Thursday, 12 December, 2024

विटामिन से भरपूर हैं झारखंड में 20 प्रजाति की सब्जियां

उमाशंकर मिश्र
न्यूजवेव @ नईदिल्ली

गरीब और पिछड़ा राज्य माने जाने वाले झारखंड मे जनजातीय लोग ऐसी सब्जियों की प्रजातियों से भोजन करते हैं, जो पौष्टिक एवं गुणवत्ता से भरपूर हैं।
भारतीय शोधकर्ताओं ने झारखंड के स्थानीय आदिवासियों द्वारा उपयोग की जाने वाली ऐसी पत्तेदार सब्जियों की 20 प्रजातियों की पहचान की है, जो पौष्टिक गुणों से युक्त होने के साथ-साथ भोजन में विविधता को बढ़ावा देती हैं। अच्छी सेहत एवं खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए इन सब्जियों की प्रजातियां मददगार हो सकती हैं।

सब्जियों की इन प्रजातियों में शामिल लाल गंधारी, हरी गंधारी, कलमी, बथुआ, पोई, बेंग, मुचरी, कोईनार, मुंगा, सनई, सुनसुनिया, फुटकल, गिरहुल, चकोर, कटईध्सरला, कांडा और मत्था इत्यादि झारखंड के आदिवासियों के भोजन में लोकप्रिय हैं। जनजातीय लोग भोजन में सबसे अधिक लाल गंधारी, हरा गंधारी और कलमी का उपयोग करते हैं। वहीं, गिरहुल का उपभोग सबसे कम होता है।

अध्ययनकर्ताओं ने रांची, गुमला, खूंटी, लोहरदगा, पश्चिमी सिंहभूमि, रामगढ़ और हजारीबाग समेत झारखंड के सात जिलों के हाट (बाजारों) में सर्वेक्षण कर वहां उपलब्ध विभिन्न मौसमी सब्जियों की प्रजातियों के नमूने एकत्रित किए हैं। इन सब्जियों में मौजूद पोषक तत्वों, जैसे- विटामिन-सी, कैल्शियम, फॉस्फोरस, मैग्निशयम, पोटैशियम, सोडियम और सल्फर, आयरन, जिंक, कॉपर एवं मैगनीज, कैरोटेनॉयड्स और एंटीऑक्सीडेंट गुणों का पता लगाने के लिए नमूनों का जैव-रासायनिक विश्लेषण किया गया है।

एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर

विटामिन, खनिज और एंटीऑक्सीडेंट गुणों से भरपूर जनजातीय इलाकों में पायी जाने वाली ये पत्तेदार सब्जियां स्थानीय आदिवासियों के भोजन का अहम हिस्सा हैं। इनमें प्रचुर मात्रा में कैल्शियम, मैग्निशयम, आयरन, पोटैशियम जैसे खनिज तथा विटामिन पाए गए हैं। इन सब्जियों में फाइबर की उच्च मात्रा होती है, जबकि कार्बोहाइड्रेट एवं वसा का स्तर बेहद कम पाया गया है।

अध्ययन के अनुसार, इन सब्जियां बहुउपयोगी होने के बावजूद आज भी इन्हें गरीबों व पिछड़े वर्ग का भोजन माना जाता है। जबकि, सब्जियों की ये प्रजातियां खाद्य सुरक्षा, पोषण, स्वास्थ्य देखभाल के साथ ही आमदनी का जरिया बन सकती हैं। खास बात यह कि बहुत कम संसाधनों में इनकी खेती हो सकती है।
गर्मी एवं बरसात के मौसम में जनजातीय वर्ग के लोग खाने योग्य पौधे अपने आसपास के कृषि एवं वन्य क्षेत्रों से एकत्रित करके सब्जी के रूप में उपयोग करते हैं। इन सब्जियों को विभिन्न वनस्पतियों, जैसे- झाड़ियों, वृक्षों, लताओं, शाक या फिर औषधीय पौधों से प्राप्त किया जाता है।

सब्जियों को साग के रूप में पकाकर, कच्चा या फिर सुखाकर खाया जाता है। सुखाकर सब्जियों का भंडारण भी किया जाता है, ताकि पूरे साल उनका भोजन के रूप में उपभोग किया जा सके। अलग-अलग स्थानों पर विभिन्न मौसमों में भिन्न प्रकार की सब्जियां उपयोग की जाती हैं। इनकी पत्तियों, टहनियों और फूलों को मसालों अथवा मसालों के बिना पकाकर एवं कच्चा खाया जाता है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के पटना एवं रांची स्थित पूर्वी अनुसंधान परिसर के शोधकर्ताओं में अनुराधा श्रीवास्तव, आर.एस. पैन और बी.पी. भट्ट शामिल रहेे। (इंडिया साइंस वायर)

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