट हैं लेकिन प्रत्येक का स्पेक्ट्रम अलग-अलग है। उनमें इम्यूनिटी कम है। कई बार आक्रामक नेचर के कारण वे घर में टीवी तक तोड़ देते हैं। डीएनए के अनुसार, उनका एल्गोरिदम बदलता रहता है, जिसे पेरेंट्स को वैज्ञानिक ढंग से समझना होगा। आईएसटीडी की चेयरपर्सन अनिता चौहान व सचिव डॉ. अमित सिंह राठौड़ ने बताया कि ट्रेनर्स डे कार्यक्रम श्रंखला में पेरेटिंग वर्कशॉप में श्रीराम रेयांस, डीएससीएल, कोटा यूनिवर्सिटी, एनजीओ व महिलाओं ने भाग लिया। संचालन वरिष्ठ सदस्य गीता दाधीच ने किया।
पेरेंट्स रिलेशनशिप कैसी हो
तेलंग ने कहा कि पेरेंट्स व टीचर्स बच्चों को सिखाने का तरीका बदलें। बच्चों में एनर्जी बहुत है, इसलिये उन्हें केवल सही दिशा दें। हमारे आसपास असीम संभावनाएं हैं, इसलिये ना करके पछताने से बेहतर है कि करके पछताएं। इससे तर्जुबा मिलेगा और सही-गलत का अंतर समझ में आएगा। जैसे समुद्री टापू से लहरें टकराकर लौट जाती है, वैसे ही एक-दूसरे के अस्तित्व को समझें। बच्चों के स्पेस को बाधित नहीं करें।
परिवार में माता-पिता बच्चों के मालिक नहीं हैं, वे ट्रस्टी बनकर देखभाल करें। पेरेंट्स अपनी महत्वाकांक्षाएं थोप देते हैं, जिससे सुसाइड जैसी घटनाएं हो रही है। हम बायोलॉजिकल पेरेंट्स बनें। बच्चे अपने लक्ष्य तय करके आगे बढेंगे, तो उसे वे हासिल कर लेंगे। पेरेंट्स मानते हैं कि बच्चे को दुनिया की समझ नहीं है, जबकि वह सब जानता है। वह डेस्टिनेशन खुद तय कर सकता है।
बच्चे के पहले हीरो-हीरोइन माता-पिता
दूसरे सत्र में सिनेर्जेसिक की अश्विन तेलंग ने बताया कि कक्षा-1 से 10 तक पहले 10 टॉपर आपस में स्पर्धा करते हैं, शेष विद्यार्थी क्लास में अच्छी पॉजिशन पर नहीं मिलन से भटकने लगते हैं। एजुकेशन स्पर्धा नहीं है। बच्चे को किसी एक अच्छाई पर फोकस करें। डॉक्टर, आईआईटीयन, इंजीनियर नहीं बन सके तो प्रेशर नहीं बनाएं। जिसकी मैथ्स अच्छी नहीं, वह म्यूजिक में अच्छा हो सकता है। कई दूसरे फील्ड में बहुत अवसर हैं। बच्चे को जब जरूरत हो, मां उसे समय दे। परिवार में बच्चे के पहले हीरो पिता और पहली हीरोइन माता है, जब वे समय नहीं देते हैं तो वह आनंद की खोज में फिल्मों में रूचि लेता है। उसे हर पल हैप्पीनेस देने का प्रयास करें। आज प्रत्येक बच्चे में अपूर्णता है, लेकिन वह दोष नहीं है, उसे स्वीकारें। जहंा कमी दिखे, वहां सही दिशा दें। बच्चे किसमें अच्छा नहीं है इसकी जगह दूसरों को यह बताएं कि वह किसमें अच्छा है। प्रत्येक बच्चे में तीन ‘ए’ एटीट्यूट, एबिलिटी एवं एप्रोच पर फोकस करके उसे प्रॉब्लम से बाहर निकालें।