विश्व ग्लूकोमा सप्ताह ( 7 से 14 मार्च ) पर विशेष
न्यूजवेव @ कोटा
आंखों के लिये मोतियाबिन्द व कालापानी (ग्लोकोमा) दोनो अंधता के दूसरा प्रमुख कारण माने जाते है। इसीलिये जनजागरूकता के लिये विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रतिवर्ष मार्च के दूसरे सप्ताह में ‘वर्ल्ड ग्लोकोमा वीक’ मनाया जाता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ग्लूकोमा आंखों के लिये गंभीर बीमारी है, इससे बचाव के लिये वर्ष में दो बार आंखों का प्रेशर अवश्य चेक करवायें।
WHO की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लोकोमा से दुनिया में करीब 6 करोड़ व्यक्ति दृष्टि बाधित हैं, इनमें से करीब 1.12 करोड़ रोगी भारतीय उपमहाद्वीप में हैं। खास बात यह कि इनमें से 50 प्रतिशत से अधिक रोगियों को ग्लोकोमा के बारे में कोई जानकारी तक नहीं होती है।
सुवि नेत्र चिकित्सालय व लेसिक लेजर सेंटर, कोटा के नेत्र सर्जन डॉ. सुरेश पाण्डेय के अनुसार विश्व ग्लोकोमा सप्ताह में जनता को ग्लोकोमा (कालापानी) के खतरों से अवगत कराना है। जिससे शीघ्र निदान, जाँच एवं नियमित उपचार ले सकें।
साईलेंट थीफ ऑफ साइट
वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ. विदुषी पाण्डेय के अनुसार ग्लोकोमा आँखों का ऐसा रोग है, जो धीरे-धीरे नजर चुरा ले जाता है, इसीलिए इसे ‘‘साईलेंट थीफ ऑफ साइट’’ कहा जाता है। आमतौर पर खुला-कोण ग्लोकोमा (ओपन-एंगल ग्लोकोमा) की शुरूआत में कोई लक्षण दिखाई नहीं देते हैं, यह धीरे-धीरे विकसित होता है। कई बार बहुत वर्षों तक नजर में कमी नहीं आती है। हालांकि जब तक रोगी को नजर की कमी का पता चलता है, तब तक यह काफी बढ़ चुका होता है।
ऐसे होते हैं लक्षण
बंद-कोण ग्लोकोमा (क्लोज्ड-एंगल ग्लोकोमा) से रोगी को सिरदर्द, आँखों में दर्द, उल्टी आना, नजर कम होना, बल्व के चारों सतरंगी गोले (कलर्ड हेलोज) दिखाई देना जैसे लक्षण हो सकते हैं। आँखों के दबाव की नियमित जाँच और नेत्र चिकित्सक से नियमित उपचार लेने से अपनी नजर को सुरक्षित रख सकते हैं।
ग्लोकोमा विशेषज्ञ डॉ. निपुण बागरेचा के अनुसार आँखों के दबाव की नियमित जाँच करवाएं, क्योंकि ग्लोकोमा का शुरूआत में ही पता लगा लेना और उसका उपचार करना, दृष्टि का दायरा सीमित होने और अंधता से बचने का एकमात्र तरीका है।
एक उम्र के बाद अधिक जोखिमपूर्ण
डॉ एस के गुप्ता के अनुसार ग्लोकोमा का एक उम्र के बाद ग्लोकोमा अधिक जोखिमपूर्ण होता है। जैसे 40 वर्ष से अधिक उम्र वाले ऐसे व्यक्ति जिनके परिवार में कोई ग्लोकोमा पीडित रहा हो या जिनकी आँख के अन्दर का दबाव (आई.ओ.पी.) असामान्य रूप से अधिक है। ग्लोकोमा का खतरा मधुमेह, मायोपिया (दूर की नजर कमजोर), नियमित, दीर्घकालिक स्टेरॉइड, कॉर्टिसोन का उपयोग, कोई पिछली आँख की चोट, रक्तचाप बहुत अधिक या बहुत कम होने पर इसका खतरा बढ जाता है।
ग्लोकोमा का नियंत्रण एंटी ग्लोकोमा आई ड्रॉप के प्रयोग से किया जाता है। बंद कोण ग्लोकोमा के रोगियों हेतु याग लेजर पेरिफेरल आईराइडेक्टोमी (याग पी.आई.) नामक लेजर प्रक्रिया द्वारा नियंत्रित किया जाता है। दवा से नियंत्रित नहीं हो पाने वाले रोगियों में ग्लोकोमा फिल्टरिंग सर्जरी (ट्रेबेकुलेक्टोमी) की जाती है। इनसे दृष्टि में होने वाली हानि को रोकना है, क्योंकि ग्लोकोमा से खोई हुई नजर को लौटाया नहीं जा सकता है। ग्लोकोमा से पीड़ित व्यक्ति को एंटी ग्लूकोमा आई ड्रॉप्स का प्रयोग नियमित रूप से करना चाहिए एवं बिना चिकित्सकीय परामर्श के दवाओं का उपयोग बंद नहीं करना चाहिए।