Thursday, 12 December, 2024

वर्मी-कम्पोस्ट से 50 फीसदी बढ़ सकते हैं अश्वगंधा के औषधीय गुण

शुभ्रता मिश्रा
न्यूजवेव @ वास्को-द-गामा (गोवा)
भारत, अफ्रीका और यूनान की चिकित्सा पद्धतियों में तीन हजार वर्षों से अश्वगंधा का भरपूर उपयोग हो रहा है। भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ताजा रिसर्च में पाया कि जैविक तरीके से उत्पादन किया जाए तो अश्वगंधा के पौधे की आयु और उसके औषधीय गुणों में बढ़ोत्तरी हो सकती है।

रिसर्च के दौरान सामान्य परिस्थितियों में उगाए गए अश्वगंधा की अपेक्षा वर्मी-कम्पोस्ट से उपचारित अश्वगंधा की पत्तियों में विथेफैरिन-ए, विथेनोलाइड-ए और विथेनोन नामक तीन विथेनोलाइड्स जैव-रसायनों की मात्रा 50 से 80 प्रतिशत अधिक पायी गई। ये जैव-रसायन अश्वगंधा के गुणों में बढ़ोत्तरी के लिए जिम्मेदार माने जाते हैं।
अमृतसर स्थित गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी और जापान के नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एडवांस्ड इंडस्ट्रियल साइंस ऐंड टेक्नोलॉजी के वनस्पति वैज्ञानिकों द्वारा यह रिसर्च किया गया। 

लैबोरेट्री में अश्वगंधा का उत्पादन          

अश्वगंधा (विथेनिया सोमनीफेरा) की सरल, सस्ती और ईको फ्रेंडली खेती और उसमें औषधीय गुणों बढाने के लिए गोबर, सब्जी के छिलकों, सूखी पत्तियों और जल को विभिन्न अनुपात में मिलाकर बनाए गए वर्मी-कम्पोस्ट और उसके द्रवीय उत्पादों वर्मी-कम्पोस्ट-टी तथा वर्मी-कम्पोस्ट-लीचेट का प्रयोग किया गया।
बुवाई से पूर्व बीजों को वर्मी-कम्पोस्ट-लीचेट और वर्मी-कम्पोस्ट-टी के घोल द्वारा उपचारित करके संरक्षित किया गया और बुवाई के समय वर्मी-कम्पोस्ट की अलग-अलग मात्राओं को मिट्टी में मिलाकर इन बीजों को बोया गया।

अध्ययन में शामिल वैज्ञानिकों के अनुसार इन उत्पादों के उपयोग से कम समय में अश्वगंधा के बीजों के अंकुरण, पत्तियों की संख्या, आकार, शाखाओं की सघनता, पौधों के जैव-भार, वृद्धि, पुष्पण और फलों के पकने में प्रभावी बढ़ोत्तरी दर्ज की गई है।

अश्वगंधा में कैंसर प्रतिरोधी गुण
वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. प्रताप कुमार पाती ने बताया कि “अश्वगंधा की जड़ और पत्तियों को स्वास्थ्य के लिए गुणकारी पाया गया है। इसकी पत्तियों से 62 और जड़ों से 48 प्रमुख मेटाबोलाइट्स की पहचान की जा चुकी है। अश्वगंधा की पत्तियों में पाए जाने वाले विथेफैरिन-ए और विथेनोन में कैंसर प्रतिरोधी गुण होते हैं। हर्बल दवाओं की विश्वव्यापी बढ़ती जरूरतों के लिए औषधीय पौधों की पैदावार बढ़ाने के वैज्ञानिक स्तर पर गहन प्रयास किए जा रहे हैं। अश्वगंधा उत्पादन में वृद्धि की हमारी कोशिश इसी कड़ी का हिस्सा है।”

प्रोफेसर डॉ प्रताप कुमार पाती (मध्य) रिसर्च टीम के साथ

अश्वगंधा भारत के राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड द्वारा घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे अधिक मांग वाले चयनित 32 प्राइमरी औषधीय पौधों में से एक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के चयनित औषधीय पौधों के मोनोग्राफ में भी अश्वगंधा को उसकी अत्यधिक औषधीय क्षमता के कारण शामिल किया गया है।

तंत्रिकीय विकारों को ठीक करने वाले गुण
अश्वगंधा में गठिया, कैंसर और सूजन प्रतिरोधी गुणों के अलावा प्रतिरक्षा नियामक, कीमो व हृदय सुरक्षात्मक प्रभाव और तंत्रिकीय विकारों को ठीक करने वाले गुण भी होते हैं। इन चिकित्सीय गुणों के लिए अश्वगंधा में पाए जाने वाले एल्केलोइड्स, फ्लैवेनॉल ग्लाइकोसाइड्स, ग्लाइकोविथेनोलाइड्स, स्टेरॉल, स्टेरॉयडल लैक्टोन और फिनोलिक्स जैसे रसायनों को जिम्मेदार माना जाता है।

अश्वगंधा की पैदावार की प्रमुख बाधाओं में उसके बीजों की निम्न जीवन क्षमता और कम प्रतिशत में अंकुरण के साथ-साथ अंकुरित पौधों का कम समय तक जीवित रह पाना शामिल है। औषधीय रूप से महत्वपूर्ण मेटाबोलाइट्स की पहचान, उनका जैव संश्लेषण, परिवहन, संचयन और संरचना को समझना भी प्रमुख चुनौतियां हैं।
डॉ.पाती के अनुसार, वर्मी-कम्पोस्ट के उपयोग से अश्वगंधा की टिकाऊ तथा उच्च उपज की खेती और इसके औषधीय गुणों में संवर्धन से इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है। रिसर्च टीम में में डॉं प्रताप कुमार पाती, अमरदीप कौर, बलदेव सिंह, पूजा ओह्री, जिया वांग, रेणु वाधवा, सुनील सी. कौल एवं अरविंदर कौर शामिल रहे। (इंडिया साइंस वायर)

(Visited 524 times, 1 visits today)

Check Also

अच्छी सेहत किचन से निकलकर आती है- डॉ. सक्सॆना

राजस्थान टेक्निकल यूनिवर्सिटी (RTU) कोटा में स्वास्थ्य जागरूकता पर व्याख्यानमाला न्यूजवेव @ कोटा सेहत किचन …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

error: Content is protected !!