न्यूजवेव,नई दिल्ली:
तेलुगू देशम पार्टी आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं मिलने से नाराज होकर एनडीए से अलग हो गई है. अब पार्टी ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला लिया है. इसमें टीडीपी को अब तक छह पार्टियों का साथ मिल चुका है. यदि ये प्रस्ताव पास होता है तो मोदी सरकार के खिलाफ ये पहला अविश्वास प्रस्ताव होगा. हालांकि, सरकार को गिराना विपक्ष के लिए मुश्किल है, जिसका सबसे बड़ा कारण सदन में बीजेपी के सांसदों की संख्या है.
क्या है अविश्वास प्रस्ताव
अविश्वास का प्रस्ताव एक संसदीय प्रस्ताव है, जिसे विपक्ष द्वारा संसद में केंद्र सरकार को गिराने या कमजोर करने के लिए रखा जाता है. यह प्रस्ताव संसदीय मतदान (अविश्वास का मतदान) द्वारा पारित या अस्वीकार किया जाता है.
अविश्वास प्रस्ताव के लिए चाहिए इतने सांसदों की संख्या
सरकार के खिलाफ अविश्वास का प्रस्ताव तभी लाया जा सकता है, जब इसे सदन में करीब 50 सांसदों का समर्थन प्राप्त हो. मौजूदा स्थिति में मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए एकजुट हुए सांसदों की संख्या 117 है. ऐसे में सदन में इस प्रस्ताव को पेश करने के लिए पर्याप्त बहुमत है.
प्रस्ताव स्वीकार करने पर क्या होगा
अविश्वास प्रस्ताव को पेश करने के बाद इसे लोकसभा अध्यक्ष को स्वीकार करना होगा. यदि स्पीकर की ओर से इसे मंजूरी मिल जाती है तो 10 दिनों के अंदर इस पर सदन में चर्चा करनी होगी. चर्चा के बाद लोकसभा अध्यक्ष अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करा सकता है.
क्या सरकार गिरेगी
केंद्र सरकार को गिराना विपक्ष के लिए मुश्किल है. ऐसा इसलिए क्योंकि सरकार गिराने के लिए उन्हें कुल 269 सांसदों के समर्थन की जरूरत है. लेकिन सदन में अकेले बीजेपी के पास ही बहुमत की 269 सीटों से भी ज्यादा सीटें मौजूद हैं.
सबसे पहला अविश्वास प्रस्ताव
संसद में सबसे पहला अविश्वास प्रस्ताव अगस्त 1963 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ पेश किया गया था. लेकिन विपक्ष सरकार गिराने में नाकाम हो गया था इसके बाद से अब तक सदन में 26 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं. 1978 में विपक्ष द्वारा रखे गए अविश्वास प्रस्ताव ने मोरारजी देसाई सरकार को गिरा दिया था.