न्यूज वेव @ जयपुर
जयपुर कत्थक केंद्र द्वारा राजस्थान दिवस के अवसर पर अल्बर्ट हॉल में रंगारंग नृत्य संध्या आयोजित की गई। समारोह में कथक नृत्यांगना मेहा झा कासलीवाल ने विविध मनोहारी प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
पहली प्रस्तुति में शिव के अर्धनारीश्वर स्वरूप को मंच पर जीवंत करते उन्होने कत्थक परंपरा की मौलिकता को थाट, परन- आमद की प्रस्तुति में प्रतिबिम्बित करते हुए दर्शकों से दाद बटोरी। इसके पश्चात ‘आँचल का अंदाज मानो राधा कृष्ण की छेड़छाड़….जैसी प्रस्तुति से मानो मंच जीवंत हो उठा।
लखनऊ घराने की कत्थक नृत्य शैली का शास्त्रीय स्वरूप परन, टुकड़े, लड़ी, 23 चक्कर का टुकड़ा ने दर्शकों को एकटक बांधे रखा। अंत मे धोरों की धरती के नामचीन लंगा मांगणियार के लोकगीत ‘‘आन बसो नी परदेस, साजन जी म्हारा झिर मिर बरसे नैन’ में परदेस जा बसे पति की वापसी की राह देखती नायिका की विरह कथा को अद्भुत शास्त्रीय लोक गीत में पिराने से समूचा सभागार तालियों से गूंज उठा।
नृत्य प्रस्तुतियों में कलाकार शालिनी उपध्य्याय, पूर्णिमा अरोड़ा, आम्या पांडे ने भावपूर्ण साथ निभाया। संगत में तबले पर मोहित कत्थक, सितार पर हरिशरण भट्ट, पखावज पर राहुल कत्थक ने साथ दिया। गीत को स्वर श्री सांवर मल कत्थक ने दिए।
राज्य की धरा पर कत्थक लोक नृत्य का यह अनूठा संगम शास्त्रीय संगीत कलाप्रेमियों के लिए यादगार रहा।