आ अब लौट चलें.. मुख्यमंत्री के निर्देश पर प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं को हल करने में जुटा जिला प्रशासन
हरिओमसिंह गुर्जर
न्यूजवेव @ कोटा
कोटा शहर के विकास में नींव की ईंट बनकर कई सालों से पसीना बहाने वाले हजारों श्रमिक परिवारों के घर-आंगन में कोरोना के लॉकडाउन से सन्नाटा छा गया है। हजारों प्रवासी मजदूर थक हार कर अपने घरों को लौटने की बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं। ऐसे हालात में कोटा जिला प्रशासन ने संवेदनशीलता के साथ कोरोना वाररूम बनाया, जहां तैनात अफसर लगातार तीन पारियों में घरों के लिये पंजीयन कराने वाले प्रवासी श्रमिकों से फोन पर जानकारी लेने में जुटे हैं।
इन दिनों कई श्रमिक पैदल चलकर अपने गांव लौट चुके हैं तो कोई जतन करते हुए जैसे-तैसे गंतव्य के रास्ते नाप रहे हैं। किसी की आंखों में सरकार के इंतजामों की आस है तो कोई दर-दर ठोकरें खाने के बाद कोटा में ही रूकना चाहते है। अधिकारियों को मिल रहे फीडबेक में श्रमिको के संघर्ष की दास्तां उजागर हो रही है।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में जयपुर सहित सभी जिलों में बैठे आला अधिकारी श्रमिकों के सकुशल घरों तक वापसी करने अथवा स्थानीय स्तर पर फिर से उनका रोजगार शुरू कर जीवन को पटरी पर लाने के प्रयास में जुटे हैं। प्रवासी श्रमिकों के लिए जिला मुख्यालय व ग्राम पंचायत स्तर पर सरकारी स्कूलों या राजकीय भवनों में कोरेंटाइन सेन्टर बनाये गये है। जहां श्रमिकों को भोजन, पानी व मूलभूत सुविधायें दी जा रही हैं। संकट की इस घडी में राज्य सरकार सहारा बनकर उनके साथ खड़ी है।
सब कुछ उजड़ गया, अब घर जाकर खेती करेंगे
10 सालों से विज्ञान नगर के एक होटल में खाना बनाने वाले 28 वर्षीय शिवा रोजगार छिन जाने से कोटा को अलविदा कहना चाहता है। पत्नी राधा के साथ 5 वर्षीय बेटी वैष्णवी को स्कूल भेजते समय उसने सपने देखे थे। हर माह 10-12 हजार रू की आमदनी से बेटे वंश की परवरिश अच्छी हो रही थी। लेकिन अचानक लॉकडाउन से रोजगार बंद हो गया, जमा पंूजी परिवार को पालने में खर्च हो गई। शिवा ने कहा, ’जीवन में बहुत उतार-चढाव देखे लेकिन कोटा में रोजी-रोटी की समस्या नहीं रही। पहली बार वह दुखी मन से कोटा को छोडकर जा रहा है। मध्यप्रदेश के दतिया जिले में सोढाचूंबी गांव में माता पिता के साथ रहकर खेती करेगा।’
…. अब खेतों में मजदूरी करेंगे
मप्र के दतिया जिले के सेंगूआ गांव निवासी विमलेश गुर्जर सब्जीमंडी क्षेत्र में 12 साल से खोमचे व गोलगप्पे बेचकर परिवार पाल रहा था। पत्नी नीलू व ढाई वर्षीय बेटे सागर के साथ वह चौथमाता मन्दिर के पास किराये के मकान में रहता था। लॉकडाउन से उसका काम बंद हुआ तो जमा पैसे भी खत्म हो गये। मकान किराया तथा भोजन सामग्री की परेशानी देख उसने कोटा छोड़ने का मन बना लिया है। उसने बताया कि 12 साल से तीन बडे भाइयों के साथ खोमचे व गोल गप्पे के ठेले लगा रहे थे लेकिन लॉकडाउन से सब कुछ उजड़ गया है। सरकार ने घर भेजने की व्यवस्था करके सहारा दिया है। अब गांव में खेतों पर मजदूरी करके परिवार को संभालेंगे।
कोटा में उम्मीदें अभी बाकी हैं
गुना जिले के मुकेश लोधा 10 साल से हॉस्टल में कोचिंग विद्यार्थियों के लिए भोजन बनाता है। पिछले दो माह से लॉकडाउन के कारण उसकी आमदनी बंद हो गयी। लेेकिन उसने हार नहीं मानी है। वह कोटा में रहकर फिर से पुराने दिन वापस लौटने का इंतजार करेगा। तब तक कोई दूसरा काम करके परिवार का पेट भर लेगा।