Wednesday, 24 April, 2024

29 वर्षीया नेन्सी का माइनस 8 नंबर का मोटा चश्मा हटा

सुवि नेत्र चिकित्सालय कोटा में हुआ स्टार टोरिक आई.सी.एल. प्रत्यारोपण
न्यूजवेव@ कोटा
29 वर्षीया नेन्सी दोनों आंखों में -8 नम्बर का मोटा चश्मा लगाती थी। उसे -1.50 नम्बर का तिरछा नम्बर भी था। चश्में का नम्बर अधिक होने से उन्हें राजमर्रा के कामों में काफी परेशानी होती थी। इसके लिये उन्होंने दिल्ली, जयपुर आदि शहरों के नेत्र विशेषज्ञों से परामर्श लिया किंतु दोनों आँखों में कोर्निया की मोटाई कम होने से उनकी आँखों में लेसिक लेजर सर्जरी करना संभव नहीं हो सका। नेन्सी ने इंटरनेट व यू-ट्यूब से सुवि नेत्र चिकित्सालय एवं लेसिक लेजर सेन्टर, कोटा के नेत्र सर्जन डॉ. सुरेश पाण्डेय द्वारा किये गये स्टार टोरिक आई.सी.एल. प्रत्यारोपण के वीडियो देखे और वरिष्ठ नेत्र सर्जन डॉ. विदुषी एवं डॉ. सुरेश पाण्डेय से परामर्श किया।
डॉ. पाण्डेय ने नेन्सी की आँखों के चेकअप में पाया कि उन्हें मायोपिक एस्टिगमेटिज्म नामक दृष्टि दोष है। उसे मोटे चश्में से छुटकारा पाने एवं नजर में गुणवत्ता के लिए स्टार टोरिक आई.सी.एल. (इंप्लान्टेबल कॉलेमर लैन्स) का सुझाव दिया। पहले दिन नेन्सी की दाहिनी आँख का ऑपरेशन कर माईनस 8 नम्बर तथा अगले दिन बायीं आँख का ऑपरेशन कर माईनस 8 नम्बर का ‘टोरिक इंप्लान्टेबल कॉलेमर लैन्स’ का सफल प्रत्यारोपण किया गया। जिससे उनकी 100 प्रतिशत रोशनी लौट आयी। अब वे बिना चश्मा लगाये पास व दूर का बिल्कुल साफ देख पा रही है।
डॉ.पाण्डेय ने बताया कि स्टार टोरिक आई.सी.एल.एक इंप्लान्टेबल कॉलेमर लैन्स है,जिसको आँख में आइरिस (आँख के रंगीन भाग) तथा प्राकृतिक लैंस के बीच में 2.8 मिमी. के सूक्ष्म प्रत्यारोपित जाता है। आई.सी.एल. वी-4-सी नामक मॉडल के मध्य में 360 माइक्रॉन का सूक्ष्म छिद्र होता है जिसके कारण आई.सी.एल. प्रत्यारोपण के बाद मोतियाबिन्द होने के संभावना नगण्य रहती है। इंप्लान्टेबल कॉलेमर लैन्स के प्रत्यारोपण के पश्चात् माइनस 20 नम्बर तक तथा 6 नम्बर तक का तिरछा सिलेण्ड्रिकल नम्बर हटाया जा सकता है। आई.सी.एल. ऐसे मरीजों के लिए एक अच्छा विकल्प है जो मायोपिया दृष्टि दोष तथा दृष्टि विषमता (ऐस्टिग्मेटिज्म) को एक ही प्रक्रिया में सुधारना चाहते हैं। डॉ. विदुषी पाण्डेय ने बताया कि आई.सी.एल. को लगाने पर रिकवरी जल्द होती है, तथा यह दर्द रहित है। आमतौर पर मरीज बहुत कम असुविधा महसूस करते हैं तथा अक्सर अगले दिन काम पर वापस चले जाते हैं। चूंकि आई.सी.एल. को आइरिस तथा प्राकृतिक लैंस के बीच में लगाया जाता है इसलिए लैंस मरीज तथा देखने वाले, दोनों के लिए अदृश्य होता है।

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