Wednesday, 17 September, 2025

ईश्वर को मित्र, पितृ या ईष्ट बनाओ -संत श्री कमलकिशोरजी नागर

धर्मसभा: सुनेल में दिव्य संत पं.कमलकिशोर नागर की श्रीमद् भागवत कथा में चैथे दिन 50 हजार से अधिक श्रद्धालु पहुंचे।

न्यूजवेव सुुुनेल/कोटा
दिव्य गौसेवक संत पूज्य पं.कमलकिशोरजी नागर ने कहा कि सांसारिक जीवन में यह अनुभव करके देखो कि मेरा मीत, मित्र, पितृ व ईष्ट है या नहीं। जीवन में ईश्वर से प्रीत और मीत है तो सारे रिश्ते उससे जोड सकते हो। वसुधैव कुटुम्बकम की तरह सबसे पहले उसे अपने परिवार का सदस्य बनाओ। यदि ईष्ट के रूप में वह आपके साथ है तो ईष्टबल से सब कार्य सहज ढंग से पूरे होते चले जाएंगे।

शनिवार को सुनेल-झालरापाटन बायपास मार्ग पर ‘नंदग्राम’ में श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ सोपान में खचाखच भरे पांडाल में उन्होंने कहा कि विद्यार्थियो को स्कूल में 200 में से कोई एक अच्छा मित्र मिलता है, हर संकट के समय सच्चा मित्र अवश्य साथ देता है। मित्र नहीं है तो ईश्वर से मित्रता कर लो। इसी तरह, पिता को अपने पुण्य कार्य से अनुकूल पुत्र मिलते हैं। परिवार में पुत्र या पत्नी ही नहीं सुनते हैं तो श्रीहरि से तार जोड लो।

उन्होंने कहा कि ‘कबीर कुआं एक है, पनिहारिन अनेक है। बर्तन सबके न्यारे हैं, पानी सबका एक है।’ हमारे दुनिया में कबीरपंथ, वैष्णवपंथ जैसे पंथ अनेक हैं लेकिन ईष्ट सबका एक ही है, केवल उसका नाम लो। सनातन धर्म नहीं जिसमें मत-मतांतर अनेक नहीं।

दुर्योधन बोले-हम सौ, अर्जुन बोले-‘सोहम’

संत ‘नागरजी’ ने कहा कि ब्रह्यज्ञान में हम महाभारत को एक शब्द से समझ सकते हैं। दुर्योधन ने अहंकार से कहा था, हम सौ हैं तो जवाब में अर्जुन बोले- ‘सोहम’ यानी श्रीकृष्ण। अर्जुन को भरोसा था कि संख्या वाला नहीं, शंखवाला जीतेगा। वैसा ही हुआ भी। सोहम ने शस्त्र नहीं पांचजन्य शंख उठाया था, उसकी गूंज से 100 हाथ दूर तक कौरवों की धरती खिसक गई थी। शंख की अनहद नाद से सोहम स्वर ही बजता है लेकिन आज कलियुग में शिष्यों की संख्या या फाॅलोअर की होड मची है। लेकिन स्वविवेक से जीओ। आश्रमों की भीड़ से अलग केवल व्यक्ति बनो। सोहम की शक्ति आपको अपनी ओर खींच लेगी।

तीन को मिलाकर एक हो जाओ
उन्होंने एक रस्सी का उदाहरण देकर समझाया कि तीर रस्सियों को एक साथ गूथ दो तो वह मजबूत हो जाती है। इसी तरह, सत्संग से धाता-ध्यान-ध्येय, तन-मन-धन, ज्ञाता-ज्ञान-ज्ञेय, समय-शक्ति-सम्पत्ति तीनों एक हो जाते हैं तो भक्ति के तार मजबूत हो जाते हैं।

पुण्य से चलते हैं घर-परिवार
पूज्य नागरजी ने कहा कि दुख इस बात का है सीमा पर खडे़ सैनिक गोली खाकर शहीद होने का तैयार रहते हैं लेकिन परिवार में पुत्र पिता की बात को सहन करने के लिए तैयार नहीं है। जिस परिवार में पुत्र पिता कि इशारे पर चलें, वह अनुकूल हैं। माता-पिता भी बेटे-बहू में कोई भेदभाव न करे। उन्होने कहा कि पूंजी यहां रह जाएगी लेकिन पुण्य साथ जाएंगे। इसलिए पुण्य की पंूजी बढ़ाओ। मीरा और रूक्मणी ने ठाकुरजी को आंसू से निमंत्रण दिया था। भक्ति में ऐसा भाव लाना सीखो।

अंधे को है ज्योति की पहचान
एक प्रसंग में उन्होने कहा ज्योतिस्वरूप की आंख अलग होती है। जैसे, एक अंधे को दीपक के पास बैठाकर कहा कि तुम बताओ ज्योति जल रही है या नहीं। उसने आंख नहीं होने से हाथ से अनुभव कर कहा जल रही है। आंख की जगह हाथ उसका साथ दे गया। राजा बलि ने भी पहचाना था कि परमतत्व मेरे द्वार आया है। आपके नगर-द्वार भी भागवत कथा के रूप में भक्ति का अवसर खड़ा है। जीवन में ब्रह्य से जुडाव के लिए मन में कहो- छोडो, मत जाने दो। जीव आए तो कहो- छोडा़े मत, जाने दो। यही अवसर की पहचान है।

नंदग्राम मे धूमधाम में मनाया श्रीकृष्ण जन्मोत्सव


कथा स्थल ‘नंदग्राम’ में शनिवार को बडे़ ही हर्षोल्लास व भजनों की रसधार के बीच श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मनाया गया। देर तक महिलाएं श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप को निहारती रहीं। कथा स्थल पर रोज रात्रि में 1 घंटा ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ का सामूहिक जप किया जा रहा है, जिसमें मध्यप्रदेश व राजस्थान के अन्य जिलों से नंदग्राम में ठहरे हुए सैकड़ों श्रद्धालु भाग ले रहे हैं।

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