Wednesday, 1 May, 2024
Dr Rajni

हाइपर एक्टिव बच्चों के इलाज की वैकल्पिक थेरेपी पर रिसर्च

रिसर्चः कॅरिअर पॉइंट यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्कॉलर बैंगलुरू की डॉ रजनी इनबावनन ने खोजी नई ट्रीटमेंट थेरेपी।

न्यूजवेव, कोटा
छोटी उम्र से ही बच्चे हाइपर एक्टिव हो जाते हैं। यह सामान्य बात नहीं है बल्कि मेडिकल साइंस में इसे न्यूरो डेवलपमेंट डिसआर्डर माना जाता है, जो 7 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में बचपन से ही देखा जाता है। कॅरिअर पॉइंट यूनिवर्सिटी की रिसर्च स्कॉलर डॉ रजनी इनबावनन इस डिसआर्डर को दूर करने के लिए ट्रीटमेंट पर अनुसंधान कर रही है।

शोध के अनुसार, अटेंशन डेफिसिट हाइपर एक्टिव डिसआर्डर (ADHD) 7 वर्ष से कम उम्र में होता है और किशोर अवस्था तक निरंतर बना रहता है। इसके मुख्य लक्षण हैं- अनदेखी करना ( Inattention ), हाइपर एक्टिविटी और इम्पलसिविटी। इन लक्षणों से ब्रेन के सेंसिटिव सिस्टम में मुश्किलें होने लगती है। यह बच्चों में सबसे कॉमन मेंटल डिसआर्डर माना गया है। ऐसे बच्चों में भावनात्मक विकास कम होने लगता है और चे संवेदनशील हो जाते हैं। अधिकांश बच्चे एडीएचडी की चपेट में आकर धैर्य खो देते हैं, गुस्सा, लापरवाही और बडबोलापन, ज्यादा नींद लेना और बोलने में देरी करना जैसी आदतें सामने आने लगती है। जिस पर नियंत्रण करना पेरेंट्स के लिए भी मुश्किल हो जाता है।

स्कूल जाने वाले कई किशोर उम्र के बच्चों में डायग्नोसिस से पता चला कि वे मेंटल डिसआर्डर से ग्रसित होते हैं। उनके एकेडेमिक स्किल में कई परिवर्तन देखने को मिलते हैं। पढने, लिखने और मैथ्स के कंसेप्ट समझने में भी उनको परेशानी होती है। हाइपर एक्टिविटी लेवल, सुनने की क्षमता कम रखने और एकाग्रता में कमी से ऐसे बच्चे अच्छा प्रदर्शन करने में पिछड़ जाते हैं।

मेंटल डिसआर्डर क्यों
बच्चों को डिसआर्डर के बाद रोज-रोज की चुनौतियों से बचाया जा सकता है। एक स्टडी के आंकड़ों के अनुसार, भारत में ब्वॉयज में 3 में से 1 और गर्ल्स में 4 में से 1 बच्चा इस डिसआर्डर की चपेट में आ जाता है। इसके बायोलॉजिकल कारण है। इसे जांचने के लिए कोई टेस्ट नहीं है। केवल 5 से 6 लक्षण होने पर उसे एडीएचडी डिसआर्डर के रूप में माना जाता है। डायग्नोसिस के बाद उन्हें स्टिमुलेट्स मेडिसिन दी जाती है जिससे उन्हें साइड इफेक्ट होने की संभावना रहता है।

अवेयरनेस है प्रभावी ट्रीटमेंट

बच्चों को एडीएचडी डिसआर्डर से बचाकर उनके ओवरऑल डेवलपमेंट के लिए अवेयरनेस सबसे जरूरी है। उन्हें सही काउंसलिंग और साइकोथेरेपी से ठीक कर सकते हैं। मैने न्यूरो लिंग्यूस्टिक प्रोग्राम और सेंसर इंटीग्रेशन थेरेपी डेवलप की है। इस थेरेपी से बच्चों को रोज की चुनौतियों से निबटने की क्षमता आएगी जिससे वे आत्मविश्वास से आगे बढ़ सकेंगे।
– रजनी इनबावनन, सह-संस्थापक, काउंसलर व साइकोथेरेपिस्ट।

newswavekota@gmail.com

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