Thursday, 12 December, 2024

हाईवे के चौराहों पर होने वाली दुर्घटनाओ की पहचान के लिए नई तकनीक

उमाशंकर मिश्र
न्यूजवेव @ नई दिल्ली
दो शहरों को जोड़ने वाले हाईवे के चौराहों पर वाहनों के टकराने के दुर्घटनाएं तेजी से बढती जा रही है। भारतीय शोधकर्ताओं ने अब एक ऐसी तकनीक विकसित की है, जो हाईवे पर संभावित दुर्घटना वाले चौराहों की पहचान करने में मददगार होगी।

आईआईटी, रूडकी की यह स्टडी ट्रैफिक में सड़क पर वाहन चालकों के मनोभावों और उसके अनुसार प्रतिक्रिया में लगने वाले समय पर आधारित है। तकनीकी रूप से इसे ‘पर्सेप्शन-रिएक्शन टाइम’ कहते हैं, जो दुर्घटना के क्षणों में सड़क उपयोगकर्ताओं की प्रतिक्रिया को दर्शाता है। खराब सड़क या किसी अन्य आपात स्थिति में वाहन धीमा करना या फिर अचानक ब्रेक मारना वाहन चालक की प्रतिक्रिया के ही उदाहरण हैं। शोधकर्ताओं ने पोस्ट एन्क्रोचमेंट टाइम (PET) के आधार पर भी वाहनों के टकराने की घटनाओं का अध्ययन किया है। सड़क पर दुर्घटना की आशंका वाले बिंदु से होकर गुजरने वाले वाहनों के बीच समय के अंतर को पीईटी कहते हैं। पीईटी मूल्य कम होने पर वाहनों के टकराने का खतरा अधिक होता है।

ऐसे सिग्नल रहित चौराहों को इस अध्ययन में शामिल किया गया है, जहां पिछले 5 वर्षों में दाएं मुड़ने के दौरान वाहनों के टकराने की सर्वाधिक घटनाएं हुई हैं। चौराहों पर लगे वीडियो कैमरों की मदद से ट्रैफिक संबंधी आंकड़े प्राप्त किए गए हैं और फिर उनका एनालिसिस किया गया है। रिकॉर्ड किए गए वीडियो की मदद से बड़ी और छोटी सड़कों से गुजरने वाले वाहनों के विस्तार, सड़क पर उनके संयोजन और इंटरैक्शन के बारे में वाहनों की जानकारी एकत्र की गई है। अध्ययन में उपयोग किए गए वीडियो आधारित आंकड़े केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली पर आधारित नेशनल हाईवे शोध परियोजना इंडो-एचसीएम से प्राप्त किए गए हैं।

दुपहिया व कॉमर्शियल वाहनों की टक्कर अधिक

इस स्टडी से पता चला है कि चौराहों पर वाहनों के टकराने की अधिकतर घटनाएं दोपहिया और हल्के व्यावसायिक वाहनों के गुजरने के दौरान देखी गई हैं। दोपहिया वाहनों का आकार छोटा होने के कारण अन्य वाहन चालक ट्रैफिक नियमों को नजरअंदाज करते उन्हें ओवरटेक करने का प्रयास करते हैं, जिसके कारण चौराहों पर दुर्घटनाएं अधिक होती हैं। एक महत्वपूर्ण बात यह उभरकर आयी है कि दूसरे सड़क जंक्शन रूपों की तुलना में चार मार्गों को जोड़ने वाले चौराहों पर वाहनों के टकराने की घटनाएं सबसे अधिक होती हैं।  यह नई तकनीक वाहनों के टकराने की आशंका से ग्रस्त चौराहों पर ज्योमिट्री डिजाइन में संशोधन, ट्रैफिक नियंत्रण एवं प्रबंधन तकनीक के निर्णय लेने में उपयोगी हो सकती है।

आईआईटी, रुड़की के सिविल इंजीनियरिंग विभाग की शोधकर्ता मधुमिता पॉल ने बताया कि “सड़क हादसों और ट्रैफिक सुरक्षा का मूल्यांकन आमतौर पर पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज आंकड़ों के आधार पर होता है। भारत में सड़क दुर्घटनाओं के संबंध में आंकड़ों की कमी और उनका अविश्वसनीय होना एक प्रमुख समस्या है। इस वजह से दुर्घटनाओं के निदान और सुरक्षात्मक सुधार नहीं हो पाते हैं। इस अध्ययन में ऐसी विधि विकसित की गई है, जो वाहनों के टक्कर के आंकड़ों के आधार पर असुरक्षित मार्गों की पहचान करने में उपयोगी हो सकती है। अध्ययन के नतीजों का उपयोग विभिन्न यातायात सुविधाओं की सुरक्षा के मूल्यांकन के लिए एक प्रभावी उपकरण के रूप में किया जा सकता है, जहां दुर्घटना के विस्तृत आंकड़ों का संग्रह एक गंभीर मुद्दा है।”

सड़क हादसों में प्रतिवर्ष 1.5 लाख लोगों की मौतें
भारत में हर साल होने वाले सड़क हादसों में करीब 1.5 लाख लोगों को अपनी जान गवांनी पड़ती है। इन दुर्घटनाओं में से करीब 1.4 लाख सड़क हादसे राजमार्गों पर होते हैं। राजमार्गों पर वाहनों की टक्कर सेवर्ष 2018 में 54 हजार लोगों की मौत हुई थी। वाहनों की रफ्तार में बदलाव और ट्रैफिक नियमों के उल्लंघन के कारण राजमार्गों पर पड़ने वाले चौराहों पर सड़क दुर्घटनाओं का खतरा बढ़ जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि चौराहों पर भीषण सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली जन-धन की हानि के साथ-साथ उसके कारण पड़ने वाले सामाजिक दुष्प्रभावों को रोकने के लिए नए विकल्पों की खोज जरूरी है। (इंडिया साइंस वायर)

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